मप्र की सचल कैबिनेट या तुष्टिकरण?

– राकेश अचल


मप्र में शायद सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। यानि अमन है, चैन है। तभी तो मप्र सरकार की कैबिनेट बैठक इस बार भोपाल के बजाय इंदौर में आयोजित की गई है। सरकार रानी अहिल्या बाई के प्रति अपने सम्मान का मुजाहिरा करना चाहती है। रानी की 300वीं जयंती 20 मई को है।
भोपाल से बाहर मंत्रिमण्डल की बैठकों की रिवायत नई नहीं है। राजा, महाराजा, नबाब और अंग्रेज ये शौक फरमाते रहे हैं। चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकारों ने भी इस रिवायत को छोडा नहीं है। ग्वालियर रियासत में राजधानी गर्मियों में ग्वालियर से हटकर शिवपुरी ले जाई जाती थी। भोपाल वाले पचमढ़ी की शरण लेते थे। इस तरह सचल कैबिनेट के तमाम किस्से हैं। लेकिन मोहन यादव सरकार की कैबिनेट बैठक इंंदौर में होना अलग बात है।
बैठकें राजधानी भोपाल में हों या बाहर कोई खास फर्क नहीं पडता। थोडा बहुत वित्तीय बोझ पडता है तो सुशासन के नाम पर उसे झेलना जनता की जिम्मेदारी है। सवाल ये है कि रानी अहिल्या बाई के सम्मान की फिक्र अचानक क्यों करने लगी सरकार। कल को ग्वालियर वाले महाराज कहेंगे कि बैजाबाई के सम्मान में बैठक ग्वालियर करो तो जाना पडेगा। परसों रानी दुर्गावती के सम्मान का मुद्दा खडा हो सकता है। लेकिन भविष्य की फिक्र कौन करता है, सबको आज की फिक्र है, आज रानी अहिल्या बाई होल्कर की 300वीं जयंती का मामला है।
कैबिनेट का स्थान, समय बदलने से कैबिनेट का चरित्र नहीं बदल सकता। कैबिनेट सामंतों के सम्मान में जो करे सो कम है, क्योंकि आज भी सत्ता प्रतिष्ठान की मानसिकता पर होल्करों और सिंधियाओं का असर है। सामंतवाद का नशा उतरने में बहुत वक्त लेता है। फिर यदि सामंत सत्ता प्रतिष्ठान का अभिन्न अंग हों तो इह विषय पर बहस ही बेमानी है।
मैं किसी का दिल नहीं दुखाना चाहता। किसी के सम्मान में गुस्ताखी नहीं करना चाहता। किंतु जानना चाहता हूं कि सूबे के वजीरेआला खुद 31 दिन में से कितने दिन सचिवालय में अपने कार्यालय में बैठें? डॉ. मोहन यादव का पांव भोपाल में टिकता ही कहां है। वे सबसे ज्यादा सचल मुख्यमंत्री हैं। उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान से भी ज्यादा सचल मुख्यमंत्री हैं। उनका एक पांव हैलीकॉप्टर में तो दूसरा हवाई जहाज में रहता है।
खबर है कि यह बैठक इंदौर के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के राजबाडा परिसर में होगी। सुशासन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की प्रतीक देवी अहिल्याबाई के सम्मान में यह बैठक मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशा के अनुरूप आयोजित की जा रही है। बैठक की प्रशासनिक तैयारियां प्रारंभ हो गई हैं। कलेक्टर आशीष सिंह सब काम छोड कर कैबिनेट बैठक की तैयरियों में लगे हैं। कलेक्टर सिंह ने बैठक के दौरान आयोजन से जुडी सभी व्यवस्थाओं-मंत्रीगणों एवं वरिष्ठ अधिकारियों के आवास, परिवहन, यातायात, बैठक स्थल की तैयारी और भोजन आदि की बिंदुवार समीक्षा की। उन्होंने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए कि सभी व्यवस्थाएं समय पर और आयोजन की गरिमा के अनुरूप पूरी की जाएं ताकि किसी भी अतिथि को असुविधा का सामना नहीं करना पडे।
प्रशासन ने राजबाडा को भव्य रूप से सजाने, सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखने और शहर में यातायात को सुचारू बनाए रखने के लिए विशेष निर्देश जारी किए हैं। यह आयोजन न केवल देवी अहिल्याबाई के योगदान को श्रद्धांजलि है, बल्कि इंदौर के सांस्कृतिक गौरव को भी रेखांकित करेगा।
मैं इस बैठक के रत्तीभर खिलाफ नहीं हूं, क्योंकि मुझे पता है कि बीन कहां बजाना चाहिए और कहां नहीं। इस बैठक से इंदौर का, अहिल्या बाई का कुछ भला हो तो जरूर हो, लेकिन सूबे के दूसरे अंचलों की उपेक्षा भी नहीं की जाना चाहिए। विकास समेकित हो, बैठक भले ही आप श्रीनगर में कर लीजिए, कोई फर्क नहीं पडने वाला। पिछले 16 महीने में प्रशासन के कामकाज पर अभी तक डॉ. मोहन यादल की छाप नजर नहीं आ रही। उनकी पुलिस का इकबाल खत्म हो रहा है। पुलिस थाने में पिट रही है। पुलिस कमिश्नर प्रणाली से चल रहे भोपाल और इंदौर में लव जिहाद चल रहा है, किंतु कहीं कोई हलचल नहीं।
विकास की दौड में हर मुख्यमंत्री इंदौर पर दांव लगाता आया है। कांग्रेस के राज में भी यही दशा थी, भाजपा के राज में भी यही सब चल रहा है। ग्वालियर और जबलपुर की चिंता किसी को नहीं है। भोपाल राजधानी होने की वजह से विकसित हो ही रहा है। इंदौर में कैबिनेट की बैठक का खर्च इंदौर से थोडे ही वसूल किया जाएग। ये तो हमारी, आपकी जेब से ही वसूल किया जाएगा। 20 मई के बाद देखते हैं कि क्या गुल खिलता है? हमारी शुभकामनाएं।