– राकेश अचल
भारत की संसद रोज नया इतिहास लिखती है। इतिहास लेखन की गति बीते एक दशक में और तेज हो गई है। जिस भारतीय संसद ने इतिहास पुरुष नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में दो रोज पहले नारी शक्ति वंदन का इतिहास लिखा, उसी संसद में सरकारी पार्टी के एक सांसद ने संसदीय शब्दकोश में तमाम ऐसे सु-संस्कृत शब्द और जोड दिए जो बीते 75 साल में नहीं गढे गए थे। इस नए इतिहास लेखन के लिए सरकारी पार्टी और सरकारी पार्टी को भारत रत्न के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से अलंकृत किया जाना चाहिए।
देश में नारी शक्ति वंदना की हुंकार भरने वाली भाजपा का असली चेहरा उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ सांसद रमेश बिधूडी ने उजागर कर दिया। रमेश बिधूडी ने बिधूडी ने लोकसभा में चंद्रयान-3 की चर्चा के दौरान बसपा सांसद कुंवर दानिश अली के खिलाफ जिन संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग किया था उनका इस्तेमाल आज तक कभी नहीं किया गया। निश्चित तौर पर बिधूडी को ये शब्दावली और संस्कार भाजपा की मातृ-पितृ संस्था की किसी न किसी शाखा में ही मिले होंगे। एक तरह से बिधूडी ने अपनी पार्टी और पार्टी की मां के संस्कारों का खुलासा कर दिया।
साठ पार कर चुके बिधूडी कोई नए खिलाडी नहीं हैं जो गलती से फाउल कर जाएं। वे भाजपा के तपोनिष्ठ, देवतुल्य कार्यकर्ता और नेता हैं। रमेश बिधूडी भारतीय संसद और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सदस्य हैं। अपने कॉलेज के दिनों से वह राजनीति में सक्रिय रहे है। उन्होंने भाजपा को अपनी राजनीतिक पार्टी के रूप में चुना। वह दिल्ली राज्य में भाजपा के महासचिव थे। 2003-08 में वह बीजेपी दिल्ली के उपाध्यक्ष थे। बीजेपी ने उन्हें 2014 लोकसभा चुनाव में एमपी उम्मीदवार के लिए चुना था। बिधूडी ने इसी शब्दावली के आधार पर विधायक के रूप में लगातार तीन बार जीत हांसिल की है।
संसद के नए भवन की दीवारें बिधूडी की वाणी से गूंज रही हैं और अपने आपको धन्य अनुभव कर रही हैं। वहीं पुरानी संसद भवन खैर मना रहा है कि कम से कम उसके भीतर तो बिधूडी साहित्य के पंचम स्वर नहीं गूंजे। क्योंकि पुराने संसद भवन में इस देश का जो इतिहास लिखा गया उसकी भाषा रमेश बिधूडी की शब्दावली से रत्तीभर भी मेल नहीं खाता। उनकी भाषा की तुलना उनकी ही पार्टी के शीर्ष नेताओं की भाषा में की जा सकती है, जो एक भद्र महिला को अतीत में जर्सी गाय कह चुके हैं। जिन्हें किसी की प्रेमिका पांच करोड की बारवाला नजर आती है, जिन्हें एक महिला संसद की हंसी में राक्षसी की ध्वनियां अनुभव होती हैं।
सांसद बिधूडी ने कोई अपराध नहीं किया। भाजपा को तो उनका कृतज्ञ होना चाहिए कि बिधूडी ने पार्टी की लाज रख ली, अन्यथा देश को कैसे पता चलता कि हमारे देश की सबसे ज्यादा सुसंस्कृत पार्टी की राष्ट्रभाषा कैसी है? बिधूडी ने जिस शब्दावली का इस्तेमाल किया, भाजपा के अधिकांश सांसद भी शायद वैसी ही शब्दावली में संसद में बोलना चाहते होंगे, किन्तु साहस नहीं जुटा पाए। भाजपा को बिधूडी को नोटिस देने के बजाय लोकसभा अध्यक्ष से कहकर इस वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार डीलाना चाहिए। वे डिजर्व करते हैं।
कानून के एक सामान्य छात्र के नाते मुझे पता है कि यदि बिधूडी जी ने जिन शब्दों और तेवरों का इस्तेमाल बसपा सांसद दानिश भाई के लिए किया है, वो यदि संसद के भीतर न किया होता तो बिधूडी के खिलाफ गैर जमानती आपराधिक मामला बनता। उन्होंने दानिश भाई को सदन के बाहर देख लेने की बात कही। उन्होंने जो कुछ कहा उसका एक-एक शब्द मानहानि कारक है, किन्तु सब कुछ उस संसद के भीतर हुआ है जिसके पास विशेषाधिकार हैं। लोकसभा अध्यक्ष के पास ऐसी कोई तकनीक, ऐसा कोई डस्टर, ऐसी कोई रबर नहीं है जिससे बिधूडी जी के स्वर्ण शब्दों को मिटाया जा सके। वे संसद की कार्रवाई से कभी नहीं हट सकते। वे टीवी के कैमरों में कैद हैं। वे सोशल मीडिया की संपत्ति हैं। बिधूडी जी के शब्द अब भारतीय संसद की बौद्धिक संपदा हैं। वे 2024 में चुनकर आने वाले नए सांसदों के प्रबोधन कक्षाओं में सुनाए जाएंगे, ताकि नए सांसद सीख सकें कि उन्हें संसद में किस शब्दावली का इस्तेमाल करना है।
