अबोध बालिका को बहला-फुसला कर बलात्संग करने वाले आरोपी को संपूर्ण प्राकृत जीवन का कारावास

सागर, 03 अगस्त। नवम् अपर सत्र न्यायाधीश/ विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट) सागर के न्यायालय ने आरोपी अबोध पीडि़ता के साथ दुष्कृत्य करने वाले आरोपी मनीष लोधी पुत्र धनप्रसाद लोधी उम्र 28 साल को धारा 366(ए) भादवि में दोषी पाते हुए 10 साल का सश्रम कारावास व 500 रुपए का अर्थदण्ड तथा 376(ए)(बी) भादवि एवं धारा 5/6 पॉक्सों एक्ट में आजीवन सश्रम कारावास (संपूर्ण प्राकृत जीवन काल) एवं 500 रुपए के अर्थदण्ड से दण्डित किया है। राज्य शासन की ओर से उप-संचालक (अभियोजन) अनिल कटारे ने पक्ष रखा।
लोक अभियोजन के मीडिया प्रभारी/एडीपीओ सौरभ डिम्हा ने जानकारी देते हुए बताया कि पीडि़ता जिसकी उम्र 11 साल होकर नाबालिक है, ने अपने माता-पिता के साथ थाना उपस्थित होकर रिपोर्ट दर्ज कराई कि 14 जनवरी 2019 को दोपहर करीब 1.30 बजे वह आरोपी मनीष लोधी के घर खेलने गई थी वहां कोई नहीं होने से आरोपी पीडि़ता को अंदर वाले कमरे में ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया एवं धमकी दी कि अगर किसी को बताया तो जान से मार दूंगा। उक्त घटना के बारे में पीडि़ता ने घर आकर अपने माता-पिता को बताया। उक्त रिपोर्ट पर से थाना सुरखी में अपराध धारा 376, 366(ए), 506 भादवि एवं धारा 5/6 पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया। विवेचना के दौरान अभियोक्त्री/ पीडि़ता की एमएलसी एवं डीएनए जांच कराई गई एवं न्यायालयीन कथन कराए गए। अभियोक्त्री के नाबालिग से संबंधित आयु दस्तावेज प्रस्तुत किए गए, विवेचना के दौरान विवेचना अधिकारी द्वारा प्रकरण से संबंधित महत्वपूर्ण साक्ष्य एवं वैज्ञानिक साक्ष्य संकलित किए गए। आरोपी का डीएनए परीक्षण कराया गया। विवेचना पूर्ण कर अभियोग पत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया। न्यायालय के समक्ष अभियोजन अधिकारी उप-संचालक अनिल कटारे ने महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत किए एवं प्रकरण के अभियुक्त को संपूर्ण विवेचना के आधार पर संदेह से परे प्रमाणित कराया एवं अंतिम तर्क के दौरान तर्क किया गया कि प्रकरण में अभियोक्त्री और उसके माता पिता के कथन को देखते हुए दोनों पक्ष के बीच समझौता हो जाने की संभावना प्रकट हो रही है। अभियुक्त पढ़ा-लिखा व्यक्ति है, आरोपी द्वारा अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए अपने से कम आयु की अभियोक्त्री को परिचित होने के कारण नाबालिग जानते हुए अपनी हवस का शिकार बनाया। इस प्रकार के अपराध किए गए व्यक्ति को उसके विरुद्ध अन्य साक्ष्य उपलब्ध होने पर चिकित्सकीय साक्ष्य का समर्थन होने पर लाभ नहीं देना चाहिए, अन्यथा ऐसे व्यक्ति का मनोबल बढ़ेगा। दण्ड के प्रश्न पर उप-संचालक द्वारा तर्क दिया गया कि घटना दिनांक को पीडि़ता की आयु मात्र 11 वर्ष की होकर नाबालिग थी। आरोपी द्वारा अभियोक्त्री को नाबालिग जानते हुए बहला-फुसला के अपने घर के अंदर ले जाकर जान से मारने की धमकी देकर उसके साथ बलात्संग किया। इसलिए अभियुक्त को कठोरतम दण्ड दिया जाए। बचाव पक्ष के अधिवक्ता द्वारा व्यक्त किया गया कि आरोपी नवयुवक है प्रथम अपराधि है और पीजी करने के बाद पीएचडी कर रहा है। न्यायालय द्वारा अपने निर्णय में व्यक्त किया गया कि यदि अबोध बालिका के विरुद्ध किए गए अपराध में उसने यदि अपने माता-पिता के दबाव में किसी प्रकार से अपने कथन को अभियुक्त के पक्ष में मोड़ दिया है तो यह नहीं कहा जा सकता कि घटना के समय उसे पहुंचाई गई पीड़ा शांत हो जाएगी, यदि ऐसा होता रहा तो ऐसे कृत्य करने वाले बाद में डरा घमका कर या प्रलोभन देकर समझौता कर साक्षियों को प्रभावित करते रहेंगे। न्यायालय का यह कर्तव्य है कि ऐसी परिस्थिति को हतोत्साहित करें। अपराध करने के बाद जो पीड़ा अभियोक्त्री को तत्काल में हुई है उससे अधिक पीड़ा उसे बाद में उसे अहसास करते हुए होती होगी। इसमें कोई शंका नहीं है कि इस प्रकार की पीड़ा उसे जीवनभर हो सकती है, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। न्यायालय द्वारा उक्त प्रकरण के तथ्य परिस्थितियों एवं अपराध की गंभीरता को देखते हुए एवं अभियोजन के तर्कों से सहमत होकर आरोपी मनीष लोधी पुत्र धनप्रसाद लोधी उम्र 28 साल को धारा 366(ए), भादवि में दोषी पाते हुए 10 साल का सश्रम कारावास व 500 रुपए का अर्थदण्ड तथा 376(ए)(बी) भादवि एवं धारा 5/6 पॉक्सों एक्ट में आजीवन सश्रम कारावास (संपूर्ण प्राकृत जीवन काल) एवं 500 रुपउ के अर्थदण्ड से दण्डित किया है।