तालाब के गंदे पानी में स्थापित की गई मूर्तियां हो रहीं दुर्दशा का शिकार

– सचिन शर्मा –

मिहोना, 24 सितम्बर। समाज में दलितों को मान सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाने की जंग में अपने प्राणों की आहुति देने वाले संविधान रचियता डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा फुले की मूर्तियां को तालाब के गंदे पानी में स्थापित करने के बाद उनकी देख रेख नहीं की जा रही है।


जानकारी के अनुसार नगर पालिका लहार के वार्ड क्र.10 में जहां दलित समाज के ठेकेदारों ने राष्ट्र के महापुरुषों की प्रतिमाएं तो स्थापित करा दी हैं, मगर उचित प्रबंधन न होने से वह दुर्दशा का शिकार हो रही हैं। भारत मे मूर्ति पूजा लगभग दो करोड़ साल पुरानी परम्परा है, जब भी लोग वैदिक रीति रिवाज से किसी देवी-देवता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाते हैं तो पूरे विधि विधान और मंत्रोच्चारण से उस प्राण पूजा की जाती है। और जब किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण हो जाती है तो वह आस्था का केन्द्र बन जाती है और सनातन धर्म में प्रारंभ से ही देव मूर्तियां ईश्वर प्राप्ति और शांति के साधनों में एक अति महत्वपूर्ण साधन की भूमिका निभाती रही हैं, जब हम किसी व्यक्ति के प्रति आस्था रखते हैं और उससे उससे स्नेह रखते हैं और उसके बताए हुए रास्ते से अपने सुनहरे भविष्य की निर्माण करते हैं तो वह निश्चित ही वह हमारे लिए सम्मान और देव पुरुष के समान हो जाता है और हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए सदा के लिए सदा पूज्यनीय हो जाते हैं। बड़ी बिडम्बना यह है कि मनुष्य एक बहुत बड़ा स्वार्थी प्राणी है, उसका स्वार्थ सिर चढ़कर बोलता है और इसका जीवंत उदाहरण है दलित समाज के उत्थान में अहम भूमिका निभाने बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर और महात्मा फुले की प्रतिमाएं आज बिना देख-रेख के दुर्दशा का शिकार हो रही हैं। जिन्होंने अपना पूरा जीवन वंचित शोषित दलित वर्ग को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए खपा दिया और अब जब यह वंचित शोषित वर्ग संपन्न हो गया है, तो यहां वंचित, शोषित, दलित वर्गों के ठेकेदारों ने इन समाज उत्थान के जनकों की उपेक्षा कर जगह-जगह उन्हें हंसी का पात्र बनाने का कार्य कर दिया है और उनके बनाए नियमों और विधानों को सिर्फ और सिर्फ लाभ व आरक्षण का जरिया बना कर आर्थिक लाभ और आरक्षण लाभ प्राप्त करने का माध्यम बना लिया है और हर जगह सिर्फ मूर्ति को स्थापित कर शासकीय भूमि को कब्जा कर स्वयं को महान बनाने की चेष्टा में लगे रहते हैं, लाभ प्राप्त होते ही इनके आदर्श को दरकिनार कर पल्ला छुड़ाना में भी नहीं चूकते है, मन व्यथित होता है आज हमारे देश के महापुरुषों की प्रतिमाओं के इन दलित समाज के ठेकेदारों ने स्थापित तो करा दिया है मगर इन इनकी उचित देख रेख न होने से अब यह महापुरुषों की प्रतिमाये आंसू बहाने पर विवश है, हमें इन महापुरुषों के इन विचारों को सुनना चाहिए, जो समाज के ऐसे समाजिक ठेकेदारों को आईना दिखाने के लिए काफी है कि आज के परिदृश्य में आपका समाज बांटने की कृत्य निंदनीय है।
बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि हो सकता है कि मूर्ति पूजा किसी धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति की डगर हो। लेकिन भक्ति या फिर नायक पूजा हमें निश्चित तौर पर अधोगति और तानाशाही की तरफ ले जाएगी। महात्मा फुले ने भी मूर्ति पूजा की कटु आलोचना की थी, उन्होंने मूर्ति-पूजा पर प्रश्न उठाते हुए पूछा कि इस संसार का निर्माणकर्ता एक पत्थर विशेष या स्थान विशेष तक ही सीमित कैसे हो सकता है? जिस पत्थर से सड़क, मकान आदि बनाया जाता है, उसमें देवता कैसे हो सकते है।