भिण्ड, 28 अक्टूबर। भोपाल के केरवा डेम स्थित शारदा विहार आवासीय विद्यालय सरस्वती शिशु मन्दिर परिसर में आयोजित प्रांतीय युवा चिंतन शिविर का शुभारंभ अखिल विश्व गायत्री परिवार के युवा प्रतिनिधि एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने किया। जिसमें भिण्ड जिले से 100 युवा शामिल हुए।
डॉ. चिन्मय पंड्या ने विचार क्रांति अभियान की प्रतीक मशाल प्रज्ज्वलित कर एवं धर्म ध्वजारोहण के माध्यम से कार्यक्रम का औपचारिक उद्घाटन किया। इस अवसर पर प्रदेशभर से आए युवाओं द्वारा सप्त क्रांति अभियान एवं रचनात्मक कार्यक्रमों की थीम पर आधारित आयोजित परेड का प्रतिकुलपति ने अवलोकन किया। भारत के हृदय मप्र जो अनेकों प्रांतीय एवं राष्ट्रीय युवा शिविरों का साक्षी रहा है, वहीं वंदनीया माता भगवती देवी शर्मा एवं अखण्ड दीपक शताब्दी वर्ष से पूर्व युवाओं में नई चेतना का संचार करने हेतु यह तीन दिवसीय प्रांतीय युवा चेतना शिविर (27 से 29 अक्टूबर) आयोजित हो रहा है। भिण्ड से 100 प्रांतीय युवा चिंतन शिविर सम्मिलित हुए।
कार्यक्रम स्थल युवा चेतना से राष्ट्र चेतना एवं व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के उद्घोष से गुंजायमान हो उठा, जहां नवयुवाओं ने राष्ट्र निर्माण के संकल्प को पुन: दोहराया। जिसमें हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे। शरीर को भगवान का मन्दिर समझकर आत्म संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे। मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे। इन्द्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे। अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे। मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे। समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे। चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे। अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद् विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे। दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें अपने लिए पसंद नहीं। नर-नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे। संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे। परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्व देंगे। सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नवसृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे। राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान रहेंगे, जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, संप्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएंगे, तो युग अवश्य बदलेगा। हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।







