– राकेश अचल
भारत के तमाम लोग भूत-प्रेत में यकीन करते हैं किन्तु मैं नहीं करता। लेकिन मेरी ये धारणा अब बदल रही है। अमेरिका प्रस्थान से पूर्व प्रधानमंत्री जी के मन की बात सुनकर मुझे यकीन हो गया कि भूत-प्रेत होते होंगे। दरअसल नरेन्द्र मोदी बीते नौ साल से देश के प्रधानमंत्री हैं किन्तु अब तक कांग्रेस का भूत उनके सिर पर सवार है। अमेरिका जाने से पहले देश के लोगों से अपने ‘मन की बात’ करते हुए भी प्रधानमंत्री जी को कांग्रेस के भूत ने परेशान किया। उन्होंने 25 जून को देश में कांग्रेस की तत्कालीन सरकार द्वारा लागू की गई इमरजेंसी को तो याद किया, लेकिन मणिपुर पर एक शब्द नहीं कहा।
नरेन्द्र मोदी जी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने नौ साल में भारतीय प्रेस से एक बार भी बात नहीं की, लेकिन आकाशवाणी के जरिये देश से वे 102 बार बात कर गए। प्रधानमंत्री जी हर महीने के आखिरी रविवार को मन की बात करते हैं। ये टेलीकास्ट होती है, इसमें टेलीप्रॉम्प्टर की जरूरत पड़ती है या नहीं, मैं नहीं जानता। इस बार ये मन की बात प्रधानमंत्री मोदी के 21 से 24 जून तक अमेरिका दौरे पर रहने की वजह से इस बार एक हफ्ते पहले प्रसारित की गई। मोदी जी ने कहा भी कि अगले हफ्ते मैं अमेरिका में रहूंगा और वहां बहुत सारी भाग-दौड़ भी रहेगी और इसलिए मैंने सोचा, वहां जाने से पहले आपसे बात कर लूं। मन की बात के प्रति प्रधानमंत्री जी की इतनी गंभीरता स्तुत्य है।
आप भले ही मुझे मोदी जी का विरोधी कहें और समझें किन्तु मैं नियमित तौर से उनके मन की बात सुनता हूं। क्या पता उनके मन में क्या हो? लेकिन हर बार मुझे लगता है कि इस एकतरफा संवाद में अब मजा नहीं रहा। वे हर बार गाहे-वगाहे कांग्रेस को कोसते ही हैं। बिना कांग्रेस के उनके मन की कोई बात पूरी ही नहीं होती। जाहिर है कि कांग्रेस का भूत उनके मन में बसा है, सब सोच रहे थे कि माननीय मणिपुर पर देश में भले न बोले हों, लेकिन आकाशवाणी पर तो मन की बात करेंगे ही। दुर्भाग्य से उनके मन की बात में मणिपुर था ही नहीं, कांग्रेस थी सो उसका जिक्र उन्होंने किया। जिक्र ही नहीं किया बल्कि ये भी बताया कि 18 घण्टे की व्यवस्तता के बावजूद उन्होंने कुछ दिन पहले उन्होंने इमरजेंसी पर लिखी एक किताब पढ़ी। इसका शीर्षक- ‘टॉर्चर ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स इन इंडिया’ था। इस किताब में जिक्र है कि कैसे उस समय की सरकार ने लोकतंत्र के रखवालों के साथ क्रूरतम व्यवहार किया।
देश सोचता है कि मोदी जी को आपातकाल पर किताब पढऩे का मौका मिल गया किन्तु मणिपुर को पढऩे का मौका नहीं मिला। यदि मिला होता तो वे इस पर जरूर बोलते। प्रधानमंत्री के मणिपुर पर न बोलने से मेरे अलावा कांग्रेस भी परेशान है। कांग्रेस वाले सोच रहे थे कि शायद प्रधानमंत्री जी इस बार कांग्रेस को बख्श दें, पर ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस को फिर से निशाने पर रखा गया। मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री जी ने मणिपुर की बात जान-बूझकर नहीं की, क्योंकि मणिपुर को उन्होंने मोटा भाई यानि अपने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के लिए छोड़ रखा है। मणिपुर की आग से शाह साहब जूझ रहे हैं। वे आज नहीं तो कल कामयाब होंगे है। वैसे भी अभी मणिपुर को जलते हुए कुल 45 दिन ही तो हुए हैं।
