भिण्ड, 04 जुलाई। आपातकाल में 19 माह तक जेल में बंद रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. लक्ष्मी नारायण शर्मा निवासी ग्राम अतरसूमा जिला भिण्ड की 31वीं पुण्य तिथि पांच जुलाई को है।
पंडितजी ने वर्ष 1934 में फूफ व्हीएम विद्यालय से मिडिल की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में अंक गणित में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की थी। उस समय उनकी आयु 16 वर्ष आठ माह थी। इस परीक्षा को पास करते ही उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन के समय भूमिगत रहकर चंबलघाटी के जिले जिन्हें तत्कालीन ग्वालियर रेसिडेंसी कहा जाता था के साथ ही तत्कालीन यूनाइटेड प्रोविन्स क्षेत्र में आंदोलन का संचालन करते हुए हजारों युवकों को देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया था। पंडितजी उस समय से कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे जब भिण्ड जिले में कोई भी अन्य पार्टी अस्तित्व में नहीं थी। बाद में बे कांग्रेस पार्टी छोड़ कर समाजबादी पार्टी में चले गए थे एवं आजीवन उसी पार्टी में रहे।
उन्होंने न सिर्फ देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए आपातकाल में 19 महीने सेंट्रल जेल ग्वालियर में रहे। 25 जून 1975 को आपातकाल की विधिवत घोषणा (जो 25 जून की मध्य रात्रि को की गई थी) के पूर्व ही उनके भिण्ड निवास तत्कालीन नवयुग गृह निर्माण सोसाइटी (अब कुशवाह कॉलोनी) इटावा रोड भिण्ड से तत्कालीन टीआई एवं दो अन्य पुलिस कर्मी आपने साथ यह कह कर ले गए थे कि पंडितजी आपको एसपी साहब ने याद किया है। इसलिए आप कुछ नास्ता कर लें और हमारे साथ चलें। पंडितजी उनके साथ चले गाए और फिर वहीं से उन्हें आपातकाल की घोषणा के बाद मीसा (मैंटेनेंस ऑफ इंटरनल सेक्युर्टी एक्ट) के तहत सेंट्रल जैल ग्वालियर भेज दिया गया था, जहां उन्हें 19 माह अर्थात आपातकाल के समाप्त की विधिवत घोषणा होने तक बंदी बनाकर रखा गया था।
आपातकाल के दौरान उनके बड़े पुत्र रामबाबू शर्मा कृषि क्षेत्र में अनुसंधान हेतु लीड्स विश्वविद्यालय, इंग्लैंड में कार्य र्क रहे थे। पिता-पुत्र के बीच जो भी पत्राचार होता था उसे सेंसर किया जाता था। एक बार जब बहुत लंबे समय तक पत्र नहीं मिले तो उनके पुत्र ने लीड्स से ग्वालियर सेंट्रल जेल में अपने पिता लक्ष्मी नारायण शर्मा के नाम से पीपी (पर्सन टू पर्सन) अंतर्राष्ट्रीय फोन कॉल एक दिन पूर्व ही दूसरे दिन सुबह सात बजे के लिए बुक किया था, जब भारत में दोपहर का समय था। दिल्ली से ग्वालियर सेंट्रल जेल की फोन लाइन मिलने में बहुत लंबा समय लगा था और जब नंबर मिला तो वहां ड्यूटी पर तैनात जेल अधिकारी ने कहा कि पंडितजी यहीं हैं, परंतु उनसे फोन पर बात कराने की पर्मिशन नहीं है, इसलिए बात नहीं होगी। परंतु जो भी मैसेज देना होगा दे दिया जाएगा। चूंकि पीपी कॉल बुक की गई थी और पंडितजी से बात नहीं हो सकी, इसलिए लीड्स डिपार्टमेंट ने इसके लिए कोई चार्ज नहीं लिया।
पंडितजी के कई अभिन्न साथियों में रघुवीर सिंह कुशवाह, रामेश्वर दयाल दांतरे, त्रियुगी नारायण शर्मा वकील, हजूरी सिंह कुशवाह, दिलीप सिंह चतुर्वेदी, लालसिंह कुशवाह वकील, हरज्ञान सिंह बोहरे आदि के अतिरिक्त भी बहुत सारे लोग थे। उनके ज्यादातर साथी अब इस संसार में नहीं हैं। उनके अभिन्नतम साथी रघुवीर सिंह कुशवाह जो आपातकाल में मीसाबंदी के रूप में जेल में उनके साथ थे, वे स्वर्ग सिधार गए थे। उनके कुछ साथी जो जेल में साथ रहे थे जैसे सीनोर निवासी सत्यनारायण बोहरे एवं मुरैना निवासी विजय सिंह सिकरवार वकील एवं रक्षपाल सिंह तोमर पुराने समय की यादों में खो जाते हैं और उस समय की बातें करते करते उनकी आंखें नम हो जाती हैं। पंडितजी के कार्य क्षेत्र में भिण्ड के अतिरिक्त ग्वालियर, दतिया एवं मुरैना जिले भी शामिल थे।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ-साथ पंडितजी एक अभूतपूर्व समाजसेवी भी थे। लोक कल्याण के कार्यों हेतु पंडितजी ने राजनैतिक पार्टियों की दीवार तोडक़र राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं के संपर्क में रहने के साथ ही क्षेत्र के सभी राजनैतिक दलों के नेताओं के साथ मिलकर उन्होंने क्षेत्र के किसानों एवं अन्य लोगों के हित में कई कार्य किए थे। सर्वोदय के अग्रणी महानुभाओं के साथ ही सर्वोदय संत लल्लूदद्दा आदि यहां तक कि उस समय के तथाकथित डाकू दल के प्रमुख जैसे मानसिंह एवं अन्य से संपर्क में रहकर उन्होंने कई जगह संघर्ष की स्थिति को टालने में सहयोग किया था। ग्राम सुधार संगठन के अध्यक्ष के रूप में अटेर क्षेत्र में उन्होंने संगठन के संस्थापक डॉ. सरदार सिंह भदौरिया ग्राम क्यारीपुरा, आशाराम शर्मा एवं अन्य सदस्यों के साथ मिलकर कई जटिल समस्याओं का निपटारा करवाया था। इसके अतिरिक्त वे कृषि उपज मण्डी समिति भिण्ड में उपाध्यक्ष एवं सेंट्रल कोपरेटिव बैंक भिण्ड में भी जनप्रतिनिधि के रूप में रहे एवं किसानों के हित में हमेशा ही कार्य करते रहे, लेकिन इन संस्थाओं में कार्यरत गलत करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों को दण्डित भी किया। ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने भिण्ड में परशुराम क्षात्रावास के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई थी। यद्यपि पंडितजी विगत 31 वर्षों से हमारे बीच नहीं हैं, परंतु उनके द्वारा देशहित एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु किए गए विभिन्न कार्य हम सबके लिए प्रेरणा के श्रोत हैं। इन्हीं शब्दों के साथ हम पंडितजी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।