– राकेश अचल
आज मैं सियासत कोई बात नहीं करूंगा, आज रक्त की बात होगी। रक्त वो जो हम सबकी धमनियों और शिराओं में बहता है। आदिकाल से बह रहा है और अनंतकाल तक बहता रहेगा। रक्त का काम ही बहना है। रक्त फैक्ट्री में नहीं बनता, जिस्म में बनता है। अमूमन रक्त का रंग लाल होता है (अपवादों को छोडक़र)। रक्त के समूह भी खोजे गए हैं। रक्त को खून, लहू, लोहू, रुधिर भी कहते हैं, रक्त की जाति नहीं होती।
रक्त दान किया जाता है, रक्त पान किया जाता है, रक्त स्नान किया जाता है, रक्तपात भी होता है। दूसरी जुबान में रक्तपात को खून-खराबा भी कहते हैं। रक्त की पिपासा मनुष्य, जानवर और तलवार को होती है। कुछ लोग रक्त से युवतियों की मांग भी भरते हैं। रक्त से आप प्रेम पत्र, धमकी भरा पत्र और विरोध जताने के लिए ज्ञापन भी लिख सकते हैं। रक्त रंगों में बहने के अलावा सडक़ों पर और प्लास्टिक की नलियों में भी बहता है। रक्त में लोहतत्व अधिक पाया जाता है, किंतु रक्त से लोहा अलग नहीं किया जा सकता।
रक्त के प्रवाह की गति को रक्तचाप कहते हैं। रक्तचाप दो तरह का होता है। एक उच्च रक्तचाप, दूसरा निम्न रक्तचाप। रक्तचाप के घटने बढऩे को बीमारी माना जाता है। इसके लिए दवाएं खाना पड़ती हैं। विज्ञान के मुताबिक एक शारीरिक तरल (द्रव्य) है, जो लहू वाहिनियों के अंदर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाजमा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाजमा वह निर्जीव तरल माध्यम है, जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। यानि रक्त को तैरने में मजा आता है।
डॉक्टरों के मुताबिक प्लाजमा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाजमा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगों तक ले जाकर उन्हें फिर साफ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाई ऑक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (एनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वेत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा में सहायक होते हैं।
हमारे फैमिली डॉक्टर कहते हैं कि मनुष्य-शरीर में करीब पांच लीटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर 120 दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली में टूटती रहती हैं। परंतु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती।
दिलचस्प और महत्वपूर्ण बात ये है कि रक्त ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से रक्त को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दूसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप ‘ओ’ कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परंतु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का पीएच मान 7.4 होता है ।
रक्त साहित्यकारों के काम भी खूब आता है। सिपाही खून की नदियां बहा सकता है, तो साहित्यकार खून के रंग की तमाम उपमाएं गढ़ सकता है। इतिहासकार इतिहास को रक्तरंजित बना सकता है। नेता आपने भाषणों से आपका खून यानि रक्त खौला सकता है। रक्त शोधन की भी चीज है। जोंक को इंसानों का ही नहीं अपितु जानवरों का रक्त भी बहुत प्रिय है। रक्त दाढ़ में लग जाए तो मुश्किलें पैदा कर सकता है। वनराज की दाढ़ में यदि इंसान का रक्त एक बार लग जाए तो इंसानों की खैर नहीं। इंसान की दाढ़ में रक्त लगने का क्या असर होता है मुझे पता नहीं। यानी रक्त तो रक्त है। रक्त की बूंद जहां गिरेगी कुछ न कुछ पैदा होगा। रक्त के बीज भी तो होते हैं। रक्तबीज का अर्थ होता है, रक्त से निकले हुए बीज, अर्थात रक्त से उत्पन्न होने वाला एक नया जीव। रक्तबीज एक दैत्य था। रक्तबीज और महाकाली की लड़ाई हुई थी, जिसमें माता पार्वती ने महाकाली का रूप धारण कर रक्तबीज का वध किया था। हमने रक्तबीज नाम के दैत्य को तो देखा नहीं, लेकिन मंहगाई के रूप में उसे महसूस जरूर किया है और हम सब इस दैत्य से लड़ रहे हैं, क्योंकि ये कलियुग में भी आदमी का रक्तपान कर रहा है। ऐतिहसिक फिल्मों में रक्त हीरो के तिलक करने के काम आता था। खून वैसे आंखों में भी उतर आता है, तैरता है।
इस युग में इतिहास ही नहीं सियासत भी रक्ताभ हो रही है। दुनिया के हर कौन में रक्तपात हो रहा है। रूस, यूक्रेन में रक्तपात कर रहा है तो हमारे यहां मणिपुर में रक्तपात जारी है। इसे रोकने की जरूरत है, लेकिन रोके कौन। रक्त की कहानी अनंत है, अनादि है, हरी कथा की तरह। इसलिए रक्त को लेकर हमेशा सचेत रहिए। रक्त की जांच कराते रहिए। रक्त विकार अनेक बीमारियों की पूर्व सूचना देने में सक्षम है। रक्त की विवेचना से चिकित्सा जगत में क्रांति हुई है। क्रांति से याद आया की दुनिया में केवल श्वेत या हरित क्रांतियां ही नहीं हुई, अपितु रक्त क्रांतियां भी बहुत हुई हैं। बल्कि क्रांति का रंग ही लाल होता है। शायद इसीलिए दुनिया के वामपंथियों ने अपने झण्डे का रंग भी रक्ताभ चुना है, लाल रंग देखकर आदमी ही नहीं सांड तक भडक़ जाते हैं। खैर! आज इसी रक्त-गाथा से काम चलाईए। कल फिर किसी नए विषय के साथ मिलते हैं।
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