घोटाला प्रदेश में एक और घोटाला : मन्दिरों की करोडों की जमीन हडप ली रसूखदारों ने

– राकेश अचल


घोटालों के लिए इंडियन इंडेक्स में सबसे शीर्ष पर रहने वाले मध्य प्रदेश में जब तक घोटाला न हो तब तक न सरकार को चैन मिलता है और न नौकरशाही को। पिछले दिनों पटवारी भर्ती घोटाले के बाद अब प्रदेश में धार्मिक स्थलों की भूमि हडपने का घोटाला सामने आया है। मजे की बात ये है कि इस घोटाले में नेता, अफसर और तमाम रसूखदार लोग शामिल हैं, किन्तु कोई किसी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है। मप्र में धार्मिक संपत्तियों के रख-रखाव का जिम्मा माफी औकाफ विभाग पर है।
मप्र में धार्मिक आस्था वाली सरकार है। लेकिन ये सरकार मन्दिरों-मस्जिदों की जमीनों को पंजीरी की तरह तकसीम करने में ज्यादा भरोसा करती है। प्रदेश में एक तरफ धार्मिक स्थलों को लोक के रूप में विकसित किया जा रहा है, दूसरी तरफ इन मन्दिरों के रख-रखाव के लिए अतीत में राजे-रजवाडों द्वारा दी गई जमीन को खुर्द-बुर्द भी किया जा रहा है। ताजा सूचना ये है कि अकेले ग्वालियर-चंबल संभाग में ही धार्मिक विभाग की करीब 1200 करोड रुपए की मन्दिरों की जमीन एक दर्जन रसूखदार लोगों ने हडप ली और सरकार कुछ नहीं कर पाई। संभाग स्तर पर जब खसरों का मिलान किया गया तो ये जमीन घोटाला पकड में आए। अब मौजूदा अधिकारी सिर पकडकर बैठे हैं। मजे की बात ये है कि मन्दिरों की जमीन हडपने वालों में एक पूर्व न्यायाधीश का नाम भी शामिल हैं। हाईकोर्ट के इन पूर्व न्यायाधीश का नाम बाकायदा खसरे में अंकित है।
ग्वालियर के जगनापुरा हल्के में स्थित राम-जानकी मन्दिर को तत्कालीन सिंधिया शासकों ने तीन एकड जमीन दी थी, किन्तु अब इस जमीन पर एनके कुमार मोदी का नाम दर्ज है। मोदी मप्र हाईकोर्ट के न्यायाधीश रह चुके हैं और सिंधिया राजघराने के विधिक सलाहकार भी हैं। मोदी के पुत्र अंकुर मोदी ग्वालियर के अतिरिक्त महाधिवक्ता हैं। उनसे कोई कैसे जमीन वापस ले सकता है?
सिंधिया की पुरानी रियासत के रायरू हल्के में ग्राम कुतवार में देवीजी का मन्दिर है। इस मन्दिर की जमीन पर बेनाम लोगों के नाम दर्ज हैं। रुद्रपुरा में बाबा कपूर दरगाह की जमीन पर रामदास प्यारेलाल दर्ज का नाम लिख दिया गया है, यहां तक कि चबूतरा माताजी देह हजा की जमीन भी नहीं छोडी गई। रामबांके रामकुई मन्दिर की जमीन अब भगवान के नाम नहीं, किन्हीं जगन्नाथ पुत्र देवी के नाम लिखी जा चुकी है, कोटा लश्कर में शिव-सती मन्दिर की जमीन पर अब लक्ष्मण सिंह पुत्र मुंशी का नाम लिखा जा चुका है, देव स्थान मूर्ती साहब की बगिया की जमीन का मालिक अब अम्रेश्वरी देवी पत्नी किशनपाल को बना दिया गया है।
ग्वालियर शहर के बीचों बीच निम्बालकर की गोठ में स्थित मन्दिर श्री मंगलमुर्ति की जमीन पर भी अब भगवान के नहीं, निजी लोगों के नाम दर्ज हैं। गंगा मालनपुर में भुजबला देव स्थान की जमीन भी अब निजी हो चुकी है और देवी जी देखती रह गईं। गौसपुरा में मन्दिर सोमेश्वर महादेव, गडाई पुरा में मन्दिर गणेशजी, ग्राम बडा में बाबा कपूर की दरगाह और बहोडापुर में हनुमान मन्दिर की जमीन अब आनंदपुर ट्रस्ट के नाम लिखी जा चुकी है। माफी औकाफ विभाग इस तरह के भूमि घोटाले पर मौन है। संभागीय माफी अधिकारी कहते हैं कि उन्होंने मामला संभाग आयुक्त के संज्ञान में ला दिया है। कलेक्टर भी कहते हैं कि हमने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं, संभाग आयुक्त ने भी इस जमीन घोटाले की रिपोर्ट शासन को भेजकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। और सरकार के पास तो इस घोटाले पर कार्रवाई करने के लिए फुरसत ही कहां है।
