राजनीति के बिपरजाय से सावधान

– राकेश अचल


एक तरफ देश के तटीय इलाकों में चक्रवाती तूफान ‘बिपरजॉय’ का खतरा मंडरा रहा है। दूसरी तरफ राजनीति का बिपरजाय भी खतरों के संकेत दे रहा है। मौसम विभाग के अनुसार अगले 36 घण्टों में बिपरजॉय और भी भयान रूप ले सकता है। इसके बाद यह गंभीर चक्रवाती तूफान बन सकता है। इस तूफान का असर गोवा, कर्नाटक, उत्तरी केरल के तटीय इलाकों में देखने को मिल सकता है। इस दौरान यहां तूफान व तेज बारिश होने की उम्मीद है। लेकिन राजनीतिक चक्रवात का असर महाराष्ट्र के साथ ही पूरी हिन्दी पट्टी पर दिखाई दे रहा है।
मौसम और राजनीति का रंग लगातार बदल रहा है। हैरानी होती है जब महाराष्ट्र में शरद पवार तथा संजय राऊत जैसे दिग्गजों को जान से मारने की धमकियां दी जाती है, वहीं दूसरी ओर बृजभूषण जैसे सांसदों को बचाने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा पूरी ताकत झोंक देती है। जैसे मौसम पर किसी का काबू नहीं होता वैसे ही राजनीति पर भी अब नियंत्रण कठिन काम है। महाराष्ट्र में सियासत इतनी गंदी हो जाएगी, किसी ने शायद सोचा भी नहीं होगा। गाली और गोली की सियासत अब घातक होती जा रही है। सबको अपनी जान के लाले पड़ गए हैं। सरकार आम आदमी को तो छोडि़ए खास आदमी तक को संरक्षण नहीं दे पा रही। सरकार को भी बृजभूषण जैसों को संरक्षण देना पड़ रहा है। दरअसल बाहुबली सभी राजनीतिक दलों की जरूरत है।
राजनीति का बिपरजाय राजस्थान में भी सक्रिय नजर आ रहा है। यहां कांग्रेस के सचिन पायलट सियासत के सचिन तेंदुलकर बनने पर आमादा हैं। वे विरोध और बगावत की क्रीज छोडऩे को राजी ही नहीं है। कोई उन्हें समझाने वाला नहीं है कि पार्टी छोडऩे या तोडऩे वालो का अंत बहुत अच्छा नहीं होता। यकीन न हो तो अतीत में झांककर देख लीजिए। एक जमाने में अर्जुन सिंह और नारायण दत्त तिवारी ने कांग्रेस से बग़ावत की थी, अपनी कांग्रेस बनाई थी। उमा भारती ने भी यही सब किया। गुजरात के केसूभाई भी बागी बने लेकिन नाकाम होने के बाद वापस अपने पुराने घरों में लौट गए। ममता बनर्जी जैसे अपवाद हैं। वे भी अब राष्ट्रीय के बजाय क्षेत्रीय क्षत्रप हैं।
बिपरजाय की तरह कहर बरसाना आसान काम नहीं। लेकिन बहुत कठिन भी नहीं है। जनता ने हाल ही में कर्नाटक में भाजपा के बिपरजाय को नाकाम कर दिखाया। दिल्ली, हिमाचल, पंजाब और बिहार में भाजपा का बिपरजाय भाजपा पर कहर बनकर टूटा। बावजूद इसके भाजपा विपक्ष के बिपरजाय का डटकर सामना किया और लगातार कर रही है। भाजपा और कांग्रेस के सामने अलग-अलग तरह के बिपरजाय हैं। दोनों देश के बाहर सात समंदर पार भी एक दूसरे का मुकाबला कर रहे हैं। अमेरिका में राहुल गांधी के हमलों का मुकाबला जब विदेश मंत्री जयशंकर से नहीं हुआ तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कमर कसना पड़ी। वे 22 जून को खुद अमेरिका जा रहे हैं। वे वहां गरजेंगे भी और बरसेंगे भी।
कोई भी चक्रवात हो, अगर कहर बरसाता है तो लाभ भी देता है। अगर बाढ़ आती है तो फसलें भी अच्छी होती है। भारतीय लोकतंत्र और भारतीय मौसम एक जैसा होता है। अनिश्चित, अकल्पनीय, अयाचित। पता नहीं कब, कौन सी करवट ले ले। इस स्थिति में बचने का एक ही उपाय है सावधानी। सो सतत सावधान रहने की जरूरत है। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। बिपरजाय से सावधान रहें किंतु इसे इंजाय भी करें। न डरें, न भागें। मुकाबला करें। ये चक्रवात आते-जाते रहते हैं। इन्हें रोका नहीं जा सकता। भारतीय राजनीति को इन चक्रवातों से जूझने का खूब तजुर्बा है। ये इन्दिरा गांधी को भी देख चुकी है। ये नरेन्द्र मोदी को भी देख रही है। इसने सरदार बल्लभभाई पटेल भी देखें हैं और अमित शाह भी। कोई घड़ी पार है, तो कोई तड़ीपार।
आसमान में छाए हर बादल से बरसने की उम्मीद नहीं की जा सकती। हर बादल में पानी होता भी नहीं है। बादल हों या बादशाह सबका पानीदार होना जरूरी है। पानी का उतरना या न होना आभा को नष्ट करता है। ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून’।