दुष्ट अपने आप मर जाते हैं, इन्हें मारने के लिए किसी शक्ति के प्रयोग की जरूरत नहीं : अखलेश्वरी देवी

ग्राम बरहा में चल रहा है श्रीराम चरितमानस सम्मेलन का आयोजन

भिण्ड, 19 मार्च। दुष्टों के संहार के लिए कोई भी शक्ति की जरूरत नहीं, वे अपने आप मर जाते हैं। माता-पिता की सेवा सबसे बढ़ा पुण्य होता है, माता-पिता संसार मे प्रत्यक्ष देवता हैं, इनकी सेवा ही सबसे बढक़र कुछ भी नहीं। यह उद्गार मां अखलेश्वरी देवी लहार क्षेत्र के ग्राम बरहा स्थित तालेश्वर सरकार सिद्धबाबा महाराज मन्दिर पर पहलवान उपाध्याय दाऊ के सानिध्य में आयोजित श्रीराम चरित मानस सम्मेलन में व्यक्त किए।
रामचरित मानस सम्मेलन में मां अखलेश्वरी देवी ने कहा कि आप भजन न करें, मन्दिर न जाएं, कथा न सुने चलेगा पर यदि आप अपने माता-पिता की सेवा नही करते है तो नहीं चलेगा, जो व्यक्ति अपने माता-पिता को कष्ट देता है, वो जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता, माता-पिता की आंखों से जीवन में सिर्फ दो ही बार आंसू निकलते हैं, एक तब जब बेटी घर छोडक़र जाती है और दूसरा जब बेटा मुख मोड़ता है। भगवान राम ने भी कहा है कि वही पुत्र भाग्यवान होता है जो माता-पिता के वचनों को मानता है, ऐसे व्यक्ति की मुट्ठी में पुण्य के चारों पदार्थ अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष होते हैं। माता-पिता के लिए बेटा प्राणों से प्रिय होता है, बेटे के लिए कितने भी कष्ट सहन करते हैं, कितनी भी सर्दी पड़ रही हो बालक यदि बिस्तर पर पिसाब कर लेता है तो मां उसे सूखे में लिटाकर खुद रातभर गीले में लेटी रेहती है, एक माता के कितने भी बच्चे हों, उनका पालन पोषण करने में उसे कभी कोई कष्ट नहीं होता है पर विडंबना तो ये है कि जब वह बूढ़े हो जाते हैं तब 10 पुत्र भी मिलकर अपने माता-पिता को सुखी नहीं रख पाते।

बालक की प्रथम गुरू मां होती है : शशिभूषण दासजी महाराज
ध्रुव चरित्र की कथा का वर्णन करते हुए आचार्य शशिभूषण दासजी महाराज ने माताओं को शिक्षा दी कि घर को घर नहीं कहते बल्कि स्त्री का नाम ही घर है, स्त्री अगर चाहे तो अपने घर को बैकुण्ठ बना दे, बालक की प्रथम गुरू मां होती है। माताएं कभी ये न सोचें कि मेरा बच्चा जब तक स्कूल में रेहता है तभी तक पढ़ाई करता है, बच्चा 24 घण्टे पाठशाला में रहता है। वो देखता है कि मेरी मां क्या कर रही है, पिता क्या कर रहा हैं, इसलिए बच्चों के सामने कभी अनुचित शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिए।
विषय मानव को बार-बार मारता है : रमेशदास महाराज
रामचरित मानस सम्मेलन में मानस मराल श्री रमेश दासजी महाराज ने अपनी कथा के माध्यम से बताया कि कर्दम ऋषि और देवहुति पति-पत्नी बन गए, पत्नी देवहुति ने अपने पति का मन पकड़ लिया, मन पकडऩे का मतलब पति की बात पकड़ लेना ही मन पकडऩा है। उन्होंने राजा दक्ष की कथा सुनते हुए कहा कि राजा दक्ष ने शंकर जी का अपमान किया, दक्ष विरोध मान गया, आज भी हमारे समाज एक-दूसरे का अपमान करने में लगे है, जो लोग समाज में कभी अच्छे काम नहीं करते, सम्मान सबसे अच्छा चाहते है वे ही राजा दक्ष की तरह अभिमानी हैं। इस मौके पर कु. सोनम देवी एवं शिवकुमार महाराज दतिया ने वेद पुराण के आख्यान कहे। सम्मेलन में सैकड़ों श्रोता मौजूद रहे।