नेहरू की बराबरी के लिए एक और जन्म चाहिए

– राकेश अचल


भारत के लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज दसवीं बार राष्ट्रीय ध्वज फहराकर डॉ. मनमोहन सिंह की बराबरी तो कर ली, लेकिन देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की बराबरी करने के लिए मोदी जी को एक और जन्म की जरूरत पड़ सकती है। उन्होंने आज अपने राष्ट्रीय उदबोधन में ‘प्रिय देशवासियों’ न कह कर ‘प्यारे परिवारजनों’ कहा है। ये कहकर वे अपने सबसे कट्टर राजनीतिक विरोधी नेहरू-गांधी परिवार को निशाने पर रखे रहे। उनके सिर से नेहरू-गांधी का भूत आखिर नहीं उतरा तो नहीं उतरा। मोदी जी तीसरा टर्म हासिल करने के लिए ‘पंच प्राण’ का नारा लेकर देश के सामने प्रकट हुए हैं।
प्रधानमंत्री का भाषण देश के लिए उत्सुकता का विषय था। प्रधानमंत्री का भाषण सीधे-सीधे चुनावी भाषण था। उनके उदबोधन में सिर्फ इतना अंतर था कि उनका मंच राष्ट्र का मंच था और उनके मंच पर दोरंगे के स्थान पर तिरंगा था। प्रधानमंत्री जी न इस महत्वपूर्ण अवसर पर न कोई भावुकता दिखाई और न एक पल के लिए वे भटके। उन्होंने अपने भाषण में भाषा के गाम्भीर्य का हमेशा की तरह अभाव रहा। उन्होंने नए वैज्ञानिकों के लिए ‘गर्भाधान’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया। उनके भाषण में पुरानी नाटकीयता बरकरार रही। वे कविताएं भी ऐसे पढ़ रहे थे जैसे कि कोई मंजन बेचने के लिए विज्ञापन कर रहा हो। अच्छी बात ये रही कि उन्होंने मणिपुर का जिक्र किया, लेकिन हरियाणा का जिक्र नहीं किया। उन्होंने परोक्ष रूप से सरकार की नाकामी को स्वीकार किया, किन्तु दुनिया द्वारा उठाए गए सवालों का कोई जबाब नहीं दिया। जबकि ये मौका था योरोप और इंग्लैण्ड को जबाब देने का।
मोदी जी अपने तीसरे टर्म के साथ ही 2047 तक के भारत की बात करते दिखाई दिए। उनके चेहरे से जो प्रफुल्लता दसवीं बार राष्ट्र को संबोधित करते हुए होना चाहिए थी, वो भी सिरे नदारद थी। राष्ट्र के मंच से परिवारवाद, तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार को इंगित कर जरूर बढिय़ा काम किया। जाहिर है कि उनके पास अब न राम हैं और न धारा 370। वे नेहरू-गांधी परिवार को निशाने पर रखने के साथ ही देश को परिवार के रूप में संबोधित करते नजर आए। तुष्टिकरण को उन्होंने ध्रुवीकरण से स्थानापन्न कर दिया, लेकिन उसका जिक्र नहीं किया। उन्होंने भ्रष्टाचार की बात किन्तु कालाधन की बात नहीं की। जनता के अविश्वास को उन्होंने अपनी नीतियों के प्रति विश्वास बताया। वे नए ‘जिओ पोलटिकल इक्वेशन’ पर भी जमकर बोले। मजा आया उन्हें सुनकर। उन्होंने अपनी घबड़ाहट छिपाने के लिए बार-बार अपने अति आत्मविश्वास से ढांकने का प्रयास किया।
प्रधानमंत्री जी को नेहरु की बराबरी करने के लिए सात साल और चाहिए। ईश्वर यदि उन्हें तीसरा टर्म दे भी दे भी तो भी उन्हें दो साल और चाहिए। इसके लिए उन्हें चौथे टर्म तक का इंतजार करना पड़ेगा। उन्होंने स्थिर सरकार की बात कही। गनीमत ये रही कि उन्होंने अपने आप पर नियंत्रण रखा और राहुल गांधी तथा कांग्रेस का नाम नहीं आने दिया। मोदी जी ने भाजपा के मूल मंत्र भोजन, बैठक और विश्राम को बदलकर रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म का मंत्र दोहराया।
संसद में दिए गए दो घण्टे 12 मिनिट के भाषण के मुकाबले लाल किले की प्राचीर से दिया गया 90 मिनिट का भाषण बहुत ज्यादा अलग नहीं था, सिवाय इसके कि इस भाषण में प्रधानमंत्री जी ने 100 लाख करोड़ से अधिक की प्रधानमंत्री गतिशक्ति योजना का ऐलान जरूर किया। उन्होंने विश्वास दिलाया कि ये योजना लाखों नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर लेकर आने वाली है। यह ऐसा मास्टर प्लान है जो हमारी अर्थ व्यवस्था को मजबूत करेगा। उन्होंने कहा कि आज हमारे ट्रांसपोर्ट के साधनों में कोई तालमेल नहीं है। लेकिन गतिशक्ति इन कठिनाइयों को हटाएगी। इससे सामान्य जन की ‘ट्रैवेल टाइम’ में कमी आएगी। गतिशक्ति हमारे लोकल मैन्युफैक्चर को ग्लोबल स्तर पर लाने में मदद करेगी। अमृतकाल के इस दशक में गति की शक्ति भारत के कायाकल्प का आधार बनेगी।
कुल मिलाकर यदि आज के भाषण के बाद देश की जनता मोदी जी को तीसरी बार भी चुन ले तो भी उन्हें नेहरू को तो छोडिय़े इन्दिरा गांधी की बराबरी करने का मौका नहीं मिल पाएगा। इन्दिरा गांधी ने 16 बार लाल किले की प्राचीर से देश की जनता को संबोधित किय। मोदी जी अपने नेता अटल बिहारी बाजपेयी के अलावा राजीव गांधी और पीव्ही नरसिम्हाराव को पीछे छोडऩे में जरूर कामयाब रहे। अटल जी ने छह बार और राजीव गांधी तथा राव ने पांच-पांच बार लाल किले से तिरंगा फहराया था। हम इस मौके पर मोदी जी के आत्मविश्वास की सराहना करते हैं। हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं। वे तीन बार क्या जितनी बार चाहें प्रधानमंत्री बनें, बस देश को एक बनाए रखें, उसे जलने, झुलसने न दें। देश की सियासत में नफरत, अदावत, संकीर्णता और साम्प्रदायिकता का जहर न फैलने दें। हर प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी होती है कि वो पुराने जख्मों को न कुरेदे, उनके ऊपर मरहम लगाए। अभी इस काम को तेज नहीं किया गया है। वैसे आपको याद दिला दूं कि मप्र में 2003 में उमा भारती भी ‘पंच ज’ के सहरे सत्ता में आई थीं। इसलिए प्रधानमंत्री जी का पंच प्राण बहुत ज्यादा मौलिक नहीं है।