भिण्ड, 10 जनवरी। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से जुडे गोकुल सिंह परमार ने बताया कि आखिरकार वह समय आ ही गया जिसका हम सबको बेसब्री से इंतजार था। राम जन्मभूमि के ऊपर जबरन बनाई गई बाबरी मस्जिद को विगत 500 साल के संघर्ष को जारी रखते हुए कारसेवकों का एक दल भिण्ड जिले की गोरमी से भी गया था।
जिसमें गोकुल सिंह परमार भी के कारसेवक थे, उम्र बहुत कम थी, किंतु जज्बा बहुत बडा था। पहली बार सन 1990 में दल अयोध्या की ओर रवाना हुआ, बीच रास्ते में जानकारी मिली की इटावा पुल पर भारी पुलिस बल लाठीचार्ज के माध्यम से सभी कारसेवकों को गिरफ्तार कर रहा है, हमारे दल ने भी कोशिश की कि कैसे भी यहां से आगे बढा जाएं, किंतु नदी को इधर-उधर से पार करने के बावजूद भी हमें गिरफ्तार कर लिया गया और लगभग 15 दिन कानपुर की नौबस्ता जेल में बंधक बना कर रखा। उसकी खबर भी हमारे घर वालों को नहीं मिली। घर में बडी बेचैनी और मायूसी का माहौल था। लेकिन हम वापस आए और ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि कब इस बाबरी मस्जिद को गिरने का अवसर प्राप्त होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हम स्वयंसेवक पुन: योजनाबद्ध तरीके से 1992 में अयोध्या की और रवाने हुए और इस बार संघ की कार्य योजना सफल रही और हम सभी कार्यकर्ता स्वयंसेवक अयोध्या पहुंच गए चारों तरफ एक जोश का वातावरण था।
सभी लोगों ने बारी-बारी से अपने भाषण दिए, सर्वप्रथम लालकृष्ण आडवाणी, फिर जयभान सिंह पवैया का भी उद्बोधन हुआ। लेकिन जैसे ही साध्वी ऋतंभरा का उदबोधन हुआ तो स्वयं सेवकों में जोश भर गया और उन्होंने बाबरी मस्जिद के गुंबद को ढहा दिया। हम सभी लोगों में एक उत्साह का संचार हो गया, इसी उत्साह में हम सबके बीच महंगाव कस्बे के बाबा पुरुषोत्तम दास भी थे, हमारे साथी थे, किंतु गुंबद की एक शीला उनके ऊपर जाकर गिरी जिससे उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई और वह रामकाज में बलिदान हो गए। हम सभी कार्यकर्ताओं ने सरयू के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया और उसे घडी को सोचकर आज भी आंखों में आंसू आ जाते हैं कि कैसे और कितने संघर्षों से मस्जिद को निस्तोनाबूद किया। पुरातन सरकारों ने हम सबकी भावनाओं की कोई कदर नहीं की और अनवरत संघर्ष से भारतीय जनता पार्टी के सरकार ने कार्य योजना को सफल और सिद्ध साबित कर मन्दिर बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। हम सभी कार सेवकों में स्व. सत्यनारायण थापक, स्व. केशव सिंह यादव, स्व. भानकुमार समाधिया, डॉ. माधव सिंह भदौरिया मानहढ, दलबीर सिंह तोमर, रामप्रकाश सिंह गुर्जर टीकरी, रामप्रताप यादव, रामवीर सिंह गुर्जर साथ थे।