– राकेश अचल
मैं चिकित्सक नहीं हूं, लेकिन अपने पाठकों का शुभचिंतक अवश्य हूं, इसलिए उन्हें आगाह करते रहना मेरा काम है। आज-कल देश में ‘आई फ्लू’ का मौसम है। लेकिन आंखों को सबसे ज्यादा खतरा सियासी धूल से है। हमारे राष्ट्रभक्त नेता अपने पाप छिपाने के लिए जनता की आंखों में धूल झोंकने निकल पडे हैं। नेताओं के हाथों की धूल फूलों की शक्ल में होती है। इसलिए इससे सावधान रहने की जरूरत है। सावधानी हटी नहीं की दुर्घटना घटी। इस बार नेता और उनकी पार्टियां जनता के साथ-साथ केंचुआ की आंखों में भी धूल झोंकने में कामयाब हो गई हैं। कम से कम मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में तो यही हो रहा है।
देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव होना हैं, उनमने से मप्र और छग में सत्तारूढ भाजपा ने अपने तमाम प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर उनके लिए सरकारी खर्च पर चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। चूंकि अभी चुनावी आदर्श आचार संहिता प्रभावशील नहीं है, इसलिए चुनाव प्रचार का खर्च न पार्टी के खाते में जुडेगा और न प्रत्याशी के खाते में। सारा खर्च राज्य की सरकार वहन करेगी। एक एटीएम से रकम निकालकर दूसरे सूबे में प्रत्याशियों पर भी खर्च की जाएगी। इसकी शुरुआत हो गई है, लेकिन केन्द्रीय चुनाव आयोग नींद में है। उसके जन प्रतिनिधित्व कानून के हाथ इतने लम्बे नहीं हैं जो इस करतूत को पकड सकें। जनता की आंखों में धूल झोंकने के रोज नए-नए तरीके ईजाद किए जा रहे हैं। मप्र इन सबमें सबसे आगे है। राजस्थान और छग की कांग्रेस सरकार हो या आप की पंजाब सरकार बहुत दूर बैठकर भी विज्ञापन रूपी धूल जनता की आंखों में झोंक रही है, अन्यथा पंजाब सरकार के या राजस्थान और छग सरकार के विज्ञापन मप्र में और मप्र सरकार के विज्ञापन राजस्थान, छग और दूसरे राज्यों के अखबारों में देने की क्या तुक है? ये जनधन की कहके आम बर्बादी है। दुर्भाग्य ये है कि कोई राज्य सरकारों का हाथ नहीं पकड सकता। कोई इन सरकारों से इस खर्च का हिसाब नहीं मांग सकता।
चुनावी आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले मप्र भाजपा ने जिन 39 सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित किए हैं, उनका चुनाव प्रचार सरकारी खर्च पर शुरू हो चुका है। मप्र के मुख्यमंत्री अपने लाव-लश्कर के साथ लाडली बहना सम्मान समारोहों के नाम पर अपने प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार पर बेहिसाब खर्च कर रहे हैं। भाजपा को फिलहाल अपने देव दुर्लभ कार्यकर्ताओं की सेवाओं की जरूरत नहीं है। अघोषित चुनावी सभाओं का सारा इंतजाम सरकारी खर्च पर दक्ष ‘ईवेंट’ कंपनियां कर रही हैं। संचालन से लेकर आधुनिक पण्डाल (डोम) बनाने से लेकर मुख्यमंत्री के लिए फैशन-शो की तर्ज पर रेम्प बनाने तक का काम निजी कंपनियों से कराया जा रहा है और मप्र सरकार का प्रतिष्ठान ‘माध्यम’ भुगतान कर रहा है।
