भिण्ड, 13 अप्रैल। बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती है, संत कृपा होती है तो मनुष्य भक्ति प्राप्त कर सकता है, लेकिन संत और सद्गुरु भक्ति का मार्ग बता सकते हैं, लेकिन चलना तो शिष्य को ही पड़ेगा। यह उद्गार दंदरौआ धाम में श्रीश्री 1008 महामण्डलेश्वर मंहत श्री रामदास जी महाराज के सानिध्य में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान प्रवचन करते हुए पं. रामस्वरूप शास्त्री ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि गुरु रास्ता बताते हैं किंतु शिष्य को ही चलना पड़ता है। भक्ति के लिए हमेशा छोटा बनकर रहो क्योंकि भक्ति के दरबार में उसी को प्राथमिकता मिलती है जो सबसे छोटा होता है, दीन होता है। भक्त की पहचान यही होती है कि वह अपने को कभी बड़ा नहीं समझता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य की तृष्णा भक्ति नहीं करने देती है, इसलिए अपनी तृष्णा से दूरी बनाकर रहना ही उचित होता है। इंसान के बंधन और मोक्ष का कारण मन होता है यदि मनुष्य का तन तो मन्दिर में है लेकिन मन उसका घर गृहस्थी, दुकानदारी में लगा है तो उसका मन्दिर में रहने से कोई फायदा नहीं होता है।
कथा के मुख्य यजमान एवं पारीक्षत श्रीमती नारायणी देवी-नरसी भगत है। भागवत कथा दोपहर दो बजे से शाम पांच बजे तक तथा रामलीला का मंचन सुबह 10 बजे से दोपहर दो बजे तक किया जा रहा है। बुधवार को रामलीला में राम वनवास की लीला का मंचन किया गया। इस अवसर पर राधिकादास महाराज (वृंदावन धाम), रामबरन पुजारी, राजेश शर्मा, जलज त्रिपाठी, श्रीराम सीरोठिया, कैलाश नारायण, श्यामसुंदर, अखिलेश, मिच्चू बाबा सहित अनेक श्रृद्धालुजन उपस्थित रहे।