धर्म का मार्ग और पुण्य की साधना नहीं छोडनी चाहिए : विनय सागर

48 दिवसीय भक्ताम्बर विधान में चल रही है भगवान की आरधान

भिण्ड, 24 जुलाई। धर्म के मार्ग और पुण्य संचय का साधन कभी नहीं छोडना चाहिए। मनुष्य के जीवन की नैया पार इन्हीं दोनों मार्गों के माध्यम से होनी चाहिए। धर्म का मार्ग और पुण्य संचय का साधन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि जो व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलेगा, वहीं पुण्यकर्म करेगा। धर्म का मार्ग जीवन में शांति देता है। इंसान को धर्म के साथ शांति का जीवन मिल जाए तो इससे बडी कोई पूंजी नहीं हो सकती है। यह उदगार श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने संस्कारमय पावन वर्षायोग समिति एवं सहयोगी संस्था जैन मिलन परिवार के तत्वावधान में सोमवार को महावीर कीर्तिस्तंभ में आयोजित 48 दिवसीय भक्ताम्बर महामण्डल विधान में व्यक्त किए।
मुनि विनय सागर महाराज ने कहा कि हम अपने जीवन में धर्म और पुण्य दोनों का समावेश आसानी से कर सकते हैं, लेकिन इंसान इनका समावेश नहीं कर रहा है। जिसके कारण मनुष्य भटक रहा है और भटकते-भटकते वह मनुष्य का जीवन पूरा कर लेगा। इसके बाद उसे पता नहीं अगले जन्म में कौन-सा भव (योनि) मिले। विचारों से ही संस्कारों की उत्पत्ति होती है। यही विचार हमारे जीवन को श्रेष्ठ बनाते हैं। इसलिए मनुष्य को अपनी लगन भगवान के प्रति लगानी चाहिए। जिससे वह इसी जन्म में भव को पार कर सके।
अपने जीवन में दान और त्याग अपने शक्ति के अनुसार करते रहिए
श्रमण मुनि विनय सागर ने कहा कि जो वस्तु हाथ से छूट जाए उसे त्याग कहते है और जो दिल से छूट जाए उसे वैराग्य कहते है। जो दान देते है उसके साथ हर पर्याय में पुण्य की छाह बनी रहेगी। जीवन में दान और त्याग अपने शक्ति के अनुसार करते रहिए। साधु भी दान करता है, वो अपने ज्ञान का दान देते है। आप द्रव्य का दान करते हैं, यदि आप कमाते हैं तो रोज दान भी करना चाहिए। जैसे कुएं का पानी निकालने पर उसका पानी और शुद्ध होता है, उसी तरह जो दान देते हैं उनकी संपत्ति भी शुद्ध होती है।
इन्द्रों ने भगवान जिनेन्द्र का किया अभिषेक, कलश से की शांतिधारा
प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य एवं विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ग्वालियर के मार्गदर्शन में केशरिया वस्त्रों में इन्द्रो ने मंत्रों के साथ कलशों से भगवान आदिनाथ को जयकारों के साथ अभिषेक किया। मुनि ने अपने मुखरबिंद मंत्रों से भगवान आदिनाथ के मस्तक पर इन्द्रा राकेश जैन परिवार ने शांतिधारा की। शास्त्र भेंट समजा जनों ने सामूहिक रूप से किया। आचार्य विराग सागर, विनम्र सागर के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन राकेश जैन परिवार ने किया।
भक्ताम्बर विधान में प्रभु भक्ति के साथ आरधान कर चढ़ाए महाअघ्र्य
श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य में विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ने भक्ताम्बर महामण्डल विधान में राकेश जैन परिवार एवं इन्द्रा-इन्द्राणियों ने भक्ताम्बर मण्डप पर बैठकर अष्ट्रद्रव्य से पूजा अर्चना कर भजनों पर भक्ति नृत्य करते हुए महाअध्र्य भगवान आदिनाथ के समक्ष मण्डप पर समर्पित किए।