– अशोक सोनी ‘निडर’
देश की बिगडती कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। कहीं हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर, तो कहीं जातीय हिंसा के नाम पर दंगे भडका कर देश की एकता व अखण्डता को तोडने का प्रयास किया जा रहा है। बहन-बेटियों के साथ सामूहिक रूप से दुष्कर्म, हत्या, आगजनी जैसी घटनाओं से पूरा देश त्रस्त और भयभीत है। न्यायालयों के आदेशों की भी अव्हेलना की जा रही है।
मणिपुर में वहशी दरिंदों या कहें इंसानी भेडियों ने महिलाओं को सरेआम नंगा करके उनके साथ दुष्कर्म करके जिंदा जला दिया, जिसमें एक महिला देश की रक्षा करने वाले आर्मी के एक सैनिक की पत्नी थी, तो दूसरी महिला देश को आजादी दिलाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फौज के एक महान स्वतंत्रता संग्राम सैनानी की 80 वर्षीय विधवा थी। देश की रक्षा में अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले उन बहादुर सैनिकों ने देश की आन-वान-शान को तो बचा लिया, लेकिन अपनी पत्नी की जान नहीं बचा सके।
ये घटनाएं मणिपुर के मुख्यमंत्री, भारत के प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री के लिए शर्म से डूब मरने जैसी हैं। अपनी जान गंवाने वाली उन महान वीरांगनाओं को श्रृद्धा सुमन समर्पित करता हूं। साथ ही एक कवि की कलम आंसुओं की स्याही से कुछ शब्द समर्पित कर रही है। प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री के सम्मान में-
आग लग चुकी शहर जल चुके, लाशों के अंबार लग चुके।
तुम कब अपना मुंह खोलोगे, कब बोलोगे, कब बोलोगे।
देशभक्ति का क्या मतलब है, लोकतंत्र का यही सबब है।
दुनिया भर में तुम डोलोगे, हर भाषा में मत तोलोगे।
लोग मर रहे कब बोलोगे, कब बोलोगे कब अपनी चुप्पी तोडोगे।
इसको रोको उसको रोको, जेल में भर दो सडक पे ठोको।
दुनिया अब तो थूक रही है, तुम कब अपना मुंह खोलोगे, कब बोलोगे।
देखो उनके चेहरे देखो, दर्द की मारी चीखें देखो।
दया नहीं आती है बिल्कुल, तडप नहीं उठती है भीतर।
उन चेहरों में बहनें अपनी, माएं नहीं दिखती हैं पल भर।
अगर नहीं तो जाने दो फिर, क्यों बोलोगे क्या बोलोगे।
जहर तुम्हारा देश की नस में, धीरे-धीरे उतर रहा है।
तीन रंग के बीच में बैठा न्याय का पहिया सुबक रहा है।
सारे रंग उतर जाएंगे तब बोलोगे, कब तुम अपना मुंह खोलोगे कब बोलोगे।
सारा भारत पूछ रहा है कब बोलोगे, कब बोलोगे, कब बोलोगे।