मन की बात सुनाने की मजबूरी

– राकेश अचल


देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के मन की बात का शतक पूरा हो रहा है। माननीय को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं। 2014 से मन की बात करने वाले वे देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। मन की बात, मन से करना आसान काम नहीं। प्रधान जी के मन की बात का नसीब है कि उसे आकाशवाणी से प्रसारित किया जाता है। आकाशवाणी जमीन के लोगों के मन की बात कभी नहीं करती। आकाशवाणी देवताओं की वाणी है। आदिकाल से है, त्रेता में भी थी, द्वापर में भी रही और कलियुग में तो है ही। आकाशवाणी पर जनता का नहीं, सरकार का अधिकार होता है, होना भी चाहिए। जनता आकाश तक कभी पहुंच सकती है क्या?
प्रधानमंत्री के मन की बात सुनना राष्ट्रीय कर्तव्य है। सुनो तो कुछ मिलेगा ही और अनसुना किया तो नुकसान ही नुकसान। अब मन की बात के सौवें एपीसोड को सुनाने के लिए सरकार ने भाजपा को जिम्मेदारी सौंपी है। पार्टी ब्लाक स्तर पर कम से कम सौ कार्यकर्ता जुटाकर उन्हें प्रधानमंत्री जी के मन की बात सुनाएगी। ये कार्यकर्ता पर है कि वो मन की बात को मन से सुने अथवा न सुने। मेरे पास मन की बात सुनने के लिए रेडियो नहीं है, फिर भी मैं इधर-उधर से प्रधानमंत्री जी के मन की बात सुनता हूं। ये मेरी दरियादिली समझ लीजिए या देशप्रेम! आपकी मर्जी है। मन की बात मेरी समझ में आए या न आए, इससे मन की बात पर कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे भी प्रधानमंत्री जी पर किसी चीज से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे देवता हैं और देवताओं पर इनसानों की बात कभी असर नहीं डालती। डाल भी नहीं सकती।
मैंने सबसे पहले मन की बात आई एस जौहर के श्रीमुख से 1973 में सुनी थी। उन्होंने फिल्म इंतजार में मन्ना डे की आवाज में वर्मा मलिक द्वारा लिखी मन की बात का सस्वर पाठ किया था। जौहर के मन की बात मुझे 50 साल बाद भी याद है, क्योंकि वो सबके मन की बात थी। आज की तरह केवल प्रधानमंत्री जी के मन की बात नहीं। प्रधानमंत्री जी को बार-बार मन की बात करना पड़ती है, क्योंकि जनता उसे एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकाल देती है।
बात अगर जनता के मन की हो तो सालों साल याद रहती है। बात जब मनमानी की हो तो उसे याद रखना मुश्किल होता है। मन की बात और बेमन की बात में भेद है। अगर आप सचमुच सच्चे मन से मन की बात करें तो उसे सुनाने के लिए सरकार या पार्टी को तामझाम नहीं करना पड़ते। जनता सौ काम छोडक़र मन की बात सुनती है। लेकिन ‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं’ वाली बात है। प्रधानमंत्री जी समर्थ हैं, पूरे देश को अपने मन की बात सुना सकते हैं। कोई उन्हें रोक नहीं सकता। रोकना भी नहीं चाहिए।
प्रधानमंत्री जी के मन की बात पर आप शोध कर सकते हैं। पीएचडी हासिल कर सकते हैं। प्रधानमंत्री जी के मन की बात के सभी एपीसोड सुरक्षित है। बहरहाल मैं आपको 1973 में पहली बार की गई मन की बात पढ़वाता हूं।

मन की बात

मन को पिंजरे में न डालो, मन का कहना मत टालो।
मन को पिंजरे में न डालो, मन का कहना मत टालो।।
अरे मन तो है एक उड़ता पंछी, जितना उडे उड़ा लो।
मन को पिंजरे में न डालो, मन का कहना मत टालो।।
मन जो काहे के प्यार करो, एक बार नहीं सौ बार करो।
ये प्यार दिया उसने निभाने के लिए, जी प्यार दिया उसने निभाने के लिए।।
रूप दिया सिर्फ दिखाने के लिए, आंखे बनाई है लड़ाने के लिए।
तो दिल दिया उसने मिलाने के लिए, अरे प्यार एक पुण्य है प्यार है जप।।
नहीं होता तो भी करो अपने आप, प्यार कोई पाप नहीं प्यार है मिलाप।
प्यार बिना जीवन है टोटल फ्लॉप, पुण्य पाप के चक्कर में कोई पद के सके न बच।।
क्यों रे चेले झूठ कहा, नहीं गुरु जी बिल्कुल सच, थैंक यू वेरी मच।
मन को पिंजरे में न डालो, मन का कहना मत टालो।।
मन कहे अगर व्हिस्की पियो, फिर जिसकी मिले तुम उसकी पियो।
अरे पीने की चीज है ये, करो मत गम।
कभी नहीं सोचना के ठर्रा या राम, इतनी पियो के उखड़ जाये दम।।
बाटली मिले तो बाटली खतम, अरे जब व्हिशकी से मन भर जाएगा।
भर जायेगा तो तौबा कर जायेगा, मन पे जो कोई काबू कर जायेगा।।
भव सागर से वो तर जायेगा, मोटी अकल वाले न समझे, मेरी बात बारीक है।
मन को पिंजरे में न डालो, मन का कहना मत टालो।।
ढीली छोड़ दो मन की लगाम, अमर हो जाए जग में नाम।
जिसके मन ने किया भाई है, उसने देखो मुक्ति पाई है।
जैसे राधा मीरा बाई है, दोनों को ही मिला कृष्ण कन्हाई है।।
पर जिस जिस का मन अटक गया, वो राहों में भटक गया।
अगर जरा ये खटक गया, तो समझो प्राणी लटक गया।।
ये तो है एक उडता कबूतर, इसका उडऩा फेस है।
मन को पिंजरे में न डालो, मन का कहना मत टालो।
अरे मन तो एक उड़ता पंछी, जितना उडे उड़ा लो।।

मन की बात के सौवें संस्करण की तुलना मन की बात के जौहर संस्करण से कीजिए और बताइए कि आपको किसके मन की बात बेहतरीन लगी।