उमा भारती : भाजपा का एक टूटा परिंदा

– राकेश अचल


भाजपा की फायर ब्रांड नेता सुश्री उमा भारती का सितारा आखिर डूब ही गया। वे अब एक ऐसे टूटे परिंदे की तरह हैं जो अब शायद कभी नहीं जुड पाएगा। मध्य प्रदेश में भाजपा को पहली बार सत्तारूढ करने वाली उमा भारती को भाजपा के मौजूदा नेतृत्व ने दूध में पडी मख्खी की तरह निकाल फेंका है। इतनी अपमानजनक विदाई तो कोई अपने चतुर्थ श्रेणी भृत्य की भी नहीं करता। मुझसे उम्र में एक सप्ताह छोटी उमा भारती की अपमानजनक विदाई को लेकर भाजपा के आम कार्यकर्ताओं का दिल दुखी हो या न हों, लेकिन मेरा हृदय उमा भारती के लिए द्रवित है।
बुंदेलखण्ड के डुंडा (टीकमगढ) में तीन मई 1959 को जन्मीं उमा भारती को मैंने उमा भारती बनते देखा है। मात्र कक्षा छह तक की पढाई करने वाली इस सुभद्रा को ईश्वर ने रामकाज के लिए ही बनाया था। मुझे याद है जब किशोरी उमा भारती को लेकर राजमाता विजयाराजे सिंधिया पहली बार ग्वालियर लेकर आई थीं। उस समय उमा भारती को कोई नहीं जानता था, लेकिन जब लोगों ने उनके मुखारविंद से राम कथा सुनी तो अभिभूत हो गए। बात शायद 1984 के आस-पास की रही होगी। राजमाता के संरक्षण में बुंदेलखण्ड की ये उल्का 1984 के आम चुनाव में भाजपा की ओर से उस खजुराहो सीट से लोकसभा की प्रत्याशी बनाई गईं जहां से आज-कल भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा सांसद हैं।
उमा भारती पहला लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाईं, लेकिन उनकी पहचान भाजपा के एक उदीयमान नेता के रूप में बन गई। 1989 में फिर लोकसभा चुनाव हुए तो उमा भारती को खजुराहो से भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया और उमा भारती ने ये चुनाव प्रचण्ड बहुमत से जीता। उमा भारती ने संसद में भी अपने आग्नेय भाषणों से अपनी पहचान पूरे देश में बना ली। उमा भाजपा के लिए जादू की पुडिया साबित हुईं। उमा खजुराहो के लिए अनिवार्य बन गईं। उन्होंने 1991, 1996, 1998 में यह सीट बरकरार रखी। 1999 में भाजपा ने उमा को एकदम नई सीट भोपाल से चुनाव लडने भेज दिया। वे भोपाल से भी चुनाव जीत गईं। साध्वी ऋतंभरा के साथ उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। इस दौरान उनका नारा था ‘श्री रामलला घर आएंगे मन्दिर वहीं बनाएंगे’। आज अयोध्या में राम मन्दिर तो बन रहा है, लेकिन उमा भारती का मन मन्दिर उजड गया है।
केन्द्र में जब भाजपा पहली बार सत्तारूढ हुई तो राजमाता के हस्तक्षेप से उमा भारती को वाजपेयी सरकार में मानव संसाधन विकास, पर्यटन, युवा मामले एवं खेल मंत्री बनाया गया। बाद में उन्होंने कोयला और खदान जैसे विभिन्न राज्य स्तरीय और कैबिनेट स्तर के विभागों में कार्य किया। लेकिन एक मंत्री के रूप में उनकी पारी एक सांसद की पारी की तरह चमत्कृत करने वाली नहीं रही। इसका अर्थ ये नहीं कि उमा भारती का लोहा समाप्त हो गया। उनके भीतर का ताप बरकरार रहा।
मध्य प्रदेश में सत्तारूढ होने के लिए 2003 के मप्र विधानसभा चुनावों में उनके नेतृत्व में भाजपा ने तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया और मुख्यमंत्री बनीं। भाजपा को सत्तारूढ करने में उमा भारती ने जितनी मेहनत की थी, उतनी मेहनत भाजपा का कोई मुख्यमंत्री नहीं कर पाया। लेकिन उमा भारती का दुर्भाग्य कि अगस्त 2004 में उनको मात्र नौ महीने बाद ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पडा। उनके खिलाफ 1994 के हुबली दंगों के संबंध में गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ था और नैतिकता कहती थी कि वे इस्तीफा दें। लेकिन यहीं से उनके साथ गडबडी शुरू हो गई। भाजपा हाईकमान ने उन्हें अदालती फैसला आने के बाद भी मुख्यमंत्री वापस नहीं किया।
