05 मार्च 1902 – 26 जुलाई 1998
-अशोक सोनी ‘निडर’
नीरा आर्य का विवाह ब्रिटिश भारत में सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास के साथ हुआ था। नीरा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अपने अफसर पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी। 05 मार्च 1902 को तत्कालीन संयुक्त प्रांत के खेकड़ा नगर में एक प्रतिष्ठित व्यापारी सेठ छज्जूमल के घर जन्मी नीरा आर्य आजाद हिन्द फौज में रानी झांसी रेजिमेंट की सिपाही थीं, जिन पर अंग्रेजी सरकार ने गुप्तचर होने का आरोप भी लगाया था। इन्हें नीरा नागिनी के नाम से भी जाना जाता है। इनके भाई बसंत कुमार भी आजाद हिन्द फौज में थे। इनके पिता सेठ छज्जूमल अपने समय के एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे, जिनका व्यापार देशभर में फैला हुआ था। खासकर कलकत्ता में इनके पिताजी के व्यापार का मुख्य केन्द्र था, इसलिए इनकी शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता में ही हुई। नीरा नागिन और इनके भाई बसंत कुमार के जीवन पर कई लोक गायकों ने काव्य संग्रह एवं भजन भी लिखे। 1998 में इनका निधन हैदराबाद में हुआ।
आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब लाल किले में मुकद्दमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा हुई थी, जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई। आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।
नीरा ने अपनी एक आत्मकथा भी लिखी है। इस आत्म कथा का एक हृदयद्रावक अंश प्रस्तुत है- ”मैं जब कोलकाता जेल से अंडमान पहुंची, तो हमारे रहने का स्थान वे ही कोठरियां थीं, जिनमें अन्य महिला राजनैतिक अपराधी रही थी अथवा रहती थी। हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कंबल आदि का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी कि इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहां अभी तो ओढऩे बिछाने का ध्यान छोडऩे की आवश्यकता आ पड़ी है? जैसे-तैसे जमीन पर ही लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कंबल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंककर चला गया। कंबलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा, परंतु कंबलों को पाकर संतोष भी आ ही गया। अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था। सूर्य निकलते ही मुझको खिचड़ी मिली और लुहार भी आ गया। हाथ की सांकल काटते समय थोड़ा-सा चमड़ा भी काटा, परंतु पैरों में से आड़ी बेड़ी काटते समय, केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरों की हड्डी को जांचा कि कितनी पुष्ट है। मैंने एक बार दु:खी होकर कहा, ‘क्या अंधा है, जो पैर में मारता है?’ ‘पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’ उसने मुझे कहा था। ‘बंधन में हूं तुम्हारे कर भी क्या सकती हूं’ फिर मैंने उनके ऊपर थूक दिया था, ‘औरतों की इज्जत करना सीखो?’ जेलर भी साथ थे, तो उसने कड़क आवाज में कहा, ‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहां हैं?’ ‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे’ मैंने जवाब दिया, ‘सारी दुनिया जानती है।’ ‘नेताजी जिंदा हैं, झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’ जेलर ने कहा। ‘हां नेताजी जिंदा हैं।’ ‘तो कहां हैं।’ ‘मेरे दिल में जिंदा हैं वे।’
जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और बोले, ‘तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल देंगे।’ और फिर उन्होंने मेरे आंचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आंगी को फाड़ते हुए फिर लुहार की ओर संकेत किया। लुहार ने एक बड़ा सा जंबूड़ औजार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढ़ी हुई पत्तियां काटने के काम आता है, उस ब्रेस्ट रिपर को उठा लिया और मेरे दाएं स्तन को उसमें दबाकर काटने चला था। लेकिन उसमें धार नहीं थी, ठूंठा था और उरोजों (स्तनों) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दूसरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, ‘अगर फिर जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएंगे’ उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी नाक पर मारते हुए कहा, ‘शुक्र मानो महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों उभार पूरी तरह उखड़ जाते।’
सलाम हैं ऐसी देश भक्त को आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की।