धर्म का धंधा सबसे चोखा धंधा

– राकेश अचल


यदि आप निवेश करने की सोच रहे हैं तो एसआईपी, एफडी, शेयर बाजार के फेर में न पड़ें। निवेश के लिए कलियुग में धर्म का क्षेत्र सबसे ज्यादा सुरक्षित है। मुमकिन है कि आपको मेरी बात पर यकीन न आए या आप मेरी बात को धर्म विरोधी अथवा सनातन विरोधी कह उठें, लेकिन मैं जो कह रहा हूं वो सोलह आने सच है। यदि आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं है तो आप उत्तर प्रदेश के उत्तरदायी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बूझ लीजिए। धर्म क्षेत्र में निवेश करने भर से उत्तर प्रदेश सरकार की बल्ले-बल्ले हो गई है, वो भी एक महीने में।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 12 जनवरी 2025 से शुरू हुया कुम्भ अब समापन की और है। एक महीने के कुम्भ में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहां भगदड़ में कुल 30 लोग मरे वहीं देश के 50 करोड़ लोगों ने कुम्भ में डुबकी लगाकर उत्तर प्रदेश सरकार को डूबने से बचा लिया। सरकार ने मात्र 15 हजार करोड़ रुपए का निवेश कर कुम्भ से करीब तीन लाख करोड़ रुपए की कमाई कर दिखाई। आपको याद होगा कि इस समय उत्तर प्रदेश के हर आदमी के ऊपर 31 हजार रुपए का कर्ज है। सरकार पर तो ये कर्ज लाखों करोड़ का है। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ये रहस्योदघाटन एक सरकारी समारोह में किया।
भारतीय परंपरा और इतिहास में धर्म में निवेश का जरिया अब तक केवल मन्दिर थे। मन्दिरों हमारी आस्था के साथ-साथ देश की समृद्ध धार्मिक विरासत के भी प्रतीक हैं। एक अनुमान के मुताबिक देशभर में 5 लाख से अधिक मन्दिर हैं। देश में कई ऐसे मन्दिर हैं जहां हर साल करोड़ों का चढ़ावा आता है। लोग मन्दिरों में जाकर मन्नत मांगते हैं और इसके पूरी होने पर अपनी हैसियत के मुताबिक मन्दिरों में रुपए, सोना और चांदी आदि दान करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने पहली बार धर्म के जरिये खजाना भरने की तकनीक का इस्तेमाल किया, अन्यथा कुम्भ तो सदियों से आयोजित होता रहा है, लेकिन कुम्भ को इवेंट बनाकर कमाई पहली बार की गई है। पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को भी धर्म क्षेत्र में निवेश की अक्ल नहीं आई थी।
आपको बता दें कि केरल में स्थित पद्मनाभ स्वामी मन्दिर भारत का सबसे अमीर मन्दिर है। ये मन्दिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में है। इस मन्दिर की देखभाल त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार द्वारा की जाती है। इस मन्दिर को खजाने में हीरे, सोने के गहने और सोने की मूर्तियां शामिल हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, मन्दिर की 6 तिजोरियों में कुल 20 अरब डॉलर की संपत्ति है। यही नहीं, मन्दिर के गर्भग्रह में भगवान विष्णु की बहुत बड़ी सोने की मूर्ति विराजमान है, जिसकी कीमत 500 करोड़ रुपए है। तिरुपति मन्दिर में हर साल लगभग 650 करोड़ रुपए दान के रूप में देते हैं। लड्डू का प्रसाद बेचने से ही मन्दिर को लाखों रुपए की कमाई होती है। तिरूपति मन्दिर भगवान वेंकटश्वर को समर्पित है, जिन्हें विष्णुजी का अवतार माना जाता है। माना जाता है कि मन्दिर के पास नौ टन सोने का भण्डार है और विभिन्न बैंकों में फिक्स डिपॉजिट में 14 हजार करोड़ रुपए जमा हैं।
जाहिर है कि हमारे देश में युद्धक विमान बनाने, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करने से जितना मुनाफा नहीं हो सकता जितना कि धर्म के क्षेत्र में निवेश करने से हो सकता है। कुम्भ में कमाई को देखते हुए मुमकिन है कि आगामी आम बजट में हमारी केन्द्रीय वित्तमंत्री अपने सीतारामी बजट में धार्मिक क्षेत्र में निवेश के लिए एफडीआई शुरू कर दें। ताकि विदेशी भी इस क्षेत्र में निवेश कर कुछ कमाई कर सकें और भारत की अर्थ व्यवस्था को 5 ट्रिलियन की अर्थ व्यवस्था बनाने में योगदान कर सकें। इस्कॉन तो पहले से ही इस क्षेत्र में निवेश कर माल पीट रहा है। इस्कान के मन्दिर ही नहीं, बल्कि भोजनालय और रिसोर्ट भी अकूत कमाई कर रहे हैं।
हाल की अमरीका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से धर्म के क्षेत्र में अमरीकी निवेश की बात करना थी। भारत अमेरिका को तो कुछ और तो बेचने से रहा, इसलिए कम से कम धर्म का क्षेत्र निवेश के लिए खोलकर अमेरिका से तेल, फाइटर विमान और न्यूक्लियर इनर्जी खरीदने से होने वाले घाटे की भरपाई तो कर ले। वैसे भी भारत के पास खरीदने के अवसर तो हैं लेकिन बेचने के नहीं। भारत ज्यादा से ज्यादा अपना आत्म सम्मान बेच सकता है, सम्प्रभुता गिरवी रख सकता है। हमारी मौजूदा सरकार ने ये काम किया है। भारत की धरती पर अवैध प्रवासियों को लेकर ए अमेरिका कि सैन्य विमानों को उतरने की अनुमति देकर। काश! मोदी जी धर्म के जरिये योगी की तरह कुछ कमाने के लिए अमरीका, चीन या रूस के साथ कोई संधि कर पाते।
मुझे उम्मीद है कि योगी जी के सफल प्रयोग के बाद अब भविष्य में उत्तराखंड, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की सरकारें धर्म क्षेत्र में निवेश के लिए नई योजनाएं बनाकर कमाई का नया स्त्रोत विकसित करने का साहस जुटा पाएंगी। मुमकिन है कि योगी जी अखिलेश यादव जैसे अपने आलोचकों का मुंह भी कुम्भ से हुई कमाई दिखाकर बंद करने की कोशिश करें। अब ‘सम्भवामि युगे-युगे’ की जगह ‘धर्मक्षेत्रे युगे-युगे’ कहा जाएगा।