प्रभू भक्ति का फल अवश्य मिलेगा, भक्ति खाली नहीं जाती : विनय सागर

मुनिश्री के सानिध्य में 32 मण्डलीय सिद्धचक्र महामण्डल विधान में सिद्धों की हुई भक्ति, 256 अघ्र्य समर्पित कर गूंजी आराधना

भिण्ड, 31 मार्च। अच्छे संस्कार हमें विरासत में नहीं मिलते हैं, किंतु गलत संस्कार हमसे कभी छूटते नहीं। यही तो कारण है संसार परिभ्रमण का। संस्कार विरासत में नहीं मिलते तो भगवान के पास मांगने मात्र से भी नहीं मिलेंगे। संस्कार के लिए तो समर्पित होना पड़ेगा। भगवान के समक्ष भिखारी नहीं भक्त बनना पड़ेगा। जब आत्मा का समर्पण करोगे तब संस्कार पाओंगे तब मानवता प्रकट होगी फिर दया, करुणा की भावना स्वतरू ही फूट और भक्त से फिर भगवान भी दूर नहीं होंगे। यह उदगार श्रमण मुनि श्री विनय सागर महाराज ने शुक्रवार को ग्राम रानी विरागवां स्थित दिगंबर अदिनाथ जैन मन्दिर में आयोजित 32 मण्डलीय सिद्धचक्र महामण्डल विधान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनि श्री विनय सागर महाराज ने कहा कि परमात्मा से भीख मांगने की आदत छोड़ो, मांगने की मिथ्या प्रवृति को त्याग कर भक्ति, अर्चना, आराधना की प्रकृति जाग्रत करो, जीवन को संयमित करो तो मांगने की कोई आवश्यकता नहीं। भक्ति का फल अवश्य मिलेगा, भक्ति खाली नहीं जाती है। यदि प्रभु पर विश्वास नहीं है, तो फिर उनसे भीख भी क्यों मांग रहे हो। कभी दुख व संकट आए तो अपने भीतर समता रखना, कदापि विचलित नहीं होना, भयभीत होकर गलत कार्य नहीं करें। प्रभु की शरण में आना चाहिए। दुख में सारे सहारे बेसहारे हो जाते हैं तो प्रभु को याद करें। दुख कभी भगवान नहीं देते, यह तो तुम्हारे द्वारा किए गए कर्म का परिणाम होते हैं। यदि सुख आ जाए तो भी प्रभु को भूलना नहीं चाहिए। लगातार प्रभु की भक्ति का स्मरण ही सुख को और बढ़ा देता है। प्रभु से यही कामना करनी चाहिए कि मेरे कारण किसी को भी दुख न हो।
मुनिश्री ने 108 मंत्रों ने कराई बृहद शांतिधारा, इन्द्रों ने उतारी आरती
मुनिश्री के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि सिद्धचक्र महामण्डल विधान के विधानचार्य राजेन्द्र जैन शास्त्री ने मंत्रोच्चारण के साथ इन्द्रों ने भगवान जिनेन्द्र देव के ऊपर जलधार से अभिषेक जयकारों के साथ किया। मुनि श्री विनय सागर महाराज ने अपने मुखारबिंद से 108 मंत्रों ने बृहद शांतिधारा प्रथम रमेश जैन कारबार नगर दिल्ली, द्वित्तीय शांतिधारा रतनलाल जैन, बसंत जैन भिण्ड, तृतीय शांतिधारा सोनू जैन भिण्ड, चौथी सुभाष जैन दिल्ली रानी बिरगवां बाले, पांचवी विशाल जैन, बंटी जैन भिण्ड परिवार को करने का सौभाग्य मिला। अभिषेक के उपरांत भगवान की महाआरती इन्द्रों ने झूमकर सामूहिक रूप से की।
महोत्सव के इन्द्रा-इन्द्राणियों ने मिलकर समर्पित किए 256 अघ्र्य
32 मण्डलीय सिद्धचक्र विधान में श्रमण मुनि श्री विनय सागर महाराज के सानिध्य में इन्द्रा-इन्द्राणियों ने पीले वस्त्र धारण कर, सिर पर मुकुट, गले में माला पहनकर भक्तिभाव के साथ पूजा आर्चन के साथ जिनेन्द्र देव के समक्ष 256 महाअर्घ समर्पित किए।