बडागांव पंचायत में नियमों को ताक पर रखकर किया जा रहा है रोड का निर्माण

ग्राम पंचायत बडागाव में मशीनों से हो रहा है मनरेगा का काम

भिण्ड, 07 जुलाई। लहार जनपद के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत बडागांव नं.दो में भी वर्तमान में इस योजना के साथ लूट खसूट करने की कोशिश बदस्तूर जारी है। जी हां, बिल्कुल यहां पर भी ग्राम बडागांव से ग्राम कसल के लिए पंचायत द्वारा एक कच्ची रोड का निर्माण कराया जा रहा है, जिसमें सरेआम मजदूरों के पेट पर लात मारी जा रही है। वैसे तो ऐसे कार्यों को रात के अंधेरे में अंजाम दिया जाता है, परंतु बडागांव नं.दो में तानाशाही इतनी बढ़ गइ्र है कि इस कच्चे रोड के निर्माण कार्य को मशीनों द्वारा दिन दहाडे अंजाम दिया जा रहा है।
वहीं ग्रामीणों ने पंचायत अमले पर आरोप लगाते हुए कहा कि बिना सीमांकन, बिना पैमाइश के अपनी मनमर्जी अनुसार सरपंच द्वारा इस रोड का कार्य कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे द्वारा सरपंच से मजदूरों की बात की गई कि यह कार्य मनरेगा है, इसे मजदूरों द्वारा कराया जाए, तो सरपंच का कहना है कि रोड मशीनों द्वारा ही डाला जाएगा, हम इस रोड को खेत के बीचोंबीच से भी डाल देंगे। वहीं ग्रामीणों ने बताया कि इस समस्या को लेकर हमारे द्वारा सीएम हेल्प लाइन पर भी इसकी शिकायत की जा चुकी है, परंतु फिर भी कोई हल नहीं निकला है। इसके बाद एक ग्रामीणों ने अनुविभागीय अधिकारी को भी गत गुरुवार को एक शिकायती आवेदन दिया, जिसमें मामले की जांच कर कार्रवाई की गुहार लगाई है।

मजदूरों की जगह मशीनों से कराया जा रहा मनरेगा कार्य

देश के ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब-मजदूरों को उनके गांव में ही रोजगार देने की एक अनोखी पहल के रूप में मनरेगा की शुरुआत की गई थी। वास्तव में रोजगार सृजन के तौर पर इसे एक सशक्त योजना कही जा सकती है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) जिसे बाद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से जोडकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) कर दिया गया। इस योजना के तहत भारत के प्रत्येक मजदूर (महिला एवं पुरुषों) को साल में सौ दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है। इस योजना का क्रियान्वयन इस तरह से विकसित किया गया था कि हर जाति-वर्ग के गरीब लोगों को मजदूरी मिलने लगी थी, मजदूरों को एक जॉब कार्ड यानी मजदूरी कार्ड मिलने लगा था। लेकिन दुर्भाग्य से अन्य योजनाओं की तरह यह भी किसी न किसी रूप से भ्रष्टाचार की भेंट चढऩे लगी, आपको कहीं भी सुनने को मिल सकता है कि मजदूरों के नाम पर संभ्रांत परिवार के लोगों ने भी अपने घर में बूढ़े, नौजवान, बच्चे एवं महिलाओं तक के नाम पर जॉब कार्ड बनवाकर मजदूरों के नाम पर आई मजदूरी को हडपने का कार्य प्रारंभ कर दिया है। जिन लोगों ने कभी अपने खेतों में काम नहीं किया था, कभी फावडा नहीं चलाया था, ऐसे लोगों ने गरीब-मजदूरों की हकमारी की शुरुआत कर दी थी। फलस्वरूप गरीब और रोजगार के लिए जरूरतमंद परिवार इस योजना का वाजिब लाभ पाने से वंचित होने लगे है। हालांकि शुरू में इस योजना से मजदूरों को काफी लाभ मिला, फिर धीरे-धीरे इस योजना के नाम पर कागजी खानापूर्ति होने लगी है। परिणामस्वरूप जो महिला एवं पुरुष मजदूरी से काम करके गांव में रहकर ही दो वक्त की रोटी जुटाते थे, आज वही लोग रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों की ओर पलायन कर रहे हैं। दूसरी ओर कुछ तानाशाही लोग रुपए पैसे और अपने पद का गलत इस्तेमाल करके मजदूरों का हक मारते हुए दिन व रात्रि में जेसीबी मशीन से खुदाई-भराई का काम करवाकर अपनी जेबें भरने में लगे हुए है।