– राकेश अचल
सेल्फ रिस्पेक्ट के नाम पर दल बदल करना केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मजबूरी हो सकती है, लेकिन उन्हें शायद नहीं मालूम कि उनके पिता माधवराव सिंधिया ने जनसंघ को सेल्फ रिस्पेक्ट के कारण नहीं बल्कि फासिज्म के कारण छोड़ा था। जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक बलराज मधोक ने अपनी जीवनी के तीसरे खण्ड में विस्तार से लिखा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने मधोक की इस पुस्तक को प्रतिबंधित कर दिया था।
मधोक लिखते हैं कि उन्होंने 1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया के कहने पर माधवराव सिंधिया को जनसंघ में प्रवेश से पहले जनसंघ और कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र पढऩे को दिए थे। इन्हें पढऩे के बाद ही माधवराव सिंधिया जनसंघ में शामिल हुए थे, लेकिन वे एक साल में ही जनसंघ से ऊब गए थे। मधोक के मुताबिक राजमाता विजयाराजे सिंधिया को जैसे ही पता चला कि उनके इकलौते बेटे का मन जनसंघ से भर गया है और वे कांग्रेस में शामिल होने की सोच रहे हैं तो राजमाता ने माधवराव सिंधिया को समझाने के लिए मधोक और तबके संगठन मंत्री नानाजी देशमुख को बुलाया। दोनों ने कोशिश भी की, लेकिन माधवराव सिंधिया ने दो टूक कह दिया कि संघ से जुड़े होने के कारण जनसंघ एक फासिस्ट संस्था में बदल गया है, इसलिए यहां किसी का स्वतंत्र विकास संभव नहीं, इसलिए मैं कांग्रेस में शामिल होने जा रहा हूं।
मधोक लिखते हैं कि मैंने माधवराव सिंधिया को समझाने की कोशिश की और कहा कि मैं भी फासिज्म के खिलाफ हूं, लेकिन इससे पार्टी में रहकर ही लडऩा चाहिए। मधोक का दावा है कि सिंधिया को जनसंघ में सेल्फ रिस्पेक्ट का कोई संकट नहीं था, वे विचार धारा के आधार पर कांग्रेस में शामिल हुए थे। मधोक की जीवनी ‘जिंदगी का सफर’ के तीसरे खण्ड में मधोक लिखते हैं कि माधवराव सिंधिया की जनसंघ को लेकर जो आशंकाएं थीं, वे बाद में सही साबित हुईं। दीनदयाल उपाध्याय की हत्या के बाद तो परिदृश्य ही बदल गया। याद रहे कि स्व. माधवराव सिंधिया बलराज मधोक का गुरुतुल्य सम्मान करते थे। वे कांग्रेस में शामिल होने के बाद भी मधोक से मिलते-जुलते रहे। मधोक लिखते हैं कि यद्यपि माधवराव सिंधिया कांग्रेस के नैतिक पतन को नहीं रोक सकते थे, किंतु वे अपनी उच्च प्रशासनिक क्षमता के बल पर कांग्रेस के सितारे बन गए थे।
उल्लेखनीय है कि राजनीति में अपने पिता को आदर्श मानने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाल ही में दावा किया है कि उन्होंने अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट के लिए कांग्रेस छोड़ी। ज्योतिरादित्य सिंधिया करीब 18 साल कांग्रेस में रहकर फासिज्म के खिलाफ मुखरता से लड़े भी थे। इतिहास गवाह है कि सिंधिया परिवार ने अपनी राजनीति का श्रीगणेश कांग्रेस से ही किया। स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया और खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से ही राजनीति में उतरे। सबसे पहले राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी, फिर उनके बेटे माधवराव सिंधिया को कांग्रेस से निकाला गया, लेकिन बाद में वापसी भी हो गई और तीन साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी, लेकिन वे भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा की शरण ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विचारधारा के आधार पर ली है, इसे लेकर उनके समर्थक आज भी भ्रमित है।
उल्लेखनीय है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले उनके पिता माधवराव सिंधिया को भी कांग्रेस से हवाला कारोबार में नाम आने के बाद कांग्रेस से निकाल दिया गया था, लेकिन तब भी वे भाजपा में शामिल नहीं हुए थे। उन्होंने इंतजार किया, मप्र विकास कांग्रेस के एक जेबी संगठन के बैनर पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन अंतत: कांग्रेस में वापस लौट गए। मजे की बात ये है कि जिस भाजपा को उन्होंने कांग्रेस से हिसाब बराबर करने के लिए चुना, उसी भाजपा में अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं।
आपको बता दूं कि मधोक ज मूल रूप से राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक कार्यकर्ता थे, उन्होंने बाद में भारतीय जनसंघ में एक राजनेता के रूप में काम किया। मधोक ने जम्मू और कश्मीर की रियासत में आरएसएस और बाद में जम्मू हिन्दुओं के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए राजनीतिक दल जम्मू प्रजा परिषद को लॉन्च करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे अंतत: भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने और 1967 के आम चुनाव में इसकी सफल प्रतियोगिता का नेतृत्व किया। उन्होंने बाद में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के साथ राजनीतिक मतभेदों के कारण पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। बलराज मधोक का निधन 2016 में हुआ था।