– राकेश अचल
राजनीति पर रोज भारी मन से लिखना पडता है, न लिखूं तो भी कोई पहाड नहीं टूटने वाला। लेकिन लिख देने से बहुत कुछ टूटने से बच जाता है। ठीक इसी तरह संसद में अविश्वास प्रस्ताव गिरने से केन्द्र की सरकार नहीं गिरती, लेकिन देश का संसदीय आचरण और उसी के साथ देश की सियासत की गिरावट को आप साफ देख सकते हैं। अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विपक्ष और प्रस्ताव गिरने के लिए सरकार को बधाई देते हुए मैं कहना चाहता हूं कि देश की आजादी के अमृतकाल में किसी अविश्वास प्रस्ताव पर अब तक की ये सबसे दयनीय बहस थी।
अविश्वास प्रस्ताव के जरिये सरकारें गिराने के गिने-चुने उदाहरण ही हैं, लेकिन अविश्वास प्रस्तावों के जरिये गिरती हुई सरकारों को गिरावट से रोकने के अनेक उदाहरण हैं। अविश्वास प्रस्तावों के जरिये सरकारों को लेकर विश्वास तो पैदा होने का सवाल ही नहीं होता, किन्तु सरकारों को आइना अवश्य दिखाया जा सकता है। सरकारें भी इस तरह के अविश्वास प्रस्तावों के जरिये अपनी उपलब्धियां गिनाने के साथ ही अपने भावी कार्यक्रमों के जरिये जनता के मन में बढ़ती आशंकाओं को निर्मूल करने की कोशिश करती हैं। दुर्भाग्य से इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिस विषय को रेखांकित करने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था वो तो पाश्र्व में चला गया और घटिया सियासत सतह पर आ गई। सांसदों से लेकर प्रधानमंत्री तक व्यक्तिगत मान-अपमान में उलझे रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दो घण्टे 12 मिनिट का भाषण उबाऊ और नाटकीय रहा। बार-बार ये लगा कि वे संसद में नहीं बल्कि भाजपा की किसी आम सभा में बोल रहे थे। उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के बार-बार के निर्देशों की अव्हेलना करते हुए न सिर्फ सत्ता पक्ष से नारेबाजी कराई, बल्कि सुधीर रंजन चौधरी जैसे सांसदों पर निजी टिप्पणी कर सदन की और अपनी गरिमा को कम किया। मुमकिन है कि प्रधानमंत्री जी ने शाबासी का काम किया हो, लेकिन मुझे न जाने ऐसा क्यों प्रतीत नहीं हुआ। मैं भाजपा या किसी दल का कार्यकर्ता नहीं हूं, मुझे अंधभक्त भी नहीं कहा जा सकता, किंतु एक नागरिक के नाते मैंने प्रधानमंत्री जी के भाषण को अद्यतन सुना। हालांकि इतना लंबा भाषण सुनना एक अग्निपरीक्षा से कम न था।
देश में जबसे संसद की कार्रवाई का सीधा-सजीव प्रसारण शुरू हुआ है तभी से देश ने न जाने कितने अविश्वास प्रस्तावों पर बहस सुनी है और प्रधानमंत्रियों के उत्तर भी सुने हैं, मेरी स्मृति में प्रधानमंत्री मोदी का ये भाषण सबसे निम्न स्तर का था। उनके भाषण से मणिपुर हिंसा को लेकर देश के भीतर और देश के बाहर जो सवाल उठाए गए थे उनके उत्तर आए ही नहीं। उन्होंने न देश को सरकार की भूमिका को लेकर आश्वस्त किया और न दुनिया को। उन्होंने न योरोप और इंग्लैण्ड की संसदों में मणिपुर मुद्दा उठाए जाने पर एक शब्द कहा और न मणिपुर में हुई हिंसा पर सरकार की असफलताओं के लिए खेद जताया। वे राज्य और दुनिया की जनता को धार्मिक स्थलों को राख किए जाने पर भी कुछ नहीं बोले। उन्होंने न राज्य में सेना भेजने पर कुछ कहा और न जलाए गए धर्म स्थलों को दोबारा बनाए जाने का आश्वासन दिया। वे पीडितों के पुनर्वास और मृतकों के आश्रितों को मुआवजा देने की मांग पर भी मौन रहे। ये सब अहमन्यता का मुजाहिरा नहीं तो और क्या है?
अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री जी से बेहतर और प्रभावी भाषण तो सीताराम बजट बनाने वाली वित्तमंत्री श्रीमती सीतारमण का भाषण था। कम से कम उन्होंने एक स्तर तो कायम रखा। नाटकीयता उनके भाषण में कम न थी, किन्तु उसे सुनकर जुगुप्सा पैदा नहीं हुई। प्रधानमंत्री जी के इस दावे पर भी हंसी आई कि उनकी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का असर आने वाले एक हजार साल तक रहेगा। यही अहमन्यता है, यही घमण्ड है। वे भूल जाते हैं कि राजनीतिक उपलब्धयों को लोग बहुत जल्द भूल जाते हैं। कोई भी निर्णय एक हजार साल तक असरकारी नहीं होता।
बहरहाल मुझे लगता है कि कांग्रेस के राहुल गांधी के कथित रूप से अमर्यादित 38 मिनट के भाषण के जबाब में किसी प्रधानमंत्री का दो घण्टे 12 मिनट बोलना और राहुल गांधी की ही तरह अमर्यादित होकर बोलना पद और संस्था की गरिमा के अनुरूप नहीं है। मोदी जी ऐसे अभागे प्रधानमंत्री हैं जिनके भाषण को समूचे विपक्ष ने अनसुना किया। विपक्ष बहिर्गमन कर गया। उनका भाषण केवल संसद की दीवारों ने सुना। टेलीविज के जरिये सीधे प्रसारण से देश ने भी उनका भाषण देखा होगा और जो धारणा बनाई होगी उसका पता आने वाले दिनों में देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों से चलेगा।
प्रधानमंत्री मोदी की तरह मैंने भी मान लिया है कि चाहे पूरब जले या पश्चिम, उत्तर जले या दक्षिण मोदी जी हर सूरत में तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। इसके लिए उन्हें न चुनावों के परिणामों की प्रतीक्षा है और न चुनकर आने वाले सांसदों के समर्थन की जरूरत। वे स्वयंभू प्रधानमंत्री बन चुके हैं। किस ज्योतिषी ने या किसी ख्वाब ने प्रधानमंत्री जी को आश्वस्त कर दिया है कि वे ताउम्र प्रधानमंत्री रहने वाले हैं, पं. जवाहर लाल नेहरू की तरह। मैं या कोई और उनके ख्वाब और भाग्य को चुनौती नहीं दे सकता। नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और अमित शाह को भी अब प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना बंद कर देना चाहिए। ये काम जनता ही कर सकती है। जनता का काम जनता को करने देना चाहिए। भगवान करे मोदी जी का ख्वाब पूरा हो। लेकिन तब तक देश का क्या कुछ बनना और बिगडना है, इस पर सभी को निगाह रखना चाहिए। अविश्वास प्रस्ताव पर माननीय के भाषण से एक बात स्पष्ट हो गई है कि उन्हें न देश की फिक्र है और न दुनिया की। जिसे जो कहना है, कहता रहे। वे करेंगे अपने मन की ही।
अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष की तैयारी सचमुच लचर रही। विपक्ष जरा सी मेहनत और करता तो मुमकिन है कि परिदृश्य कुछ और होता। विपक्ष को समझ लेना चाहिए कि प्रधानमंत्री न कांग्रेस की भारत जोडो यात्राओं से आतंकित हैं और न नए विपक्षी गठबंधन से। उनके पास चुनाव जितने का जो मंत्र है वो कुछ और ही है। वे चुनाव को पूंजी के ढंग से जीतना चाहते है। भाजपा ने पिछले दो आम चुनावों को जितना महंगा बनाया है, आने वाला चुनाव उससे भी कहीं ज्यादा मंहगा होगा, क्योंकि इस समय सरकार और पूंजीपति एक-दूसरे की मुट्ठी में है। विपक्ष के पास सत्तापक्ष की पूंजी का मुकाबला करने लायक पूंजी नहीं है। जनता का समर्थन ही विपक्ष की पूंजी हो सकता है। जनता की पूंजी भी सुरक्षित नहीं है। उसे कभी भी खरीदा और लूटा जा सकता है।
हममें से शायद कोई भी आज की राजनीति का प्रभाव देखने के लिए एक हजार साल जीवित रहे। एक हजार साल तो विचार धाराएं भी जीवित नहीं रह पातीं। लेकिन हमें कम से कम अपनी आने वाली पीढिय़ों पर आज की राजनीति के प्रभावों और दुष्प्रभावों पर नजर रखना चाहिए। बच्चों को आज की अदावती, नफरती, संकुचित और अनुदार राजनीति के बारे में खुलकर बताना चाहिए। आने वाली पीढ़ी केरियर निष्ठ पीढ़ी है। उसके पास सियासत को समझने या सियासत में हिस्सा लेने की फुर्सत नहीं है। इसका लाभ लम्पट राजनीति के पोषक उठा रहे हैं। भाजपा ने जिन तीन चीजों को ‘क्विट इंडिया’ के लिए चुना है। उनको समझते हुए विपक्ष को सावधानी पूर्वक आगे बढऩा होगा, अन्यथा अधीर रंजन चौधरी ने गुड का गोबर किया हो या न किया हो, लेकिन स्वप्नलोक में जीने वाले अहमन्य नेता जरूर देश के गुड का गोबर कर देंगे। एक पूरी पीढ़ी के दिमाग में नफरत का गोबर भर देंगे।