मनुष्य गति ऐसी है, जो नर से नारायण और नर से नारकी भी बना देती है : विनय सागर

48 दिवसीय भक्ताम्बर विधान में चल रही है भगवान की आरधान

भिण्ड, 25 जुलाई। अनादिकाल ऐसे ही चला गया, अनंत काल निकल गए। अनादिकाल से संसार में भटक रहे हैं। संसार के रंगमंच पर जादूगर की तरह ड्रेस बदलकर आते हैं। मनुष्य गति ऐसी है, जो नर से नारायण और नर से नारकी भी बना देती है। संसार का सुख सुखाभास्य है। लक्ष्य बनाकर जीवन जिए, आत्मा से परमात्मा बनाने वाले धर्म पर संशय, भ्रम, मय है। जब तक मिथ्यात्व रहेगा, आप अपना कल्याण नहीं कर सकेंगे। स्वाधीन होना है जिन धर्म पर चलें। कई भवों के बाद जैन धर्म मिला है, कर्मों के अधीन न हो। यह उदगार श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने संस्कारमय पावन वर्षायोग समिति एवं सहयोगी संस्था जैन मिलन परिवार के तत्वावधान में मंगलवार को महावीर कीर्तिस्तंभ में आयोजित 48 दिवसीय भक्ताम्बर महामण्डल विधान में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि इन्द्रियों को सुख मानने वाला सम्यक दृष्टि नहीं हो सकता। सुख की व्याख्या पता नहीं तो सत्य का ज्ञान नहीं हो सकता है। व्यक्ति कर्म के अधीन है, सुख तो आपके पास है, लेकिन बाहर तलाश रहे हैं। परमात्मा को बाहर खोज रहे हैं। गुरू, आचार्य, भगवंत भी कहते हैं कि संसार का सुख वेदना का है, संसार का सुख सुखाभाष्य है। लक्ष्य बनाकर जीवन जिएं, आत्मा से परमात्मा बनाने वाले धर्म पर चलें।
आप अच्छे पुण्य के कारण उच्च कुल में जन्मे
श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने कहा कि कई भवों तक भटकने के पश्चात उच्च कुल जैन धर्म मिला है, कर्मों के अधीन न हो आप। आकूलता वाला नहीं निराकूलता वाला सुख चाहिए। वीतराग पर विश्वास के बाद ही जैनत्व आता है। अच्छे पुण्य के कारण उच्च कुल में जन्म हुआ है। जैनेश्वरी दीक्षा के बिना कल्याण नहीं हो सकता है। दुख संकट के पांच कारण आपने बताएं और यह दुख दूर पंचकल्याणक से हो जाते हैं। पाषण को हम मंत्र के माध्यम से परमात्मा बना सकते हैं, तो आप चेतन्य लोग हैं, आप भी परमात्मा क्यों नहीं बन सकते हैं। समय नहीं लगेगा आत्मा परमात्मा बनेगी, फिर संसार में नहीं आएगी। जैन दर्शन के अनुसार हर आत्मा परमात्मा बन सकती है ।
इन्द्रों ने भगवान जिनेन्द्र का किया अभिषेक, कलश से की शांतिधारा
प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य एवं विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ग्वालियर के मार्गदर्शन में केशरिया वस्त्रों में इन्द्रों ने मंत्रों के साथ कलशों से भगवान आदिनाथ को जयकारों के साथ अभिषेक किया। मुनि ने अपने मुखारबिंद मंत्रों से भगवान आदिनाथ के मस्तक पर इन्द्रा- राजू जैन, विनोद कुमार, प्रशांत, अभिनाश जैन और मनीष जैन ग्वालियर परिवार ने शांतिधारा की। मुनि को शास्त्र भेंट समाज जनों ने सामूहिक रूप से किया। आचार्य विराग सागर, विनम्र सागर के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन आर्ची, शानू, नीलम, श्रेया, राजू जैन सपरिवार, दूसरे विनोद कुमार, मीना, प्रशांत, अभिनाश जैन, रश्मि, पुष्पा जैन महावीर गंज, तीसरे मनीष, जूली जैन परिवार ने किया।
भक्ताम्बर विधान में प्रभु की आरधान कर नृत्य के साथ चढ़ाए महाअघ्र्य
श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य में विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ने भक्ताम्बर महामण्डल विधान में आर्ची, शानू, नीलम, श्रेया, राजू जैन सपरिवार, दूसरे विनोद कुमार, मीना, प्रशांत, अभिनाश जैन, रश्मि, पुष्पा जैन महावीर गंज, तीसरे मनीष, जूली जैन परिवार एवं इन्द्रा-इन्द्राणियों ने भक्ताम्बर मण्डप पर बैठकर अष्टद्रव्य से पूजा अर्चना कर भजनों पर भक्ति नृत्य करते हुए महाअध्र्य भगवान आदिनाथ के समक्ष मण्डप पर समर्पित किए।