
– राकेश अचल
प्रोफेसर पीसी जैन नहीं रहे। ग्वालियर से उपेक्षित और विस्मृत किए जा चुके जैन साहब का पूरा नाम बहुत कम लोग जानते हैं। वे कांग्रेस के नेता भी थे और अंग्रेजी के प्रोफेसर भी। मेरा उनसे पहला परिचय 1974 के आसपास का था। जैन साहब उन दिनों पत्रकार थे। उन्होंने प्रोफेसरी छोड़कर दैनिक ‘लोकपथÓ नाम का अखबार शुरू किया। ग्वालियर की गणेश कालोनी (नया बाजार) में उनका दफ्तर और छापाखाना दोनों थे। उन दिनों मुझे कविताएं लिखने और समाजसेवी होने का शौक चर्राया था। जैन साहब ने मुझमें न जाने क्या देखा कि अपना पूर्ण संरक्षण दे दिया। कविताओं और समाजसेवा की खबरें पीछे रहीं, जन सरोकार उन पर हावी हो गए।
कुछ साल बाद मैंने पत्रकारिता को अपनी आजीविका बना लिया और जैन साहब भी आपातकाल के कलंक से मुक्त हुई कांग्रेस में रम गए। कांग्रेस पर सामंतवाद का साया था और जैन साहब ठहरे ठेठ प्रगतिशील। कहने भर के नहीं असली प्रगतिशील। उन्होंने अपने निजी जीवन में प्रगतिशीलता पनपा कर दिखाई। सभी संतानों को न सिर्फ उच्च शिक्षा दिलाई बल्कि स्वयंवरण की छूट भी दी। वे किसी की परवाह नहीं करते थे। उनके अपने सिद्धांतों के सामने कोई ठहरे ये आसान काम नहीं था। जैन साहब प्रगतिशील होते हुए भी उस समय के कांग्रेस के छत्रप माधवराव सिंधिया को भी पसंद थे। महल में पीसी जैन की बोलती तूती बहुत लोगों को खलती थी, लेकिन जैन साहब किसी की फिक्र नहीं करते थे। जब तक सिंधिया से बनी तब तक बनी और जब ठनी तो जमकर ठनी। वे बोलने से रुके नहीं और किसी के सामने झुके नहीं। न उनके खादी के कपड़ों का कलफ टूटा और न वे खुद टूटे। कांग्रेस के भीतर और बाहर उनके समर्थक और विरोधी बराबर संख्या में थे।
वाकपटुता और साफगोई जैन साहब की पहचान रही। आलोचनाओं को वे हवा में उड़ा देते थे। वे यदि ऐसा न करते तो शायद उनका अपना जाति समूह चैन से जीने भी न देता। कोई दो -तीन दशक सुर्खियों में रहने वाले पीसी जैन ने अपने जीवन में ऊंच-नीच सब देखी। उन्हें कांग्रेस ने अपेक्षाकृत कुछ खास दिया नहीं। कांग्रेस में वे बुद्धिमान नेता थे लेकिन सामंतवाद ने उन्हें पनपने नहीं दिया। एक बार मेरे एक पत्रकार मित्र के प्रेम विवाह का प्रसंग था। कन्या पक्ष विवाह के खिलाफ था, और हम सब विवाह कराना चाहते थे। बाकायदा भांवरें हो गई, किंतु कन्या के पिता कन्यादान के लिए आने को राजी नहीं थे। ऐसे में पीसी जैन आगे आए। कन्या के पिता को जब ये पता चला तो वे हठ त्याग कर कन्यादान के लिए आ गए। जैन साहब ने ऐसी अनेक प्रवंचनाएं तोड़ी। उनकी आईपीएस बेटी मेरी बहन की सहपाठी थी। बाद में हम पड़ोसी भी रहे। मेरे बेटे का दूसरा घर था उनकी बेटी का फ्लैट।
अपने जमाने के समाजवादी नेता और पूर्व मंत्री श्री रमाशंकर सिंह की मानें तो बहुत पहले ही यह तय हो चुका था कि राजनीति में कोई पढ़ा लिखा शिक्षित ईमानदार आदमी अब खप नहीं सकता और यह संभावना दिन पर दिन क्षीण ही होती जा रही हैं। यह स्थिति अन्य पेशों के बारे में भी सच होती जा रही हैं, मसलन न्यायपालिका, खबरपालिका, उच्च प्रशासनिक अधिकारी। डिग्री और रटंत हुनर से प्रतियोगी इम्तहान पास करने से समग्र शिक्षा की तुलना करने की गलती मत करिये। ग्वालियर में पीसी जैन नाम के एक शिक्षित सौम्य व्यक्ति ने तरह तरह से कांग्रेसी राजनीति और पत्रकारिता में जमने की बहुत कोशिश की थी लेकिन अंतत: हार मानकर छोडऩा पड़ा। कुल मिलाकर अब ग्वालियर क्या सूबे में भी पीसी जैन जैसे लोग चिराग लेकर खोजने पर भी नहीं मिलेंगे। मिलेंगे भी कैसे, उनकी जमात ही खत्म कर दी गई है। पीसी जैन होना आसान भी नहीं है। पीसी जैन का जाना कांग्रेस का कम ग्वालियर और प्रगतिशील आंदोलन का बड़ा नुक्सान है। विनम्र श्रृद्धांजलि।