राहुल गाँधी को संघ के दाफ्तर जाना चाहिए

@ राकेश अचल


सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले यदि कांग्रेस के नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को संघ कार्यालय आने का निमंत्रण दे रहे हैं तो मैं निजी तौर पर राहुल गांधी को सलाह दूंगा के वे होसबोले का निमंत्रण स्वीकार कर नागपुर चले जाएं। उनके लिए अपनी बात रखने और मुहब्बत का सामान बेचने का ये स्वर्ण अवसर है। संघ कार्यालय जाकर वे अपवित्र नहीं हो जाएंगे।
होसबोले से पहले आरएसएस के दिल्ली प्रांत प्रचारक वसंतराव ओक तब के गांधी महात्मा मोहनदास कारम चांद गांधी को सन्कघ की शाखा में बुला चुके हैं और गांधी जी वहां जा चुके हैं, लेकिन इससे गांधी का कोई नुकसान नहीं हुआ था। राहुल गांधी को भी महात्मा गांधी की तरह साहस दिखाना चाहिए। वैसे भी संघ भले ही एक साम्प्रदायिक छाप वाला संगठन हो लेकिन है तो भारतीय संस्था। उसके पीछे कोई विदेशी ताकत नहीं है। जो है सो स्वदेशी ताकतें हैं।
भाजपा अपने से असहमत जन नेताओं की अग्निपरीक्षा लेता रहता है, लेकिन उसके हाथ कुछ लगता नहीं है। मैंने कहीं पढ़ा था की 16 सितंबर 1947 को जब आरएसएस के तत्कालीन दिल्ली प्रांत प्रचारक वसंतराव ओक महात्मा गांधी को भंगी बस्ती की अपनी शाखा में बुला ले गए थे, यह पहला और अंतिम अवसर है कि गांधी संघ की किसी शाखा में जाते हैं। विरोधी हो या विपक्षी, गांधी किसी से भी संवाद बनाने का कोई मौका कभी छोड़ते नहीं थे। वसंतराव ओक का आमंत्रण भी वे इसी भाव से स्वीकारते हैं। राहुल गांधी को भी ये अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
आपको बता दूं कि ओके साहब ने स्वयं सेवकों से परिचय कराते हुए ओक गांधी को ‘हिन्दू धर्म द्वारा उत्पन्न किया हुआ एक महान पुरुष’ बताते हैं। गांधीजी को तब ऐसे किसी परिचय की जरूरत ही नहीं थी लेकिन ऐसा परिचय देकर संघ उन्हें अपनी सुविधा और रणनीति के एक तय खांचे में डाल देना चाहता थे। गांधी जी ऐसे खेलों को पहचानते भी हैं और उनका जवाब देने से कभी चूकते नहीं है। राहुल गांधी को भी हिकमत अमली के साथ संघ में जाकर अपनी बात रखना चाहिए। राहुल गांधी को अपने आदर्श महात्मा गांधी के अंतिम निजी सचिव प्यारेलाल की पुस्तक ‘लास्ट फेज’ जरूर पढ़ लेना चाहिए। इस पुस्तक में (जो हिन्दी में पूर्णाहुति के नाम से उपलब्ध है) प्यारेलाल लिखते हैं कि गांधीजी ने अपने जवाबी संबोधन में कहा, मुझे हिन्दू होने का गर्व अवश्य है लेकिन मेरा हिन्दू धर्म न तो असहिष्णु है और न बहिष्कारवादी। हिन्दू धर्म की विशिष्टता, जैसा मैंने उसे समझा है, यह है कि उसने सब धर्मों की उत्तम बातों को आत्मसात कर लिया है।
महत्मा गांधी ने सभी शाखामृगों को ये कहा कि अगर हिन्दू यह मानते हों कि भारत में अ-हिन्दुओं के लिए समान और सम्मानपूर्ण स्थान नहीं है और मुसलमान भारत में रहना चाहें तो उन्हें घटिया दर्जे से संतोष करना होगा तो इसका परिणाम यह होगा कि हिन्दू धर्म श्रीहीन हो जाएगा। मैं आपको चेतावनी देता हूं कि अगर आपके खिलाफ लगाया जाने वाला यह आरोप सही है कि मुसलमानों को मारने में आपके संगठन का हाथ है। आज से तो उसका परिणाम बुरा होगा। महात्मा गांधी ने संघ के बारे में जो बात 77 साल पहले कही थी राहुल गांधी भी तो वो ही बात 77 साल बाद कह रहे है। यानी इन 77 साल में संघ बिल्कुल नहीं बदला और आगे भी नहीं बदलेगा। संघ यदि अपनी लीक से हटा तो संघ रहेगा ही नहीं। अपनी पहचान खो देगा।
