पहाडों पर बर्फ और मैदानों में चुनावी गर्मी

– राकेश अचल


देश में पहाडों पर बर्फवारी से तापमान गिरकर 20 डिग्री सेल्शियस पर आ गया है, लेकिन देश के मैदानी राज्यों में विधानसभा चुनावों की गर्माहट तेज हो गई है। पारा दिन-ब-दिन बढता दिखाई दे रहा है। राजस्थान में भाजपा की वरिष्ठ नेता श्रीमती बसुंधरा राजे को मना लेने के दावे किए जा रहे हैं, वहीं मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस में कहीं बगावत जारी है तो कहीं मान-मनव्वल। उधर मिजोरम जाने के लिए भाजपा को कोई चंद्रयान नहीं मिल रहा है। अभी तक मिजोरम में चुनावी माहौल ठण्डा बना हुआ है।
पहाडों का मौसम बदलता है तो मैदानों का मौसम अपने आप बदलने लगता है, लेकिन इस बार बर्फवारी के बावजूद मैदानों में चुनावी सरगर्मियां देखने लायक है। राजस्थान और छत्तीसगढ जीतने के लिए भाजपा हाईकमान को जहां रूठों को मनाने में पसीना आ गया, वहीं मप्र में अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए भाजपा हाईकमान को एडी-चोटी का जोर लगना पड रहा है। कांग्रेस को राजस्थान और छत्तीसगढ में सत्ता बचाना है, जबकि मप्र और तेलंगाना में सत्ता हांसिल करना है। मिजोरम के बारे में कोई भी दल बहुत ज्यादा गंभीर नहीं है।
मप्र में भाजपा से सत्ता हांसिल करने के लिए एक बार फिर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोडी आखरी दांव लगा रही है। कांग्रेस ने मप्र के लिए एक लंबा-चौडा वचन-पत्र जारी किया है। जिसमें 59 मुद्दों पर 1250 वचन दिए गए है। कांग्रेस ने इस बार भाजपा सरकार की योजनाओं के नाम बदलने के साथ ही लगभग हर योजना में दी जाने वाली सहायता को स्वयं या ड्यौढा बढा दिया है। अगर कांग्रेस अपने वचन-पत्र को मतदाताओं तक पहुंचा पाने में कामयाब रही तो यकीन मानिए कि भाजपा के लिए सत्ता में बने रहना कठिन हो जाएगा, वैसे भी भाजपा खरीदे हुए जनादेश के सहारे प्रदेश की सत्ता में है।
भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि 2003 के प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जैसी हो गई है। वे भी अब भाजपा और प्रदेश के लिए बंटाधार साबित हो रहे हैं। प्रदेश में सडकों और बिजली की दुर्दशा शिवराज सिंह सरकार पर भारी पड रही है। शिवराज पिछले विधानसभा चुनाव में कमलनाथ, दिग्विजय और महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया से लडे थे, इस बार उन्हें कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोडी के अलावा अपनी ही पार्टी की मोदी-शाह की जोडी से भी जूझना पड रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती अभी तक नाराज हैं। उनके जिन समर्थकों के टिकिट कटे हैं उन्हें बहन मायावती अपनी पार्टी का टिकिट दे रही हैं। समाजवादी पार्टी ने भी चुनाव मैदान में खम ठोंक दिए हैं। इससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ गई हैं। आम आदमी पार्टी अभी तक अपने लिए कोई जगह नहीं बना पाई है।
मप्र में कल तक चुनावी रण में सबसे ज्यादा मुस्तैद दिखाई दे रही कांग्रेस के दोनों बडे नेताओं की बदजुबानी बना-बनाया खेल बिगडती दिखाई दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इस विधानसभा चुनाव के जरिए अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटों को सौंप देने पर आमादा हैं। पुत्र मोह में ये दोनों नेता पार्टी के नेता राहुल गांधी की कोशिशें को भी पलीता लगा दें तो कोई बडी बात नहीं है। कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोडी युगों पहले बदल चुका है, किन्तु आज के मप्र में कांग्रेस की पहचान दो बूढे बैलों की जोडी से ही है। दोनों अपने जीवन के अमृतकाल में हैं। इस जोडी की सबसे बडी बाधा ज्योतिरादित्य सिंधिया तीन साल पहले ही कांग्रेस के खेत-खलिहान छोडकर भाजपा के साथ हो लिए थे।
राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का जादू जनता के सिर से उतरने के लिए मोदी-शाह की जोडी ने सारे कस-बल लगा लिए हैं। भाजपा के लिए अशोक गहलोत से बडी चुनौती पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती बसुंधरा राजे सिंधिया की बगावत थी, लेकिन आखिर में हाईकमान उन्हें शांत करने में कामयाब होता दिखाई दे रहा है। राजे की नाराजगी भाजपा की सबसे बडी चुनाती है। राजस्थान में अशोक गहलोत को यदि किसी के नेतृत्व में हराया जा सकता है तो वे सिर्फ और सिर्फ बसुंधरा राजे ही है। राजे को आईना दिखने के लिए भाजपा हाईकमान ने जयपुर राजघराने की दीया सिंह को आगे बढाने की कोशिश की, लेकिन पासा उलटा पडा। राजस्थान में भी मप्र की तरह इस बार अनेक केन्द्रीय मंत्री और संसद लड रहे हैं। मजा तो तब आता जब भाजपा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को भी विधानसभा चुनाव में आजमा लेती। खास बात ये है कि प्रत्याशियों के नामों की घोषणा में कांग्रेस बहुत ज्यादा पिछड गई है। अभी राजस्थान में कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची की ही घोषणा नहीं हुई है।
छत्तीसगढ में कांग्रेस बेफिक्र होकर चुनाव लड रही है। यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच पिछले चुनाव में ही जो फांसला बना था उसे पाटना भाजपा के लिए आसान नहीं है। कोई जादू ही इस फांसले को पाट सकता है। छत्तीसगढ कहने को राजस्थान और मप्र के मुकाबले एक छोटा राज्य है, किन्तु इस राज्य में कांग्रेस की सरकार ने जो कर दिखाया है वो एक महत्वपूर्ण बात है। मप्र और राजस्थान से भिन्न है छग का तापमान। सुदूर दक्षिण के तेलंगाना में भी सत्तारूढ केसीआर के लिए इस बार अपनी सल्तनत बचाना आसान नहीं दिखाई दे रहा। यहां केसीआर अपने कुनबे को बचने के फेर में अपनी सरकार गंवाने जा रहे हैं। तेलंगाना में भाजपा के लिए न पहले कोई गुंजाइश थी और न अब दिखाई दे रही है। मिजोरम को तो फिलहाल जाने ही दीजिए।
विधानसभा चुनावों के लिए प्रत्याशियों के नामों कोई घोषणा का काम भाजपा और कांग्रेस अभी तक पूरा नहीं कर पाई है, जबकि कल से नामांकन भरने की प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी। मुझे न जाने क्यों लगता है कि कांग्रेस और भाजपा नाम वापसी के दिन तक प्रत्याशियों के नामों का अंतिम फैसला कर पाएंगीं। इन विधानसभा चुनावों को लेकर आम मतदाता में अभी अपेक्षित सुगबुगाहट पैदा नहीं हुई है, हालांकि अब शहरों और गांवों में होर्डिंग और बैनर उग आए हैं। प्रत्याशियों ने अपना जनसंपर्क आरंभ कर दिया है। राजनीतिक दलों का पैसा बहता नजर आने लगा है।