– राकेश अचल
हमारे पास बहस के लिए तमाम मुद्दे हैं सिवाय औरतों को छोडकर। हमारी सरकार किसी का डिब्बा गोल करने के इशारे करना जानती है, किन्तु तेजी से गुम हो रही औरतों को बचाने का कोई इशारा उसके पास नहीं है। औरतों की कहानी में कोई तब्दीली नहीं आई है। न कांग्रेस की सरकार में और न महाबली भाजपा की सरकार में। ‘अबला जीवन है तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी’ वाली स्थिति ज्यों कि त्यों है। महिलाओं के आंसू पौंछने वाले लोग, सरकार और व्यवस्था लगातार कमजोर हो रही है। देश की हंगामे में डूबी संसद में देश से महिलाओं के लगातार गायब होने के आंकडे पेश किए गए किन्तु किसी ने इस पर बहस नहीं की।
देश में महिलाओं के लापता होने का हिसाब जनता के पास नहीं, सरकार के पास होता है। भले ही ये हिसाब आधा-अधूरा होता हो, लेकिन ये भी चौकाने वाला होता है और इस हिसाब किताब को देखकर हमारा सिर शर्म से झुक जाना चाहिए, पर नहीं झुकता। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा संकलित आंकडों को पिछले सप्ताह संसद में पेश किया गया, जिससे पता चलता है कि पूरे देश में साल 2019 से 2021 के बीच 13.13 लाख लडकियां और महिलाएं लापता हुईं, जिसमें 18 साल से अधिक उम्र की 10 लाख 61 हजार 648 महिलाएं और उससे कम उम्र की दो लाख 51 हजार 430 लडकियां शामिल हैं।
दरअसल हम उस देश के वासी हैं जिसमें बाघों के लिए अभ्यारण्य हैं और उनकी बाकायदा गिनती की जाती है, किन्तु औरतों का इस देश में कोई अभ्यारण्य नहीं है और न उनके गायब होने पर कोई पायलट प्रोजेक्ट बनाया जाता है। दुर्भाग्य से देश में सबसे ज्यादा महिलाएं उस प्रदेश से गायब होती हैं जहां डबल इंजिन की सरकार है और जो प्रदेश प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जी को बहुत प्रिय है। इस प्रदेश में मामा की सरकार है। आप समझ गए होंगे कि मैं किस प्रदेश की बात कर रहा हूं? दुर्भाग्य से ये प्रदेश मेरा अपना प्रदेश मध्यप्रदेश है। एनसीआरबी के आंकडे बताते हैं कि सबसे अधिक महिलाएं मप्र से लापता होती हैं। उसके बाद बंगाल में महिलाएं व लडकियां गायब हुईं। केन्द्र शासित प्रदेशों में दिल्ली में लडकियों और महिलाओं के लापता होने की संख्या सबसे अधिक रही। आंकडों के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी में 2019 और 2021 के बीच 61 हजार 54 महिलाएं और 22 हजार 919 लडकियां लापता हो गईं। जम्मू और कश्मीर में उक्त अवधि में 8617 महिलाएं और 1148 लडकियां लापता हो गईं।
मप्र लाडली बेटियों और लाडलीय बहनों का प्रदेश है। मप्र के मुख्यमंत्री इनके ऊपर जान छिडकते है। लडकियों को मुफ्त साइकिल, स्कूटी, लेपटॉप और शिक्षा देते हैं। लाडली बहनों के खाते में हर महीने एक हजार रुपए जमा करते हैं फिर भी प्रदेश से एक लाख 60 हजार 180 महिलाएं लापता हो जाती हैं। इनमें 38 हजार 234 लाडली बेटियां होती है। अब इन्हें या तो मप्र में लगातार बढ़ रहे बाघ खा जाते हैं या फिर ये उस नर्क में धकेल दी जाती हैं जिसे मर्द ही चलाते है। बात केवल मप्र की ही नहीं है, मामा के राज में तो ये सब हो ही रहा है, साथ ही बहन ममता बनर्जी के राज में भी महिलाओं की दुर्दशा मप्र जैसी ही है। बहन ममता बनर्जी के बंगाल में एक लाख 56 हजार 905 महिलाएं लापता हुईं, इनमें से 36 हजार 606 केवल लडकियां हैं। तीन इंजन वाले मप्र का स्थान महिलाओं के गायब होने के मामले में तीसरे स्थान पर है। महाराष्ट्र नाम के इस सूबे से बीते दो साल में एक लाख 78 हजार 400 महिलाएं गायब हुईं, जिसमें से 13 हजार 33 लडकियां शामिल हैं। इन बडे राज्यों के अलावा ओडिशा और छत्तीसगढ़ भी महिलाओं की सुरक्षा नहीं कर पाता समाज के भेडियों और बाघों से।
