जागते रहो! क्योंकि देवता सो रहे हैं

– राकेश अचल


आज का विषय न राजनीति है न समान नागरिक संहिता और न जलता मणिपुर और न बन्दे भारत को हरी झंडियां दिखाते प्रधानमंत्री जी। आज आप हैं, हम हैं और हमारे वे देवी-देवता हैं जो सोने जा रहे हैं। हमारे देवी-देवता हमारी ही तरह हैं, उन्हें भी चौमासा फुसाता नहीं है, इसलिए वे भी सोने चले जाते हैं। हमारे देवताओं के शयन का समय, तिथि, वार सब पहले से तय होता है। इसमें किसी भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं। देवताओं के देवता भगवान विष्णु हैं। वे जिस दिन सोते हैं उस दिन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है, इसलिए इस दिन को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कोई-कोई इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहता है। इसी दिन सूर्य मिथुन राशि में आ जाते हैं। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करेंगे अब उन्हें और चार माह तक कोई डिस्टर्ब नहीं कर सकता। चार माह बाद जब सूर्य तुला राशि में प्रवेश करेगा तब देवताओं को जगाया जाएगा।
दूसरे धर्मों का हमें पता नहीं कि उनके देवता सोते हैं या नहीं, लेकिन हमारे हिन्दू देवी-देवता तो सोते हैं। चूंकि अब देवता सो गए हैं इसलिए विवाह बंद, शहनाइयां बंद, आतिशबाजी बंद। लेकिन अब जनता के जागने का समय है, क्योंकि जब देवता सोते हैं तब नेता जागते हैं। जब शादी-विवाह बंद होते हैं तब देश में चुनाव शुरू होते हैं। देवताओं से चुनावी शोगुल झेला नहीं जाता, इसलिए वे अपने-अपने लोक में चले जाते हैं, क्योंकि भूलोक पर डबल इंजन की सरकारों ने हाल ही में देवताओं के लिए जनधन से जो लोक बनाए हैं वे देवताओं को पसंद नहीं है। बहरहाल बात देवताओं के सोने और जनता के जागने की है। जगृत जनता ही किसी भी देश में लोकतंत्र का भविष्य तय करती है। भूलोक के भारत-जम्मूद्वीप की जनता हमेशा समय पर सोती है और समय पर जागती है, किन्तु उसे जगाना पड़ता है। इस समय जन-जागरण इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि जनता को जगाने का काम करे वाली हमारी बिरादरी के बहुसंख्यक लोग सत्ता की गोदी में शिशुवत बैठे हैं। लेकिन जनता जागती है। हेलीकॉप्टरों का शोर सुनकर, रैलियां, रथ यात्राएं देखकर, बैंकों में बिना काम रुपया आता देखकर। अगर जनता जागेगी नहीं तो फिर चातुर्मास में चुनाव का मजा कैसे आएगा?
देवताओं के शयनकाल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृह प्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं। भविष्य पुराण, पद्म पुराण तथा श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है। हरिशयन का मतलब इन चार महीनों में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाना उनके शयन का ही द्योतक होता है। इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति क्षीण हो जाती है। आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि चातुर्मास्य में (मुख्यत: वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य-तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होना ही इनका कारण है। ये जो विभिन्न जीव ही नेतागण होते हैं। इनके प्रकट होने का समय ही चुनाव का समय होता है।
बचपन से एक पौराणिक कथा सुनते आए हैं जिसके अनुसार कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में संपूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आपको समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता चार माह सुतल में निवास करते हैं।
कलिकाल में दैत्य बलि का अवतार नेता हैं। उन्हें झुकाने के लिए देवताओं को नहीं जनता को वामन रूप धरकर नेताओं को काबू में करना होता है। ये नेता लोकतंत्र रूपी विष्णु को जब चाहे तब अपने बंधन में कर लेते हैं। लोकतंत्र को दैत्यों से मुक्त करने के लिए भगवान ने हम हिन्दुस्तानियों को मताधिकार दिया है, इसके जरिये जब भी चुनाव होते हैं। हम अपने दैत्यरूपी बलि को बदल सकते हैं। नेताओं को दैत्य कहना खतरे से खाली नहीं है। कलिकाल के नेता दैत्य के रूप में नहीं बल्कि जनसेवक के रूप में प्रकट होते हैं। उन्हें पहचान पाना आसान काम नहीं, क्योंकि सब नेता यानि जनसेवक एक-दूसरे को नकली और अपने आपको असली बताते हैं। लेकिन होते सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे। सबका एक ही लक्ष्य होता है और वो लक्ष्य है सत्ता हासिल करना।