देश की सत्रहवीं लोकसभा का ये सौभाग्य है कि उसे ईश्वर के अवतार के रूप में नरेन्द्र मोदी मिले और उनके भक्त के रूप में रमेश बिधूडी। भाजपा ने बीते 43 साल में देश में कितने रमेश बिधूडी पैदा किए हैं ये शायद भाजपा को भी पता नहीं होगा। ये भाजपा की चाल, चरित्र और चेहरे में आ रही तब्दीली का प्रमाण है। भारत का लोकतंत्र भले ही अमृतकाल में आ चुका है, किन्तु इसमें अभी भी तमाम विष मौजूद है। ये विष कम होने के बजाय अब बढता ही जा रहा है। हमारे वैज्ञानिक देश को चन्द्रयान पर बैठकर तारों के पार ले जाने में लगे हैं और हमारी सरकारी पार्टी के संसद देश को गर्त में ले जाने के लिए प्रयत्नशील हैं। वे अपनी कोशिशों में कामयाब होते दिखाई भी दे रहे हैं। इनकी कोशिशें किसी से छिपी नहीं हैं।
भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि जिन लोगों को जेलों में होना चाहिए वे आज संसद की शोभा बढा रहे हैं और जिन्हें संसद में होना चाहिए वे जेलों में या जेलों के बाहर जमानत पर अपने घरों या अस्पतालों में पडे हैं। देश के लोकतंत्र के इस दुर्भाग्य को कोई नहीं बदल सकता। क्योंकि भाजपा ने तो 2047 तक बिधूडी संस्कारों को जीवित रखने का एजेण्डा बना रखा है, अब ये लोकसभा अध्यक्ष को नहीं, बल्कि देश को तय करना है कि उसे नई संसद और देश की तमाम विधानसभाओं में कितने बिधूडी चाहिए? ये देश और इस देश की तमाम पार्टियां बिधूडियों से भरी पडी हैं। लेकिन सबसे ज्यादा बिधूडी उसी पार्टी में होते हैं जिसके सबसे ज्यादा सांसद हों। जाहिर है कि इस समय भाजपा के पास सबसे ज्यादा सांसद हैं, इसलिए बिधूडी ब्रांड के सबसे ज्यादा संसद भी भाजपा के पास ही होंगे।
संसद रेमश बिधूडी के व्यवहार और शब्दावली को लेकर न भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को शर्मिंदा होना चाहिए और न देश के प्रधानमंत्री जी को। उन्हें बिधूडी के व्यवहार के लिए देश से माफी मांगने की भी जरूरत नहीं है। बिधूडी ने वो सब किया जो उसकी पार्टी और उसके नेता चाहते थे। इसलिए उसका सम्मान किया जा ना चाहिए। जिसे बिधूडी-वार्ता पसंद नहीं है वो खुद संसद छोडकर चला जाए, अन्यथा अब तो संसद में सभी को ऐसी ही भाषा और ऐसे ही तेवरों का सामना करना पडेगा। ये देश की संसद की नियति है। इसे बदला नहीं जा कसता। बदलने की कोशिश जरूर की जा सकती है। किन्तु कोशिश करेगा कौन?
हम चम्बल के लोग भी बिधूडी के शब्दकोश के सामने अपने आपको बोना महसूस कर रहे हैं। अन्यथा अभी तक ये भ्रम चंबल वालों को था कि जो उनके पास है वो किसी के पास नहीं, किन्तु अब पता चला कि उनके पास जो कसैले-कडवे शब्द हैं उस मामले में बिधूडी मीलों आगे हैं। देश में बनने वाली वेबसीरिजों को भी अब बिधूडी शब्दावली की जरूरत पड सकती है। सदन में बैठने वाले सांसदों को मेरा सुझाव है कि वे जब भी सदन की कार्रवाई में हिस्सा लेने के लिए जब भी जाएं कुछ रुई भी साथ ले जाएं, ताकि जब-जब बिधूडी पार्टी बोले तो वे कानों को संक्रमण से बचने के लिए अपने कानों में रुई के फाहे ठूंस सकें। सदन की ओर से भी सांसदों को मुफ्त में रुई मुहैया कराई जा सकती है। रुई मुहैया करना आसान काम है, लेकिन बिधूडियों की जबान पर मुसीके बांधना कठिन काम है। भाजपा सांसद रमेश बधूडी ने दरअसल अपनी पार्टी के अटल बिहारी बाजपेयी जैसे तमाम पुरोधाओं के प्रति श्रृद्धांजलि अर्पित की है। अटल जी के शब्दों में सरस्वती सवार होती थीं, लेकिन अब लगता है उन्होंने अपनी सवारी रेमश बिधूडी के शब्दों को बना लिया है। अच्छा हुआ कि अब सांसद में अटल बिहारी बाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी और प्रो. मुरली मनोहर जोशी जैसे लोग नहीं है। यदि होते तो वे यतो खुदकुशी कर लेते या फिर राजनीति से सन्यास लेकर अपने घर बैठ जाते, संसद तो भूलकर भी नहीं आते। देश की सत्रहवीं लोकसभा को पूरा देश बिधूडी सभा के रूप में याद रखेगा। आभार बिधूडी जी।