इन अघोषित चुनावी सभाओं यानि महिला एटीएम सम्मान समारोहों में वोट के लिए खुले आम मतदाताओं से सुअदेबाजी की जा रही है। सरकारी योजनाओं के शिलान्यास जान-बूझकर इसी समय के लिए रोक कर रखे गए हैं। मुख्यमंत्री सीधे-सीधे रेम्प पर चलते हुए अपनी लाडली बहनों से कहते हैं कि ‘तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें नोट दूंगा’। ये रकम अभी एक हजार रुपए महीना है जो बढाते-बढाते तीन हजार रुपए कर दी जाएगी। हाल ही में पिछोर विधानसभा क्षेत्र में आयोजित महिला आत्म सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री ने मतदाताओं से सौदेबाजी की हद ही कर दी। उन्होंने कहा कि ‘पिछोर वालों तुम मुझे इस बार पिछोर विधानसभा से भाजपा का प्रत्याशी जिताकर दो, बदले में मैं पिछोर को जिला बना दूंगा’। याद रहे कि पिछोर विधानसभा सीट तीन दशक से कांग्रेस के कब्जे में हैं। इस बार भाजपा ने अपने जमाने के पुलिस रिकार्ड के इतिहास पुरुष रहे पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के धर्मभाई प्रीतम सिंह लोधी को अपना प्रत्याशी बनाया है। ये वो ही प्रीतम लोधी हैं जिन्हें भाजपा ने पिछले दिनों ब्राह्मणों और बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री के खिलाफ अपशब्द कहने की वजह से पार्टी से निकाल दिया था। बाद में उमा भारती के हस्तक्षेप के बाद उन्हें दोबारा पार्टी में शामिल कर लिया था।
पिछले विधानसभा चुनाव में हारी सीटें जीतने के लिए शुरू किए गए भाजपा के इस अनादर्श चुनाव प्रचार का पिछोर एक नमूना भर है। पिछोर में एक दिन में 409 करोड रुपए की योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया गया। ऐसा ही कुछ शेष 38 विधानसभा क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहां के प्रत्याशियों की घोषणा कर दी गई है, इस अनैतिक चुनाव प्रचार से चुनाव आयोग अनभिज्ञ नहीं है, किन्तु उसने अपनी आंखें बंद कर ली हैं। कांग्रेस के पास इस अभियान का कोई तोड नहीं है। कांग्रेस सरकार के मुकाबले खर्च करने की स्थिति में है ही नहीं, सो इस बार उसके लिए 2018 के विधानसभा चुनावों में जीती हुई सीटों को बरकरार रखना कठिन ही नहीं असंभव हो जाएगा हो जाएगा। बल्कि असंभव हो चुका है। खास बात ये है कि भाजपा नेतृत्व ने पिछले विधानसभा चुनाव में शिवराज बनाम महाराज के मुकाबले को बदली हुई परिस्थिति में ‘शिव-ज्योति’ की जोडी का नाम दे दिया है। अतीत के राजनीतिक दुश्मन अब वर्तमान के मित्र बनकर जनता को लुभाने साथ-साथ निकले हैं। भाजपा में कदम-कदम पर अपने आपको प्रमाणित करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री से ज्यादा गला फाडना पड रहा है। सिंधिया को मुख्यमंत्री के लिए बनाए जाने वाले रेम्प पर जाने की अनुमति नहीं है। वे अलग माइक से जनता को संबोधित करते हैं। यानी आज भी भाजपा में वे शिवराज के ऊपर नहीं हैं, भले ही महाराज हैं। सियासी फैशन शो में ‘कैटवॉक’ का हक शिवराज सिंह चौहान के पास ही है।
इस राजनीतिक कदाचार को रोकने का एक ही रास्ता है कि प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ ही चुनाव आयोग भी आदर्श आचार संहिता लागू कर दे। कम से कम उन विधानसभा क्षेत्रों में तो लागू कर ही दे जिनके प्रत्याशियों के नाम घोषित हो चुके हैं और जिनका चुनाव प्रचार बाकायदा शुरू हो चुका है। यदि चुनाव आयोग ऐसा करने में नाकाम रहता है तो इन चुनावों में आदर्श का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएग। ये माना जाएगा कि राजनितिक दल के कदाचरण में केन्द्रीय और राज्य का चुनाव आयोग भी शामिल है। चूंकि मौजूदा जन प्रतिनिधित्व कानून में शायद इस तरह के कदाचरण की रोकथाम का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए कुछ न कुछ तो सोचा जाना चाहिए, अन्यथा चुनावों की शुचिता जाती रहेगी।