गाजरघास से 30 से 45 प्रतिशत कम होती है फसलों की उपज: डॉ. वर्षा गुप्ता

कृषि महाविद्यालय ने सेवार्थ पाठशाला में मनाया गाजर घास जागरुकता सप्ताह

ग्वालियर, 21 अगस्त। अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार प्रबंधन योजनांतर्गत विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर द्वारा 18वां गाजर घास जागरुक सप्ताह मनाया जा रहा है। जिसके तहत विभिन्न विद्यालयों, समाजसेवी संस्थाओं, कृषि कार्य में शामिल व्यक्तियों अन्य विशेष वर्ग के व्यक्तियों के बीच जाकर उन्हें गाजर घास जो कि एक बहुत बडी महामारी के रूप में हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है, उसके बारे में जानकारी देकर जागरुकता सप्ताह मनाया जा रहा है। इसी क्रम में सोमवार को विवेकानंद नीडम ग्वालियर के पास स्थित सेवार्थ पाठशाला के बच्चों, स्वयंसेवी शिक्षकों, पालकों, समाजसेवियों इत्यादि को गाजर घास के पनपने, उनके रोकने और उससे होने वाली हानियों के बारे में विस्तृत संवाद, प्रैक्टिकल इत्यादि के द्वारा जागरुक किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में पाठशाला के अध्यक्ष ओपी दीक्षित के अलावा कृषि विश्वविद्यालय के वक्ताओं में अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार प्रबंधन परियोजना की परियोजना प्रभारी डॉ. वर्षा गुप्ता, प्रोफेसर, वैज्ञानिक, डॉक्टर इत्यादि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन पाठशाला के सचिव भूतपूर्व सूबेदार मेजर मनोज पाण्डे ने किया।
इस अवसर पर डॉ. वर्षा गुप्ता ने अपने उद्बोधन में जानकारी देते हुए बताया कि आज गाजरघास एक महामारी के रूप में देश के कोने-कोने में फैल चुकी है। अगर हम जल्द ही जाग्रत नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब खेतों में फसलों की जगह सिर्फ गाजरघास ही उगा करेगी। यह पौधा हमारे देश का नहीं है यह अमेरिका (मैक्सिको) से गेहूं के आयात के साथ भारत में आया था, जिसे सर्वप्रथम पूना में 1955 में देखा गया था। आज लगभग 30-45 प्रतिशत उपज में कमी केवल गाजरघास की वजह से होती है। गाजरघास जागरुकता सप्ताह प्रति वर्ष 16-22 अगस्त तक राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में मनाया जाता है। इसी क्रम में इस वर्ष अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार प्रबंधन परियोजना के अंतर्गत 18वां गाजरघास जागरुकता सप्ताह मनाया जा रहा है।
परियोजना प्रभारी डॉ. वर्षा गुप्ता ने सेवार्थ पाठशाला के बच्चों एवं स्वयंसेवी शिक्षकों को गाजरघास के पनपने, उनके फैलाव, उनसे होने वाली हानियों एवं बचाव के तरीके विस्तार से बताए। यहां पर झुग्गी-झोपडी मे रहने वालेे छोटे-छोटे बच्चे पढने आते है। उनको सुझाव दिया गया कि वे अपने खेतों एवं घर के आसपास उगी हुई गाजरघास को हाथों मे दस्ताने पहनकर उखाड कर नष्ट कर दें। साथ ही घर के चारों तरफ गेंदे लगा दें। रोड के किनारे पवार ‘केसियाटोरा’ लगाये तथा जाइगोग्रामा वीटल खेतों के आसपास उगी गाजरघास पर छोड दें। यह वीटल केवल गाजरघास को ही खाता है।
सेवार्थ पाठशाला में कक्षा पांचवी से ऊपर वाले बच्चों के बीच कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विस्तार चर्चा के साथ बताया कि गाजर घास को हम समूल केमिकल अन्यथा बिना केमिकल के भी अन्य विधियों के द्वारा समाप्त कर सकते हैं। क्योंकि पाठशाला में पढने वाले बच्चों की उम्र कम है और केमिकल द्वारा गाजर घास को नष्ट करने के लिए प्रशिक्षित व्यक्तियों की टीम अपने संरक्षण में अभियान के द्वारा कृषि कार्य में लगे लोगों को जागरुक करती है। बच्चों, समाज के व्यक्तियों, झुग्गी झोपडी में रहने वाले लोगों के आस-पास, किचन गार्डन में उसे बिना केमिकल के द्वारा भी जड से निकाल कर किसी एक गड्ढे में दबाकर नमक के पानी की विधि द्वारा उन्हें समाप्त करने और वातावरण में बारिश के मौसम में हमारे आस-पास होने वाले गेंदे के फूलों के द्वारा भी इसे समूल नष्ट किया जा सकता है। ऐसा वैज्ञानिकों ने सभी बच्चों और वहां उपस्थित लोगों को समझाया।
कार्यक्रम के अंत में विवेकानंद नीडम सेवार्थ पाठशाला के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ओपी दीक्षित ने बच्चों को ‘मेरी माटी मेरा गौरव’ से भी परिचित कराया। यहां वैज्ञानिकों के साथ मोहनलाल अहिरवार, प्रक्षेत्र विस्तार अधिकारी डॉ. वायके सिंह, नेहा मांझी, सौरभ शाक्य, दीक्षा कुशवाह एवं करूणा में लगभग 160 बच्चे व शिक्षक उपस्थित थे।