मित्र से बढकर संसार में कोई सुख दुख का साथी नहीं: कटारे

भिण्ड, 08 दिसम्बर। मेहगांव क्षेत्र के ग्राम देवरी में चल रही श्रीमद् भागवत कथा मे आज योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के 16 हजार विवाह एवं उनके वचपन के मित्र सुदामा का द्वारिका पुरी आगमन, श्रीकृष्ण से मिलन एंव भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की रसमयी ज्ञानगंगा श्रीमद भागवत कथा सुनकर श्रोतागण भाव विभोर हो गए।
व्यासपीठ से आचार्य रामअवतार कटारे सोनी वाले ने भगवान श्रीकृष्ण के 16 हजार 108 विवाह संपन्न होने की कथा का वर्णन किया। जिसमें 16 हजार 108 वेद रिचाओं का कन्या रूप में विवाह संपन्न हुआ। मित्रता से बढकर दुनिया मे कोई सुख दुख का साथी नहीं भगवान श्रीकृष्ण के बाल सखा सुदामा चरित्र की कथा सुनकर झूमकर नाचे श्रोता सुदामा जी कन्हैया के बालसखा के रुप में सुप्रसिद्ध हुए जो गुरु संदीपनी के आश्रम उज्जैन मे एक साथ विद्या अध्ययन के समय सुदामा जी ने भगवान श्रीकृष्ण से छिपकर चने खा लिए लेकिन सुदामा जी ब्रहंज्ञानी होने से उनको यह ज्ञात हो गया था, कि जो भी यह चने खाऐगा वह जीवन भर दरिद्रता भोगने के लिए विवश होगा। मित्रता का धर्म निभाने के लिए सुदामा जी ने वह चने खा लिऐ जिसमें श्राप बस चने खाने के कारण सुदामा जी जीवन भर के दरिद्र हो गए।
जीवन के अंतिम पडाव पर भगवान श्रीकृष्ण की त्रिगुणमयी माया के वसीभूत होकर सुदामा जी व्दारिका पहुचे। जहां भगवान श्रीकृष्ण ने मित्रता भाव के साथ सह्रदय आदर सम्मान करते हुऐ सुदामा जी को वह सब प्रदान करा दिया। जिसके अधिकारी भगवान श्रीकृष्ण स्वयं रहे। श्रीकृष्ण और सुदामा जी की मित्रता युगो युगो तक अमरत्व को प्राप्त होगी। जीवन मे मित्रता से बडा कोई रिस्ता बडा नहीं हो सकता लेकिन मित्रता भाव को भूल मनुष्य स्वार्थ परता के वसीभूत होकर मित्रता भाव के अमूल्य धन को खोकर मृगतृष्णा में जीवन गवा रहा है। रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी मित्रता का महत्व बताते हुए बाली से कहा कि पावक को साक्षी देकर हम बन चुके मित्र क्या सुना नहीं। दुख मित्र मित्र का मरते हे यह वाक्य नीति का सुना नहीं। श्रीमद भागवत कथा के आज समापन दिवस पर हजारों की संख्या मे भक्तगणों ने कथा का रसपान करते हुऐ भक्तवत्सल भगवान के नाम का संकीर्तन किया।