तप, त्याग करने से हर व्यक्ति तीर्थंकर बन सकता है : विनम्र सागर

युवराज आदिकुमार की निकाली बारात, सजे तोरणद्वा
पंच कल्याणक महोत्सव के पांचवे दिन वैराग्य और दीक्षा का हुआ आयोजन

ग्वालियर, 09 मई। अयोध्य नगरी 24 समवशरण तीर्थ में उच्चरणाचार्य विनम्र सागर महाराज व चर्तुविद ससंघ के सानिध्य व निदेशन मुनि श्री विज्ञ सागर महाराज, मुनि श्री विनय सागर महाराज के मार्गदर्शन में पंचकल्याणक महोत्सव जिनबिंब प्रतिष्ठा एवं विश्व शांति महायज्ञ चल रहा है। महोत्सव के पांचवे दिन सोमवार को तप कल्याण पर सुबह नित्य पूजा, मंगल प्रवचन, पश्चात आदिकुमार का विवाह, राज्यतिलक नीलाजंना एवं वैराग्य एवं दीक्षा संस्कार कार्यक्रम हुए।


उच्चरणाचार्य श्री 108 विनम्र सागर महाराज ने धर्मसभ को संबोधित करते हुए कहा कि जिस प्रकार दूध कच्चा होता है, लेकिन उसे गरम करने पर मलाई, घोटने पर रबड़ी और दूध में नीबू डालने पर दही और फिर उसी से मक्खन बनता है। उसी प्रकार मक्खन रूपी हमारा धर्म है। उन्होंने कहा कि इस शरीर को जितना मथोगे, त्याग करोगे उससे तुम्हारा जीवन धर्ममय हो जाएगा। तप, त्याग करने से हर व्यक्ति तीर्थंकर बन सकता है।

आदिकुमार का राज्याभिषेक, कई राज्यों से बधाई देने आए मुकुटधारी राजा

तीर्थंकर आदिकुमार के माता-पिता महाराजा नाभिराय राधेश्याम जैन व रजवांस महारानी मरूदेवी ऊषा जैन द्वारा आदिकुमार वैवाहिक बारात निकाली गई। अयोध्य में आदिकुमार का राज्याभिषेक हुआ। राजा नाभिराय और माता मरूदेवी के राजकुमार के दर्शनों के लिए कई राज्यों से राज तिलक, राज व्यवस्था और 32 मुकटबद्ध राजाओं ने हाथ मे बधाई भेंट लेकर आए। अयोध्य नगरी में राजा महाराजाओं भक्ति नृत्य करते हुए खुशी जहीर की। यह देखकर पंडाल में उपस्थित जनसैलाब भी उमड़ पडा।

नीलांजना के नृत्य से आदिनाथ को आया वैराग्य, देखकर भावुक होकर रो पडे लोगा

राजसभा में रिद्धी जैन व शिवानी जैन ने संगीतकार विक्की कुमार पार्टी भोपाल के स्वर संगीत के बीच नीलांजना नृत्य की प्रस्तुति दी। नृत्य के दौरान घटित घटनाक्रम को देखकर राजा आदिकुमार को क्षण भंगुरता का बोध हुआ व वैराग्य हो गया। वैराग्य के मार्मिक प्रसंग की क्रियाओं को देख पण्डाल में उपस्थित जन समुदाय भावुक हो गए। आदिकुमार को वैराग्योत्पति के बाद लौकांतिक देवों द्वारा स्तवन उनका दीक्षावन की ओर प्रस्थान व दीक्षा के साथ तप कल्याणक की क्रियाएं की गई। माता-पिता और राज के लोगो ने रुकाने की कोशिश की मगर वह नहीं रोके।

वैराग्य के उपंरात हुई दीक्षा, आचार्यश्री ने आदिकुमार से ऋषभ नाम दिया

आदिनाथ को जैसे ही इस संसार से वैराग्य मिला उन्होंने खण्डकावन में साल वृक्ष के नीचे नम: सिद्धेभ्य: बोलते हुए सिद्धसाक्षी दीक्षा ग्रहण करते है। दीक्षा के संस्कार के साथ आदिकुमार से ऋषभ देव नाम आचार्य श्री विनम्र सागर ने दिया। मुनि ऋषभ को नवीन पिच्छी और कमण्डल का सौभाग्य दर्शनलाल भूपेन्द्र जैन अजमेर परिवार ने भेंट की।

आज होगा भगवान ज्ञान कल्याणक, समवशरण की रचना होगी

महोत्सव के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि 10 मई को सुबह छह बजे से जाप्य, नित्य नियमपूजन, ज्ञान कल्याणक, मंगल प्रवचन एवं मुनि ऋषभ का प्रथम आहारचार्य के उपरांत आचार्यश्री संसघ द्वारा प्राण प्रतिष्ठा, सूरिमंत्र, केवल ज्ञानोत्पति, समवशरण रचना, दिव्यध्वनि केवल ज्ञान होगा। शाम 6:30 बजे से आरती, सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।