भिण्ड, 28 मई। भारतीय जनता युवामोर्चा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अतुल रमेश पाठक ने वीर सावरकर की जयंती के अवसर पर उन्हें याद करके श्रृद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर अतुल रमेश पाठक ने कहा कि वीर सावरकर एक स्वतंत्रता सेनानी और अतुलनीय देशभक्त थे। एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उनके संघर्षों को भुलाया नहीं जा सकता। अत्यधिक शारीरिक और मानसिक यातनाओं के सामने उनकी बहादुरी को कभी कम नहीं आंका जाना चाहिए। उनकी पुस्तकें क्रांतिकारियों के लिए गीता के समान थी, उनका जीवन बहुआयामी था। पाठक ने कहा कि वीर सावरकर छोटी उम्र से ही बहिर्मुखी और अत्यंत देशभक्त थे। उन्होंने दोस्तों के एक समूह का आयोजन किया और इसे मित्र मेला कहा। वास्तव में उन्होंने 15 साल की छोटी उम्र (1898 में) में शपथ ली थी कि वह अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराएंगे। सावरकर के जीवन पर दो प्रमुख प्रभाव उनके भाई और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक थे। सावरकर के बचपन में उनकी मां उन्हें महाकाव्य रामायण और महान हिन्दू मराठा शासक महाराजा छत्रपति शिवाजी की कहानियां सुनाया करती थीं। दूसरे शब्दों में सावरकर आदिकाल से ही अपने धर्म और राष्ट्र के प्रति जागरूक थे। वीर सावरकर ने लंदन में ग्रेज इन लॉ कॉलेज में पढ़ाई की और बैरिस्टर बन गए। वीर सावरकर ने लंदन में फ्री इंडिया सोसाइटी की स्थापना की, जो भारत के बाहर से भारत की आजादी के लिए लडऩे वाले क्रांतिकारियों का एक और समूह था। लंदन में रहते हुए सावरकर ने भारतीय और विश्व इतिहास को बड़े पैमाने पर पढऩा शुरू किया। 1909 में उनकी पुस्तक ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1857’ प्रकाशित हुई। उस समय तक अंग्रेजों ने स्वतंत्रता के लिए पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को मात्र विद्रोह के रूप में खारिज कर दिया था। भीकाजी कामा ने नीदरलैंड, फ्रांस और जर्मनी में ऐतिहासिक पुस्तक प्रकाशित करने में मदद की, जब ब्रिटेन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित करने के लिए पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया। इस पुस्तक को स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा एक प्रकार की अनिवार्य पठन सामग्री माना जाता था। इसने बाद में भगत सिंह और अन्य जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया।