48 दिवसीय भक्ताम्बर विधान मुनि के सानिध्य में चल रही प्रभु आरधान
भिण्ड, 04 अगस्त। मनुष्य के साथ यह विशेषता है कि वह यदि ठीक तरीके से चले तो यह संसार की सर्वश्रेष्ठ कृति बन जाता है और यदि वह गलत तरीके से चले तो विकृति बनने में देर नहीं लगती। महत्वपूर्ण जन्म नहीं, जीवन शैली है। हम किस तरीके से जी रहे हैं, महत्व इसका है। आज प्रत्येक व्यक्ति अच्छा दिखना चाहता है, लेकिन अच्छा करना नहीं चाहता। यह उदगार श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने संस्कारमय पावन वर्षायोग समिति एवं सहयोगी संस्था जैन मिलन परिवार के तत्वावधान में शुक्रवार को महावीर कीर्तिस्तंभ मन्दिर में आयोजित 48 दिवसीय भक्ताम्बर महामण्डल विधान में व्यक्त किए।
मुनि विनय सागर महाराज ने कहा कि हमारे पास विचार करने व बोलने की शक्ति है। सही सोचें, सही देखें, सही बोलें, सही करें, इन चार बातों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रतिदिन 24 घण्टे हमारे पास 60 हजार विचार आते हैं, उनमें से कुछ विचारों का तो कोई महत्व ही नहीं है, वह कोई काम के नहीं होते हैं और उन फिजूल विचारों से अपनी एनर्जी वेस्ट करते हैं। उन्होंने कहा कि मैं अक्सर कहता हूं कि फोटू तो सभी की बहुत अच्छी है, लेकिन एक्स-रे के बुरे हाल हैं। अच्छे दिखो नहीं, अच्छा बनो। जिसकी सोच अच्छी होती है, वही आसमान छूते हैं। घटिया सोच वालों से धरती कांपती हैं। जब तक आपकी सोच नहीं बदलेगी, तब तक आपका जीवन नहीं बदल सकता।
इन्द्रों ने ऋद्धि-सिद्धि मंत्रों से किया भगवान जिनेन्द्र का अभिषेक
प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य एवं विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ग्वालियर के मार्गदर्शन में केशरिया वस्त्रों में इन्द्रों ने मंत्रों से कलशों से भगवान आदिनाथ को जयकारों के साथ अभिषेक किया। मुनि ने अपने मुखारबिंद मंत्रों से भगवान आदिनाथ के मस्तक पर इन्द्रा- पंकज जैन, नीरज जैन, धीरज जैन, परिवार ने शांतिधारा की। मुनि को शास्त्र भेंट समाज जनों ने सामूहिक रूप से किया। आचार्य विराग सागर, विनम्र सागर के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन पंकज जैन, नीरज जैन, धीरज जैन परिवार ने किया।
इन्द्रा इन्द्राणियों ने भगवान जिनेन्द्र को भक्ति के साथ चढ़ाए महाअघ्र्य
श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य में विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ने भक्ताम्बर महामण्डल विधान में पंकज जैन, नीरज जैन, धीरज जैन परिवार एवं इन्द्रा-इन्द्राणियों ने भक्ताम्बर मण्डप पर बैठकर अष्टद्रव्य से पूजा अर्चना एवं भजनों पर भक्ति नृत्य करते हुए महाअघ्र्य भगवान आदिनाथ के समक्ष समर्पित किए।