पीएचई कार्यपालन यंत्री की जांच की खानापूर्ति कर वापस लौट गई टीम

भिण्ड पीएचई में 50 लाख के घोटाले की जांच करने आई थी टीम

भिण्ड, 24 जुलाई। पीएचई विभाग की सीएम हेल्प लाइन के निराकरण में शिकायतकर्ता के सीने हेण्डपम्प गाडऩे वाले जवाब का किस्सा तो याद हो होगा। वो हेण्डपम्प गाडऩे वाले कार्यपालन यंत्री बीआर गोयल एक बार फिर सुर्खियों में हैं। गोयल पर 50 लाख के घोटाले का आरोप है, जिसकी जांच के लिए संभागीय दल शुक्रवार को भिण्ड पहुंचा, लेकिन जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति नजर आई, साथ ही जांच में शामिल सदस्यों पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक लोक स्वास्थ्य यंत्रिकी (पीएचई) विभाग के कार्यालय यंत्री पर आरोप है कि उन्होंने विभागीय प्रचार-प्रसार के लिए अपने चहेते ठेकेदारों को फायदा पहुंचाया है। आरोप है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में जिले में सपोर्ट ऐक्टिविटीज के नाम पर विभागीय प्रचार प्रसार के लिए इंदौर जिले की एक फर्म को गोयल ने करीब 200 वर्क ऑर्डर जारी कर 50 लाख रुपए का भुगतान कराया है, जबकि उन्हें महीने में 25 हजार रुपए के सिर्फ दो वर्कऑर्डर पास करने का अधिकार है। साथ ही उन पर जल जीवन मिशन के अंतर्गत फर्जी भुगतान कराने का भी आरोप है।

पांच बजे पहुंची टीम में सिर्फ एक सदस्य

उल्लेखनीय है कि कार्यालय यंत्री गोयल पर लगे आरोपों के खिलाफ मुख्य अभियंता चंबल संभाग द्वारा एक जांच दल का गठन किया गया है। संभागीय टीम शुक्रवार की शाम करीब पांच बजे पीएचई कार्यालय पहुंची, जांच दल के सदस्य और एई एसपी पांडेय ने बताया कि उन्हें अधीक्षण यंत्री द्वारा निर्देशित किया था कि बिंदुवार सभी तथ्यों की जांच करनी है, जिसके लिए वे यहां पहुचे हैं। हालांकि आरोपी अधिकारी बीआर गोयल से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन वे गोलमोल जवाब देते नजर आए।

निष्पक्ष जांच के नहीं हैं आसार

बता दें कि जांच अधिकारी पांडेय के पहुंचने तक कर्मचारी जा चुके थे और कुछ पहले से ही छुट्टी पर थे। बीआर गोयल के मुताबिक वे जांच दल के सदस्य को एक लिस्ट देकर गए हैं, जिसमें जो जानकारी जांच के लिए मांगी गई है, वह उपलब्ध है। इसके अलावा मुख्य कार्यालय अभियंता चंबल संभाग द्वारा गठित किए गए जांच दल में जिले के संभागीय लेखपाल भूपेन्द्र सिंह को भी सदस्य बनाया गया है, जबकि आरोप के अनुसार 50 लाख के वर्क ऑर्डर का भुगतान भी इन्हीं लेखपाल के हस्ताक्षर के साथ हुआ है। ऐसे में प्रकरण में शामिल व्यक्ति को जांच दल का सदस्य बनाए जाने से जांच की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होना लाजमी है।