देवशयनी एकादशी को मैं जनजागरण एकादशी कहता हूं। जन जागरण एकादशी के दिन आम जनता को उपवास के साथ ये संकल्प भी लेना चाहिए कि वो नेताओं और सरकारों द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली कोई चीज ग्रहण नहीं करेंगे। मुफ्त का अन्न, शराब, कपड़ा, नगद सहायता, शादी-विवाह का दहेज लेने वाली जनता को भगवान कभी माफ नहीं करता। भगवान चूंकि नेताओं का कुछ बिगाड़ नहीं सकता इसलिए उसका सारा जोर जनता पर रहता है। वो जनता को ही समझाता है कि जागते रहो और जगाते रहो। नेताओं के झूठे वादों और प्रलोभनों से बचो। क्योंकि नेताओं का काम ही जनता को झांसा देकर अपना उल्लू सीधा करना होता है। हाल ही में आपने देखा कि देश में सत्ता पाने के लिए एक दल के नेता ने भारत जोड़ो यात्रा की, तो दूसरे दल सत्ता पाने के लिए आपस में ही जुडऩे की कोशिश कर रहे हैं। उधर जो पहले से सत्ता पर काबिज हैं वे कभी बन्दे भारत रेलों को हरी झण्डी दिखा रहे हैं और कभी समान नागरिक संहिता का गुब्बारा फुला रहे है। सत्ता में बने रहने के लिए किसी को पसमांदा मुसलमान याद आ रहे हैं तो किसी को आदिवासी और दलित। किसी को भ्रष्टाचार मिटाने की गारंटी दी जा रही है, तो किसी को खुद मिटाने की। ऐसे भ्रामक वातावरण में जनता का जागरण बहुत जरूरी है। क्योंकि चुनाव के दौरान जनता को बचने या मदद करने भगवान तो आने से रहे।
चातुर्मास में केवल भगवान ही नहीं बल्कि चतुर साधू-संत भी अपने-अपने प्रकल्प तय कर लेते है। कुछ चातुर्मास के लिए अपना पसंदीदा ठिकाना चुन लेते हैं और कुछ जनता को नेताओं की ओर से धर्म-कर्म और त्याग की शिक्षा देने निकल पड़ते हैं। चातुर्मास में चूंकि जनता भी फुर्सत में होती है, इसलिए उसे आसानी से घेरा जा सकता है। मान लीजिये जनता बाबाओं के पण्डाल में न आए तो बाबा टीवी और सोशल मीडिया के जरिये जनता के घर में जा घुसते हैं। ऐसे में जनता को नेताओं के साथ इन ढोंगी बाबाओं से सावधान रहने की जरूरत है। बाबा भी नेताओं से कम खतरनाक नहीं हैं। ये बाबा जनता को त्याग और माया-मोह से दूर रहने का पाठ पढ़ते हैं और खुद माया-मोह में आकण्ठ डूबे रहते हैं। इनको प्रवचनों के एवज में 5 से 25 लाख रुपए तक चाहिए। ये बाबा ठठरी बांधने के लिए तैयार रहते हैं।
चूंकि मैं लेखक हूं, पत्रकार हूं, अंग्रेजी वाले मुझे ‘वाच डॉग’ और हिन्दी वाले लोकतंत्र का चौथा खम्बा कहते हैं, इसलिए मैं अपना काम कर रहा हूं। आपको जगा रहा हूं। डिस्टर्ब कर रहा हूं। मैं यदि ऐसा नहीं करूंगा तो मेरा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। मुझे श्रुतिमार्ग से गिरा दिया जाएगा और मैं ऐसा नहीं चाहता। मैं चाहता हूं कि लोकतंत्र जिंदा रहे और आप सब जागते रहें। वैसे सोना और जागना व्यक्ति की अपनी मर्जी पर निर्भर करता है। बावजूद इसके व्यक्ति जागरण के लिए घर में अलार्म और घंटालों की व्यवस्था करता ही है। दुर्भाग्य से आज के दौर में सत्ता प्रतिष्ठान ने जनता को जगाने के सभी उपाय बंद कर दिए हैं। सत्ता प्रतिष्ठान को जागती जनता पसंद नहीं है। सत्ता प्रतिष्ठान के लिए सुप्त जनता ही मुफीद लगती है।
लोकतंत्र का सौभाग्य है कि मुद्दई लाख जनता को सुलाना चाहे जनता सोती नहीं है। जनता जागती है, एक के बाद एक सूबे में जागती है। पंजाब में जागी, कर्नाटक में जागी, हिमाचल में जागी, दिल्ली में जागी। फलस्वरूप वहां तब्दीली आई। मैं कहता हूं कि रोटी हो या सत्ता बदलते रहना चाहिए। घोड़े की जीन हो या सत्ता बदलते रहना चाहिए, अन्यथा नुक्सान हो जाता है। सत्ता को बदले बिना इस नुक्सान को टाला नहीं जा सकता। जनता सत्ता बदलने में सिद्ध हस्त है। जनता ने दुर्गा इन्दिरा की सत्ता बदली। जनता ने अवतार पुरुष नरेन्द्र मोदी को सत्ता दी। अब जनता ही ये सत्ता मोदी जी से ले सकती है और दे भी सकती है। इसमें हमारा-आपका कोई दखल नहीं है।
देश की जनता को राजा मान्धाता की तरह देश को दुर्दिनों से उबारने के लिए ऋषि अंगिरा की सलाह मानकर तपस्वी शूद्र का वध करने के बजाय लोकतंत्र की शुद्धि के लिए व्रत, उपवास करना चाहिए और लोकतंत्र की रक्षा के लिए जागते रहना चाहिए। लोकतंत्र में जागरण ही सुरक्षा का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। मैंने अपना काम कर दिया, अब बारी आपकी है। मैं फिर कहता हूं कि जागते रहो! जागते रहो!!