प्रधानमंत्री जी ने मेरी आशंका की पुष्टि भी कर दी। उन्होंने कहा कि यह भारत के इतिहास का काला दौर था। लाखों लोगों ने इमरजेंसी का पूरी ताकत से विरोध किया था। लोकतंत्र के समर्थकों पर उस दौरान इतना अत्याचार किया गया, इतनी यातनाएं दी गईं कि आज भी मन सिहर उठता है। मोदी जी को भी कितनी यातनाएं इस काले दौर में मिलीं इसका पता शायद मन की बात के आगामी अंकों में देश को पता चल जाए। पर अभी तो यही पता चल रहा है कि पचास साल बाद भी मोदी जी के सिर से कांग्रेस का डर और भूत दोनों नहीं उतर रहे। ये कांग्रेसी भूत शायद उतरेगा भी नहीं अगले आम चुनाव तक। इसे उतरना भी नहीं चाहिए, इसी में देश का भला है। कांग्रेस का भला है, भाजपा का भला है। देश की भलाई के लिए कांग्रेसी भूत का होना अपरिहार्य है।
प्रधानमंत्री जी ने मणिपुर के बारे में कुछ क्यों नहीं कहा, ये पूछने वाले हम कौन होते हैं? हम क्या कोई भी उनसे इस बारे में सवाल नहीं कर सकता। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख भी और मार्गदर्शक मण्डल में कराह रहे भाजपा के शीर्ष नेता भी। प्रधानमंत्री से सवाल करने का अधिकार केवल प्रधानमंत्री जी को है। इस प्रश्नाकुल समाज में सवाल करने का अधिकार फिलहाल मुल्तबी किया हुआ है। राष्ट्रहित में जैसे कटित तौर पर इन्दिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी वैसे ही मोदी जी ने प्रश्न करने का अधिकार अघोषित तौर पर निलंबित कर रखा है। इसके बदले वे देश से मन की बात करते ही है। देश में ही भारत की प्रेस शामिल है। उसके लिए अलग से प्रेस कॉन्फ्रेंस करने का क्या मतलब?
देश की जनता से मन की बात करते हुए मोदी जी को नौ साल हो गए। मन की बात करने का सिलसिला 3 अक्टूबर 2014 को शुरू हुआ था और हर महीने के अंतिम रविवार को सुबह 11 बजे आकाशवाणी पर मोदी जी बिना नगा हाजिर हो जाते हैं। 30 मिनट तक बिना रुके बोलते हैं। 30 अप्रैल 2023 को इस सिलसिले के 100 एपिसोड पूरे हो गए। प्रधानमंत्री के मन की बात 22 भारतीय भाषाओं और 29 बोलियों के अलावा 11 विदेशी भाषाओं में भी प्रसारित की जाती है, ताकि अखिल ब्रह्माण्ड उनके मन की बात सुन ले। सबको साथ लेकर चलने का इससे बड़ा कोई दूसरा उदाहरण दुनिया में हो तो कृपा कर बताइये जरूर। एक अध्ययन के मुताबिक ‘मन की बात’ को देश के 100 करोड़ लोग कम से कम एक बार सुन चुके हैं। 23 करोड़ लोग नियमित रूप से ‘मन की बात’ को सुनते हैं। जो नहीं सुनते वे राष्ट्र द्रोही तो नहीं, लेकिन बेवड़े जरूर होंगे, अन्यथा इतने महत्वपूर्ण कार्यक्रम को कैसे न सुनते?