महिला उत्पीडन में इस समय शीर्ष पर मणिपुर है। इस मुद्दे पर मौन रहने वाली हमारी सरकार ने बडी ही विनम्रता से संसद को बताया कि सरकार ने देशभर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई पहल की हैं। इनमें यौन अपराधों के प्रभावी रोकथाम के लिए कानून को लागू करना शामिल है। आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 2018 में 12 वर्ष से कम उम्र की लडकियों से दुष्कर्म के लिए मृत्यु दण्ड सहित कठोर दण्डात्मक प्रविधान किया गया है। 112 नंबर डायल वाली आपातकालीन सहायता प्रणाली लागू की है। अब ये लापता होने वाली महिलाओं का दोष है कि वे इस प्रणाली का इस्तेमाल नहीं करतीं। सरकार ने देश के आठ शहरों के लिए ‘सेफ सिटी परियोजना’ भी लागू की है। लेकिन महिलाएं इन्हीं बडे आठ शहरों में सुरक्षित नहीं है। आपको बता दें कि सेफ सिटी परियोजना वाले इन शहरों में अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई शामिल हैं।
समस्या ये है कि देश में महिलाएं कभी मुद्दा रही ही नहीं। मुद्दा है कुर्सी। मुद्दा है मोदी जी और राहुल जी। मुद्दा है विपक्षी गठबंधन, मुद्दा है दिल्ली सूबे की सरकार को परेशान करना। लापता होती औरतों को लेकर कौन बहस करे? स्मृति ईरानी तो इस मुद्दे पर बहस करने से रहीं। शायद वे भूल चुकी हैं कि वे भी एक महिला हैं और उनके यहां भी एक लाडली बेटी है। संसद में महिला सांसदों की संख्या ले-देकर अभी 78 तक पहुंची है, पहले तो इतनी भी नहीं थी। लेकिन ये महिला संसद भी अपनी बिरादरी के लगातार गायब होने पर न सदन में चीख-चिल्ला पाती हैं और काली पट्टियां बांध पाती हैं। क्योंकि इन्हें खुद अपनी सुरक्षा की चिंता सताती रहती है। बीहड से संसद तक पहुंची फूलन देवी को भी इस देश की सरकार और पुलिस नहीं बचा पाई थी।
भारत में महिलाओं के लगातार गायब होने पर एक जमाने में नोबल पुरस्कार विजेता अमृत्य सेन ने इस देश को ‘मिसिंग वूमेन’ वाला देश कहा था। सेन साहब मौजूदा सरकार को फूटी आंख नहीं सुहाते, क्योंकि वे सरकार की हां में हां नहीं मिलाते। देश में प्रति एक हजार व्यक्ति पर 1020 महिलाएं हैं। इस हिसाब से महिलाओं की कोई कमी नहीं है, जो उन्हें लापता किया जाता है। देश की कुल आबादी का 48 फीसदी हिस्सा महिलाओं का है फिर भी सबसे ज्यादा दुर्दशा इन्हीं महिलाओं की है। लापता महिलाओं को धरती लील लेती है या आसमान उडा लेता है, कोई नहीं जानता। पुलिस भी नहीं जानती और सरकार भी। संसद सिर्फ एनसीआरबी के आंकडों के बारे में जानती है। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में ये आंकडे देने वाली एनसीआरबी भी महिलाओं की तरह लापता हो जाए। क्योंकि एनसीआरबी के आंकडों से सरकार की बदनामी होती है। सरकार को नीचा देखना पडता है। जबकि सरकार हमेशा ऊपर देखना चाहती है।
मुझे पूरा भरोसा है कि आज-कल में जब संसद में मौजूदा सरकार के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव आएगा तब भी महिलाओं के लापता होने पर कोई नहीं बोलेगा। कोई अपना मुंह नहीं खोलेगा। जिन मुद्दों को लेकर सरकार को आडे हाथों लिया जाएगा वे मुद्दे दूसरे ही होंगे। महिलाओं के मामले में पुरुषों का नजरिया एक जैसा ही है, चाहे वे पुरुष सांसद किसी भी दल के हों। महिलाओं की रक्षा अब केवल भगवान ही कर सकता है। विवेक अग्निहोत्री जैसे राष्ट्रवादी फिल्म निर्माता ही इस मुद्दे पर शायद कभी मौका मिले तो फिल्म बनाएं, लेकिन उसका प्रमोशन कौन करेगा? देश में अब कोई महिला प्रधानमंत्री तो है नहीं और आगे भी कोई संभावना नहीं दिखाई देती, क्योंकि तीसरा टर्म तो मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने नाम पहले ही लिख चुके हैं। हम जैसे लोग लापता लाडली बेटियों और बहनों की सुरक्षा के लिए केवल कामना कर सकते हैं, सो कर रहे है। भले ही कोई हमारी सुने या न सुने।