– राकेश अचल
कुछ लोगों को आग बहुत अच्छी लगती हैं, वे आग लगे तो खुश हो जाते हैं, उछलने-कूदने लगते हैं। उन्माद में बजरंगबली के जयकारे लगाने लगते हैं। उन्हें आग से डर नहीं लगता, वे पक्के आग्नेय होते हैं।
इस समय मणिपुर जल रहा है, आधिकारिक रूप से मणिपुर में 50 लोग मारे जा चुके हैं। बे-मौत मारे गए इन लोगों को दिल्ली चाहती तो बचा सकती थी, क्योंकि मणिपुर में डबल इंजन की सरकार है। एक इंजन मणिपुर का तो दूसरा दिल्ली का लगा है, लेकिन दिल्ली को फुर्सत कहां? दिल्ली तो कर्नाटक में उलझी है। दिल्ली के लिए मणिपुर से ज्यादा महत्वपूर्ण कर्नाटक है। मणिपुर में दिल्ली का है क्या? आग मणिपुर में ही नहीं दिल्ली में भी लगी है, लेकिन मजाल कि दिल्ली इस आग का भूले से भी जिक्र करे। दिल्ली में पहलवान सडक़ों पर हैं। महिला पहलवानों की अस्मिता से खिलवाड़ करने वाले सांसद की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं किंतु दिल्ली स्थितिप्रज्ञ है। दिल्ली छोटी दिल्ली के उप मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करने के लिए तो उत्सुक थी, लेकिन अपने दल के सांसद की गिरफ्तारी में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं।
दिल्ली की आग लगातार फैल रही है, पहलवानों के साथ अब आस-पास के किसान खड़े होने जा रहे हैं, किंतु किसानों से दिल्ली डरती ही नहीं। दिल्ली अतीत में 700 से ज्यादा किसानों की जान ले चुकी है। उसके लिए किसान कभी कोई चुनौती नहीं रहे। 19 महीने के किसान आंदोलन को दिल्ली ने झूठ बोलकर निबटा दिया। दिल्ली हर किसी को निबटाना जानती है, सिवाय अपने आपको। दिल्ली को मणिपुर की आग से क्या? जम्मू कश्मीर के खून खराबे से क्या? महिला पहलवानों के आर्तनाद से क्या? दिल्ली वाले गालियां खा सकते हैं किंतु आग के बारे में एक लफ्ज नहीं बोलते। दिल्ली को बोलना आता ही नहीं। दिल्ली केवल गाल बजा सकती है। दिल्ली कर्नाटक की जनता से वोट डालते वक्त जय बजरंगबली का नारा लगाने का गैरकानूनी आव्हान कर सकती है। दिल्ली किसी से नहीं डरती, भगवान से भी नहीं।
दिल्ली को चारों तरफ आग ही आग पसंद है। अगर आग न दिखाई दे तो दिल्ली घबड़ाने लगती है, उसका खाना नहीं पचता। दिल्ली जानती है कि आग से ही तो खिचड़ी पकती है। दिल्ली वाले अब अपने इर्द-गिर्द देखते ही नहीं। यहां तक कि उन्हें मप्र में अपने खुद के घर में लगी आग नहीं दिखाई दे रही। धुआं उठता नजर नहीं आ रहा। हालांकि दिल्ली के लिए अब बुझने लगे हैं। दिल्ली वालों के अपने घर में भगदड़ शुरू हो चुकी है। दिल्ली न अडानी पर बोली, न मणिपुर पर डोली। दिल्ली ने न पहलवानों के मामले में मुंह खोला और न कश्मीर में जवानों की मौत पर दिल्ली का दिल डोला। दिल्ली पर किसी बात का कोई असर नहीं होता, हो भी नहीं सकता। क्योंकि दिल्ली अब रोबोट है। हृदयहीनता से भर चुकी है। आप उसे बोलते सुनने के लिए तरस रहे हैं तो बेकार तरस रहे हैं। दिल्ली केवल चुनावी रैलियों में बोलती है। पार्टी के फाइव स्टार दफ्तरों में बोलती है। कैमरों के सामने बोलती है। टेलीप्रामटर के सामने बोलती है। आकाशवाणी पर बोलती है।
दिल्ली कहीं आती जाती नहीं है। दिल्ली किसी से बतियाती भी नहीं है। दिल्ली एकांकी है। दिल्ली का मकसद एकदम अलग है। दिल्ली को देश नहीं बनाना, मन्दिर बनाना है। दिल्ली को मणिपुर और कश्मीर नहीं बचाना, अपनी कुर्सी बचाना है। दिल्ली को फिक्र नहीं कि उसकी मुद्रा की कितनी फजीहत हो रही है? डालर दिल्ली की मुद्रा का दम निकाल रहा है। रूस ने दिल्ली की मुद्रा को ठुकरा दिया है। फिर भी दिल्ली अकड़ में है। दिल्ली विश्वगुरू है, वो किसी से क्यों डरने लगी?
आज सब दिल्ली से डरते हैं, कुछ संगठित होकर दिल्ली का मुकाबला करना चाहते हैं तो कुछ मन मसोस कर खामोश बैठे हैं। कुछ वक्त का इंतजार कर रहे हैं। दिल्ली सबको आंखें दिखाती है। ईडी और सीबीआई से डराती है। दिल्ली के पास कानून से भी ज्यादा लंबे हाथ है। दिल्ली किसी भी गर्दन नाप और नपवा सकती है। अब दिल्ली बहादुर शाह जफर की दिल्ली नहीं रही। दिल्ली अब गालिब और खुसरो वाली दिल्ली भी कहीं खो गई है। अब दिल्ली दिल वालों के हाथ से भी जा चुकी है। आज की दिल्ली गुजरात की दिल्ली है। बनारस की या लखनऊ की दिल्ली है। अब जलते, सुलगते देश को बचाने के लिए दिल्ली नहीं आएगी। देश आपको बचाना होगा। देश जागरुक होने से बचता है। परिवर्तन से बचता है। बलिदान से बचता है। वोट के सही इस्तेमाल से बचता है। अब आपके ऊपर है कि आप मणिपुर, जम्मू-कश्मीर और शेष भारत बचाना चाहते हैं तो जागिए, जगाइए।