स्वभाव से उग्र उमा भारती को नवंबर 2004 को लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना के बाद भाजपा से से बर्खास्त कर दिया गया। 2005 में उमा भारती की बहाली तो हो गई। उन्हें पार्टी की संसदीय बोर्ड में जगह मिली। लेकिन जब पार्टी ने वादे के मुताबिक उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के बजाय उनके प्रतिद्वंदी शिवराज सिंह चौहान को मप्र का मुख्यमंत्री बना दिया तो वे अपमान का ये घूंट नहीं पी सकीं और भाजपा से अलग हो गईं। उन्होंने भारतीय जनशक्ति पार्टी नाम से एक अलग पार्टी बना ली। यहीं उमा भारती से अपना आंकलन करने में पहली बार गलती हुई। उनकी पार्टी चल नहीं पाई। 2008 के विधानसभा चुनाव में उन्हें निराशा हाथ लगी।
मुझे याद है कि लम्बी मौन साधना के बाद अंतत: सात जून 2011 को उनकी पुन: भाजपा में वापसी हुई। लेकिन अब उनकी जमीन मप्र के बजाय उत्तर प्रदेश में थी। उप्र में पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने ‘गंगा बचाओ’ अभियान चलाया। मार्च 2012 में हुए उप्र विधानसभा चुनावों में वह महोबा जिले की चरखारी सीट से विधानसभा सदस्य चुनी गईं। वे वर्ष-2014 में झांसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 16वीं लोकसभा की सांसद चुनी गई हैं और उन्हें मोदी मंत्रिमण्डल में भारत की जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री बनाया गया। लेकिन मोदी जी से संसदीय जीवन में कम से कम एक दशक वरिष्ठ उमा भारती मोदी के नेतृत्व में चमक नहीं पाईं। उनकी सुस्ती और स्वभाव को मोदी जी ने झेला नहीं और जैसे ही मौका मिला उन्हें मंत्रिमण्डल से दूध में पडी मख्खी की तरह बाहर निकाल फेंका जैसा कि अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव से एन पहले उन्हें पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची से बाहर किया गया है।
उमा भारती अब हिमालय की गोदी में हैं। भाजपा ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है। उमा भारती का सितारा डूब गया है। अब वे मार्गदर्शक मण्डल के लायक भी नहीं रहीं। अब न राम उनके काम आ रहे हैं और न हनुमान जी, सबने उनका साथ छोड दिया है। क्योंकि आज भाजपा के राम और हनुमान के लिए वे ‘झेलेबुल’ नहीं रहीं। भाजपा ने उमा भारती को सक्रिय राजनीति से विदा कर नारी शक्ति की जैसी वंदना की है उसे भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी याद रखना चाहिए। क्योंकि आज जो नेता भाजपा के सितारे हैं वे भी कल उमा भारती की गति को प्राप्त होंगे ही। चार दशक की अपनी राजनीतिक यात्रा में उमा भारती जब शुरू में ध्रुव तारे की तरह चमकती थी, उस समय आज के भाजपा की सूरजों की स्थिति किसी पुच्छल तारे जैसी भी न थी, किन्तु समय का फेर है कि उमा भारती का सितारा डूब गया है। वे एक टूटे परिंदे की तरह हैं, जो शायद अब कभी उड ही नहीं पाएगा। भोपाल के शायर बशीर बद्र ने शायद कभी ये दो शेर उमा भारती कि लिए ही लिखे थे-
सन्नाटा क्या चुपके-चुपके कहता है
सारी दुनिया किसका रैन-बसेरा है
आसमान के दोनों कोनों के आखरि
एक सितारा तेरा है, इक मेरा है
अण्डा मछली छूकर जिनको पाप लगे
उनका पूरा हाथ लहू में डूबा है।