– राकेश अचल
महात्मा गांधी की जन्म और कर्म भूमि लगातार सुर्खियों में है और ये तमाम सुर्खियां हैं बदनामी की। आज जब देश का नेतृत्व एक महान गुजराती कर रहा हो तब गुजरात को लगातार बदनाम करने की कोशिशें मुझे नागवार लगती हैं। हाल ही में उज्जयनी में नवनिर्मित महाकाल लोक की मूर्तियों के आंधी में उड़ जाने से एक बार फिर गुजरात की बहुत बदनामी हुई।
मैं जितना प्रेम भारत से करता हूं, उतना ही स्नेह मुझे गुजरात से है। गुजरात से प्रेम की एक वजह हो तो बताऊं। फिर भी यहां महात्मा गांधी का पैदा होना, सरदार बल्लभभाई पटेल का यहीं से होना ही गुजरात प्रेम की असली वजह है। गुजरात से प्रेम की वजह द्वारिका भी है और सोमनाथ भी। अमूल के उत्पाद भी हैं और गुजराती व्यंजन भी। गुजरात के उद्यमी भी हैं और गिर के शेर भी। कच्छ का रण भी। गुजरात से प्रेम करने के तमाम कारण हैं। इसीलिए मुझे सोते-जागते गुजरात की फिक्र रहती है। पिछले कुछ वर्षों से गुजरात को लगातार बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। कभी दंगों के नाम पर, कभी भ्रष्टाचार के नाम पर, कभी भगोड़ों के नाम पर, तो कभी घटिया निर्माण के नाम पर। कोई नहीं है जो गुजरात की तारीफ करे, जबकि गुजरात में तमाम बुराईयों के बावजूद प्रेम करने के लिए सबको साथ लेकर सबका विकास करने वाली सरकार के मुखिया यानि देश के प्रधानमंत्री जी भी हैं।
गुजरात से प्रधानमंत्री तो मोरारजी देसाई भी बने, लेकिन वे गुजराती कम मुंबईकर ज्यादा थे। वे मोदी जी की तरह सबका विकास करने के लिए सबको साथ लेकर नहीं चल पाए और दो-ढाई साल में ही अपनी सरकार गिरा बैठे। मोदी जी ने मोरारजी भाई देसाई से सबक सीखा और न केवल अपनी सरकार को पूरे पांच साल चलाया, बल्कि अगले पांच साल के लिए भी मौका दिलवाया। अब वे तीसरी बार गुजरात का झण्डा बुलंद करने वाले हैं। लेकिन एक मोदी इतने बड़े गुजरात की नाक जितनी ऊंची करते हैं, दूसरे मोदी उससे ज्यादा कटवा देते हैं। कभी बैंकों का पैसा लेकर भाग जाते हैं, तो कभी कुछ और खेल कर जाते हैं। यानी मोदी के दुश्मन हम और आप नहीं, बल्कि दूसरे मोदी हैं। गुजरात को बदनाम करने वाले मोदियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
मैं बात कर रहा था गुजरात की। मोदी जी जबसे देश के प्रधानमंत्री बने हैं तभी से दिल्ली से लेकर जहां-जहां भाजपा की सिंगल या डबल इंजन की सरकारें हैं वहां-वहां गुजरातियों का मान रखा जाता है। नौकरशाही से लेकर ठेकेदारी तक में गुजरातियों को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसी ही प्राथमिकता गुजरात के अलावा तमिलनाडु को भी मिली और दूसरे दक्षिणी राज्यों को। क्योंकि वहां मोदी सरकार के मंत्री-संत्री और उपराष्ट्रपति तक हुआ करते थे। लेकिन देश को शिकायत है कि गुजराती नौकरशाह हों या ठेकेदार सब मिलकर गुजरात का नाम बदनाम कर रहे हैं।
हमारे मध्य प्रदेश में जब महाकाल लोक बनाने की बात आई तो राजस्थान के शिल्पियों के बजाय मामा मुख्यमंत्री ने गुजरात के शिल्पियों को प्राथमिकता दी। लेकिन गुजराती भाइयों ने जो मूर्तियां बनाईं, वे एक ही आंधी में चित्त हो गईं। नाक कटी मामा की और गुजरात की। दोनों को शायद नहीं पता कि लोक-परलोक बनाना इंसानों का नहीं ऊपर वाले का काम है। इसलिए जब नीचे वाले कोई लोक बनाएं तो कम से कम ईमानदारी से काम करें। लेकिन लोभ-लालच, मुनाफाखोरी, कमीशनबाजी ने गुजरात के साथ-साथ मप्र की नाक कटा दी। अब इस कटी नाक को जोडऩे का काम किया जा रहा है।
