रावतपुरा धाम में रामकथा के दौरान हुई राम के वनगमन की कथा

भिण्ड, 27 दिसम्बर। जिले रावतपुरा धाम में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा के आठवें दिन कथा वक्ता हेमलता शास्त्री ने भगवान राम के वन प्रवास की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि भगवान राम वनवास प्रवास में गांव-गांव में सबको दर्शन देते हुए और अपने व्यवहार और आचरण से प्रभावित करते हुए महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में जाते हैं। उनसे वन में रहने के लिए स्थान पूछते हैं तो बाल्मीकि कहते हैं कि राम आप तो सर्वत्र विराजमान हो, वह कौन सी जगह है जहां आप नहीं रहते हो। राम ने बाल्मीकि ऋषि से कहा कि हे महात्मन मैं मानव रूप में आकर मानवता की लीला कर रहा हूं, मेरा मार्गदर्शन करें। महर्षि बाल्मीकि ने राम को बहुत सारे स्थान बताए, फिर उनके कहने पर राम चित्रकूट जाते हैं और मंदाकिनी के तट पर पर्णकुटी में रहने लगते हैं। वहीं उनके भाई भरत उन्हें मनाने और अयोध्या ले जाने का अनुरोध करते हैं। मगर राम वापिस जाने की मना कर अपनी चरण पादुका भरत को देकर उन्हें परमात्मा के कार्य का संकेत देकर वापिस भेज देते हैं।
हेमलता शास्त्री ने कहा कि भरत अयोध्या लौट जाते हैं और राम की चरण पादुका को अयोध्या के राज सिंहासन पर स्थापित कर अयोध्या राज्य का संचालन करने लगते हैं। वहीं राम चित्रकूट में कुछ दिन रहकर आगे बढते हैं और वन प्रवास में ही सती अनुसुइया के आश्रम में गए। वहां से चलकर रास्ते में ही राक्षसों का वध करके सभी महात्माओं के आश्रम में जाते हंै और सरभंग, सुतीक्षण, अगस्त्य आदि संतों के दर्शन करते हैं। रावण के अत्याचार से दुखी सभी संतों और वनवासियों को देखकर राम ने प्रण किया कि मैं इस धरती को निशाचर विहीन कर दूंगा। यह प्रण करके भगवान राम महाराष्ट्र प्रांत में नासिक के पास गोदावरी के किनारे पंचवटी नामक स्थान पर कुटी बनाकर रहने लगे और वहीं सूर्पणखां राम के पास आई। जहां राम ने सूर्पणखा का उद्देश्य समझते हुए लक्ष्मण द्वारा उसके नाक, कान कटवाकर लंका के राजा रावण को युद्ध की चुनौती दे दी और यही सूर्पणखां रावण के वध का कारण बन गई।