जीवन उसी का सार्थक है जो धर्म के साथ जीता है : विहसंत सागर

बरासों मन्दिर में तीन दिवसीय मनोकामना पूर्ण विधान आयोजित

भिण्ड, 16 मई। भगवान महावीर स्वामी की समोशरण स्थली पर मनोकामना पूर्ण विधान करा रहे मेडिटेशन गुरू विहसंत सागर महाराज, मुनि विश्वसाम्य सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में तीन दिवसीय विधान के अंतिम दिन विधान के पश्चात हवन आदि कार्यक्रम किया गया। जिसमें सुबह भगवान का महामस्तकाभिषेक एवं शांतिधारा का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर विहसंत सागर महाराज ने प्रवचन में कहा कि यह जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की समोशरण स्थली है, जहां पर हम सभी ने मिलकर मनोकामना पूर्ण विधान कर भगवान की अर्चना की। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने आत्मतत्व का उपाय दिया जीवन का सदुपयोग कैसे करना चाहिए। जीवन को जीकर पार होने की विधि बताई। जीवन उसी का सार्थक है जो धर्म के साथ जीता है। जिसके जीवन में धर्म नहीं उसका जीवन बेकार है। जीवन में बातें याद रखना चाहिए, पिता और गुरू एक ही होते हैं, यह बदले नहीं जाते। इन्हें यदि बदला जाता है तो भारतीय आचरण मर्यादा समाप्त हो जाती है। आचरण को सुधारना बहुत आवश्यक है। जीवन में धर्म नहीं बदला जाता, अपने आप में मजबूत होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आत्मा भी नहीं बदली जा सकती, आत्मा का परिवर्तन नहीं होता, शरीर का परिवर्तन होता है। अगर आत्मा का परिवर्तन हो जाएगा तो सिद्धांत का लोप हो जाएगा। अगर परिवर्तन न हो तो कूटस्थता आ जाएगी, सत्य का विनाश हो जाएगा। बालक-बालक रहेगा, युवा-युवा रहेगा तथा वृद्ध-वृद्ध रहेगा। इसलिए पर्याय क्षण-क्षण बदलती है, हमारे लिए आत्मा प्रधान है, आत्मा की परणति सम्हालो तो सब सम्हल जाएगा। उन्होंने कहा कि छोटी उम्र में विवाह कर लेते हंै और फिर तलाक जैसे काम करते हैं, ऐसा कार्य समाज में नहीं होना चाहिए। सीता जी कितने साल वनवास में रही, उन्होंने ऐसा नहीं सोचा, अंजना 22 साल तक वनवास में रही उसने ऐसा कभी नहीं सोचा। लौटकर अपने घर ही आई थी, दूसरे परिवार वाले हमारी हंसी उड़ाने के लिए बैठे हैं। हम उन्हेंं मौका क्यों दें, इस पर विचार करना चाहिए।