गुजराती विदेशों में क्या झक्काट काम करते हैं। मैंने तो अमरीका में उनके द्वारा बनवाए गए तमाम मन्दिर देखे हैं। गर्व होता है उन्हें देखकर। लेकिन अपने देश में पता नहीं गुजरातियों को क्या हो जाता है? गुजरात का अमूल भी अब अपनी मान-प्रतिष्ठा नहीं बचा पा रहा है। गुजरात में दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा अगर खुद गुजरातियों ने बनाई होती तो उसका भी शायद उज्जैन के महाकाल लोक की प्रतिमानों जैसा हाल होता। गनीमत है कि सरदार बल्लभभाई की प्रतिमा चीनियों ने बनाई है, गुजरातियों ने नहीं।
गुजरातियों को लांच्छित करने का मेरा कोई इरादा नहीं। मैं हमेशा से गुजरातियों का सम्मान करता हूं। अनेक गुजराती मेरे जान से ज्यादा प्यारे मित्र हैं। गुजरात की हर चीज मुझे प्रिय हैं। फिर चाहे वे नेता हों या खिलाड़ी अजय जडेजा। हमारे शहर की महारानी तक गुजराती हैं। हम उनका भी दिल से सम्मान करते हैं। वे बड़ोदरा के राजपरिवार से हैं। गुजरात का सम्मान करना इस दौर में राष्ट्रधर्म है। जिसने गुजरात से प्रेम नहीं किया उसने भारत से प्रेम नहीं किया। असली भारतवासी वो ही है जो गुजरात का मुरीद है। गुजराती हर मामले में अव्वल होते है। मेहनत में, ईमानदारी में, बेईमानी में, नेतृत्व में, कलाकारी में। गुजराती असल जौहरी हैं। वे जानते हैं कि असली और नकली हीरे में कितना फर्क होता है।
देश के नए संसद भवन से गुजरात का कितना कनेक्शन है, मुझे नहीं मालूम। लेकिन यदि कुछ है तो हमें नए संसद भवन पर भी नजर रखना चाहिए। नया भवन कम से कम 2024 तक तो अपना रंग-रूप न बदले। नए संसद भवन में ईंट-गारे से ज्यादा गुजरात की इच्छाशक्ति शामिल है। वरना किसी और ने क्यों नहीं बनाया नया संसद भवन? डॉ. मनमोहन सिंह बनवा सकते थे। अटल जी बनवा सकते थे। चंद्रशेखर को क्यों नहीं सूझा इस बारे में? इन्द्रकुमार गुजराल को किसने रोका था नया संसद भवन बनवाने से? देवगौड़ा जी को भी इस बारे में कभी कोई ख्याल क्यों नहीं आया? आखिर मोदी जी ने नया संसद भवन बनवाया। नया इतिहास गढऩा केवल गुजरातियों के बूते की बात है। गुजराती किसी भी सीमा तक जाकर काम करते हैं, फील्ड भले ही कोई भी हो।
आप सोचेंगे की आज बंदा देश के तमाम ज्वलंत मुद्दे छोडक़र कहां आकर गुजरात में अटक गया! गुजरात है ही ऐसा जहां हर कोई आकर अटक जाता है। कांग्रेस क्या, आप क्या, सब यहां आकर अटके हुए हैं। सबकी लालसा एक बार गुजरात जीतने की है। लेकिन कोई भी अब तक कामयाब नहीं हुआ है। पहले की बात छोड़ दीजिए। पहले गुजरात आज के गुजरात से भिन्न था। आज का गुजरात आज का गुजरात है। गुजरात में एक रात बिताकर तो देखिए। गुजरात की बदनामी के तमाम कारणों पर धूल डालकर गुजरात को देखिए। बड़ा ही खूबसूरत नजर आएगा। आज गुजरात के पास राजधर्म के साथ ही राजदण्ड भी है। गुजरात में लोकतंत्र है। गुजरात में न्यायतंत्र है। गुजरात की ही ताकत थी जो उसने राहुल गांधी से उनकी लोकभा की सदस्यता छिनवा दी।
ऐसे गुजरात को नमन कीजिए। उज्जैन की मूर्तियों को भूल जाईए। उज्जैन में एक ही कालजयी मूर्ती महाकाल की है। बांकी को तो आज नहीं तो कल धराशायी होना ही है। फिर चाहे वे फाईवर से बनाई जाएं या पत्थर से। ध्वस्त हुई मूर्तियों को घटिया बताकर हम गुजरात का अपमान नहीं कर सकते। हम तो तब भी मौन थे जब गुजरात में खुद का बनाया पुल गिरा और सैकड़ों लोग मारे गए। इस सबके लिए गुजराती नहीं बल्कि काल जिम्मेदार है। गुजरात अजर है, गुजरात अमर है। जय गुजरात, जय भारत।