भिण्ड, 15 मई। मेडिटेशन गुरू विहसंत सागर महाराज एवं मुनि विश्वसाम्य सागर महाराज ससंघ सानिध्य में मनोकामना पूर्ण विजयश्री विधान के आयोजन में श्रृद्धालुओं ने जलए चंदन, अक्षत, पुष्प, दीप, धूप, फल आदि चढ़ाकर अघ्र्य पूर्ण किए। मुरैना के विधानाचार्य मनोज शास्त्री द्वारा भक्तिभाव के साथ विधि विधान से पूजा अर्चना कराई। जिसमें सुबह भगवान का महामस्तमकाभिषेक एवं शांतिधारा कराई।
इस अवसर पर विहसंत सागर महाराज ने कहा कि जिंदगी में कभी साता कभी असाता कर्म का उदय चलता रहता है। जब साता कर्म चलता है, तो हमें जिंदगी अच्छी लगती है और हम अपने आपको सुखी महसूस करते हैं और असाता कर्म का उदय होता हैं तो हम अपने आपको दुखी महसूस करते हैं। दुख आने पर व्यक्ति जल्दी घबरा जाता है यहां तक की मरने की भी सोच लेते हैं। दुख के क्षणों में ही हमें गुरू और भगवान नजर आते हैं और वो ही हमें दुख से छूटने का उपाय बताते हैं, ऐसा हमें शास्त्रों एवं ग्रंथों से पता चलता है। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने अपनी वाणी से विद्यानुवाद का वर्णन किया है कि हम मंत्र की साधना करके या मंत्र के प्रभाव से दुखों से छूट सकते हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को धर्म से जुड़े रहना चाहिए तथा जब भी विधान, पूजन कार्यक्रम हो तो उसमें अपनी भागीदारी अवश्य करें।
मुनि विहसंत सागर एवं विश्वसाम्य सागर का हुआ केशलोच
मेडिटेशन गुरू विहसंत सागर महाराज एवं विश्वसाम्य सागर महाराज का केशलोच अतिशय क्षेत्र बरासों मन्दिर में सोमवार को सुबह हुआ। मुनिराज कहा कि प्रत्येक मुनिजन चार माह में एक बार अपने हाथों से केशों को उखाड़ते हैं, जिसमें अपार पीड़ा को सहन करते हुए उस दिन उपवास भी करते हैं। यह परंपरा मात्र जैन दर्शन में ही होती है, क्योंंकि दीक्षा लेने के पश्चात अपने हाथों में केवल पिच्छी-कमण्डल के अलावा कोई भी वस्तु अपने पास नहीं रखते हैं एवं एक समय भोजन-पानी को ग्रहण करना, सोते समय लकड़ी के पाटे पर लेटना ऐसी कई क्रियाएं हैं जिसे मुनिजन बड़ी निष्ठाा के साथ करते हैं।