इस जमीन घोटाले में रसूखदारों की मदद राजस्व विभाग का अमला भी शामिल है। अगर पटवारी ये हेरफेर न करे तो उसे राजस्व निरीक्षक हडकाता है। राजस्व निरीक्षक का जमीर जाग जाए तो उसे नायब तहसीलदार हडकाता है। नायब तहसीलदार भी भगवान से डर जाए तो उसे एसडीएम हडका देता है। सबसे ऊपर तो कलेक्टर साहब होते ही हैं, जिन्हें किसी का भय नहीं होता। सरकार का भी नहीं और भगवान का भी नहीं। वे डरते हैं तो नेताओं से, मंत्रियों, विधायकों और सांसदों से। उनके कहने पर वे मन्दिरों की जमीन क्या मन्दिर तक किसी के भी नाम लिख सकते हैं। लिख चुके हैं।
ग्वालियर में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी के शहीद स्थल गंगादास महाराज की बडी शाला की सैकडों बीघा जमीन इसी तरह हडप ली गई। बेचारे महंत जी अदालतों के चक्कर काट-काटकर थक गए। मप्र में ऐसे करीब 750 धार्मिक स्थल हैं, जिन्हें आजादी के पहले के सत्ता प्रतिष्ठान ने तमाम जमीनें अता फरमायी थीं, लेकिन आज की सरकारों ने इन तमाम जमीनों को रसूखदारों के नाम लिख दिया। उस पर से तुर्रा ये कि सरकार तो धार्मिक मिजाज की है। लोक पर लोक बनाए जा रही है। धार्मिक स्थलों की जमीनों पर स्वत्व के अमले में सिंधिया परिवार के एक दर्जन से अधिक ट्रस्टों में से अनेक का नाम लिया जाता रहा है। अनेक मामले अदालतों में विचाराधीन हैं, लेकिन भगवान की मदद कोई नहीं कर पा रहा। भगवान लाचार हैं भूमाफिया के समाने।
मप्र सरकार का धर्मस्व विभाग मन्दिरों की संपत्ति की रक्षा करने के अलावा सब करता है। विभाग को मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना, सिंधु दर्शन योजना, कैलाश मानसरोवर दर्शन योजना, पाकिस्तान स्थित हिंगलाज देवी मन्दिर और श्रीलंका स्थित सीता माता मन्दिर दर्शन योजना से ही फुरसत नहीं मिलती। ऐसे में सरकार मन्दिरों की जमीन बचाए तो आखिर कैसे बचाए? कहने को शासन ने प्रदेश में दर्जनों पूजा घरों के प्रबंधन के लिए समितियां, निगम और मण्डल बना रखे हैं, लेकिन कोई भी मन्दिरों की जमीनों को बचने की गारंटी नहीं देता।
मप्र सरकार के कानून के हिसाब से प्रदेश के ऐसे मन्दिर जिनके संबंध में भू-अभिलेख में भूमि-स्वामी के रूप में मन्दिर की मूर्ति का नाम दर्ज है, उन मन्दिरों को शासन संधारित मन्दिर की श्रेणी में रखते हुए कलेक्टर को भू-अभिलेख में प्रबंधक के रूप में दर्ज किया जाता है। शासन संधारित मन्दिरों में शासन द्वारा मुख्यत: मन्दिरों का जीर्णोद्धार एवं धर्मशाला का निर्माण कराया जाता है। इनमें कार्यरत पुजारियों की नियुक्ति, पदच्युक्ति तथा मानदेय वितरण का कार्य कलेक्टर के माध्यम से विभाग द्वारा कराया जाता है। लेकिन शायद ही ऐसा कोई दिलेर कलेक्टर प्रदेश में आया हो जिसने मन्दिरों की जमीनों से घोटाला कर काबिज हुए भू-माफिया को बेदखल करने में रुचि ली हो।
मप्र में धार्मिक मामलों का विभाग स्व. लक्ष्मीकांत शर्मा के अलावा श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया के पास भी रहा, लेकिन वे दोनों भी भगवान की संपत्ति नहीं बचा पाए। अब सुश्री ऊषा ठाकुर के पास पूजा स्थलों की संपत्ति की सुरक्षा का दायित्व है, लेकिन वे भी इस विभाग के कामकाज में ज्यादा दखल नहीं देतीं और नौकरशाही को तो इस काम के लिए फुरसत ही नहीं है। नौकरशाही तो भगवान के बजाय मतदाताओं को तीर्थ दर्शन करने की योजनाओं पर अमल करने में लगी है, क्योंकि ये चुनाव का साल है। मजे की बात ये है कि पूजा घरों की जमीन हडपने के इस घोटाले की सुध विपक्ष को भी नहीं है। विपक्ष भी मप्र में घोटालों की फेहरिस्त बना-बनाकर थक गया है। कार्रवाई किसी के ऊपर होती नहीं है। बीते 18 साल में प्रदेश की भाजपा सरकार में कोई काम बिना घोटाले के हुआ हो, ऐसा मुझे याद नहीं आता।
मन्दिरों की संपत्ति के मामले में मप्र सरकार का रवैया ढुलमुल है। हाल ही में सरकार ने नया नियम बना दिया है कि मप्र में मन्दिर से जुडी जमीन को नीलाम करने या लीज पर देने के लिए कलेक्टर से इजाजत नहीं लेनी पडेगी। अब मन्दिर के पुजारी ही मन्दिर से जुडी जमीन को नीलाम या लीज पर देने का काम कर सकेंगे। ये नियम चुनाव को देखते हुए ही किया गया है।