संघ जाने वाले राहुल गांधी कोई पहले कांग्रेसी व्यक्ति तो होंगे नहीं, माना कि महात्मा गांधी के बाद कोई दूसरा कांग्रेसी संघ के दफ्तर नहीं गया, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी तो संघ के बुलावे पर संघ कार्यालय गए थे, उनकी आलोचना भी हुई थी किन्तु वे डिगे नहीं। इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत भी मौजूद थे। प्रणब मुखर्जी का आरएसएस मुख्यालय जाना सबको चौंकाने वाला था। हालांकि प्रणब मुखर्जी ने अपनी पहचान और राजनीतिक जीवन के अनुरूप ही सारी बातें कहीं।
मुझे उस समय का मुखर्जी साहब का भाषण आज भी याद है। उन्होंने कहा था कि ‘सहिष्णुता हमारी मजबूती है। हमने बहुलतावाद को स्वीकार किया है और उसका आदर करते हैं। हम अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं।’ प्रणब मुखर्जी संघ के मंच से ये कहने का साहस जुटा पाए थे कि ‘भारत की राष्ट्रीयता एक भाषा और एक धर्म में नहीं है। हम वसुधैव कुटुंबकम में भरोसा करने वाले लोग हैं। भारत के लोग 122 से ज्यादा भाषा और 1600 से ज्यादा बोलियां बोलते हैं। यहां सात बड़े धर्म के अनुयायी हैं और सभी एक व्यवस्था, एक झण्डा और एक भारतीय पहचान के तले रहते हैं।’
मुझे लगता है कि राहुल गांधी को भी यही सब तो संघ के मंच पर जकर कहना है। मुमकिन है कि संघ के स्वयं सेवकों में से कुछ के समझ में उनकी बात आए और मुमकिन है कि वे उनकी बात सुनकर हांसे भी। लेकिन ये मौका हंसी से डरने का नहीं है। ये अवसर देश के सामने अपनी बात रखने और संघ के छिपे हुए एजेंडे को उजागर करने की है।
मैं तो अपने पत्रकारिता के कालखण्ड में अनेक बार संघ की शखाओं में गया। मैंने सानघ के तत्कालीन प्रमुख मधुकर दत्तात्रय देवरस से लेकर स्व. रज्जू भैया और कुप्प सुदर्शन साहब से भी बातचीत की। मेरा दुर्भाग्य ये है कि मौजूदा संघ प्रमुख डॉ. मोहन यादव से मेरी मुलाकात अभी तक समभ्व नहीं हुई। वे इस समय भी पांच दिवसीय प्रवास पर मेरे शहर ग्वालियर में हैं लेकिन उनसे मेरा मिलना सम्भव नहीं हो रहा है, अन्यथा मै उन्हें राहुल गांधी को संघ कार्यालय बुलाने के निमंत्रण के लिए धन्यवाद देता और कहता की वे भी ब्रह्मकुमारी ईश्वरी विश्व विद्यालय की तरह संघ में पत्रकारों के लिए शिविर आयोजित करें। कम से कम पत्रकार भी तो देखें-जानें कि आखिर ये संघ बला क्या है?
आज कल का जमाना ऑनलाइन शॉपिंग का है। राहुल गांधी ने यदि मोहब्बत की दुकान खोली है तो उन्हें अपना माल बेचने के लिए ऑनलाइन और ऑफ लाइन दोनों विकल्पं का इस्तेमाल करना होगा। उन्हें अपने परम् और चिर विरोधियों से भी संवाद करने का साहस जुटाना होगा। अन्यथा संघ और भाजपा उन्हें ‘पप्पू’ ही बनाए रखने में लगी रहेगी। अब ये राहुल गांधी के ऊपर है की वे जीते जी संघ कार्यालय जाएंगे या नहीं?