भगवान को समर्पण ही रासलीला है : पाठक जी महाराज

अवंतीबाई मांगलिक भवन में चल रही है श्रीमद् भागवत कथा

भिण्ड, 06 फरवरी। अवंतीबाई मांगलिक भवन भिण्ड में चल रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के छटवें दिन सोमवार को रासलीला के मार्मिक एवं वास्तविक महत्व को बताते हुए कथा व्यास संत श्री अनिल पाठक ने कहा कि गोपिकाएं इन्द्रियां हैं, जो अपने आप में हमेशा अतृप्त हैं और कृष्ण रूपी परमात्मा के साक्षात्कार के लिए व्याकुल हैं। गोपियों का संपूर्ण समर्पण भगवान कृष्ण के लिए है और जब कोई संपूर्ण रूप से भगवान को समर्पित होता है तो उसके जीवन में महारास उतर आता है फिर जो रात होता है, वह दिव्य से भी दिव्य होता है कोई भी लौकिक सुख से उसकी तुलना असंभव है, भगवान को कोई किसी भी रूप में स्मरण करे, फिर उसका कल्याण निश्चित रूप से होता है। यदि कोई कामना से भी भगवान को चाहे तब भी उसकी कामना का नाश होकर सद्गति होती है। जिस प्रकार अग्नि में कोई भी धातु डाली जाए उसका मल जलकर वह धातु शुद्ध हो जाती है। गोपी कृष्ण का महारास जीव-ब्रह्म के एकत्त्व का क्षण है।
रुक्मणी के विवाह का वर्णन करते हुए पाठक जी ने कहा कि जो व्यक्ति रुक्मणी की तरह भगवान को समर्पित होता है, उसका संपूर्ण भार भगवान पर होता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करते समय सहज ही व्यक्ति का इन्द्रिय निग्रह हो जाता है, जो इन्द्रियां हमेशा बाहर ही बरतती रहती हैं, वही इन्द्रियां अंतर मुख होकर साधक के बोध का साधन बन जाती हैं। जिस सुख के लिए व्यक्ति बाहर संसार में निरंतर भटकता रहता है, वह सुख उसी के अंदर विराजमान है, ऐसा अनुभव में आने लगता है और यही श्रीमद् भागवत कथा का उद्देश्य है कि व्यक्ति जीवन में हमेशा सुख शांति प्राप्त करे और स्व-बोध को प्राप्त हो।
कथा की व्यापकता के महत्व को बताते हुए श्री पाठक ने कहा कि जिन घरों में नित्य भगवान का भजन कीर्तन होता है, परहित का भाव मन में हो, सभी सुखी हों, सभी निरोग रहें, कभी कोई गरीब ना हो, ऐसे दिव्य भाव जिस साधक में मन रहते हैं वह शीघ्र ही स्व-बोध को प्राप्त हो व्यापक हृदय होता है, वह सभी दुख कष्ट से निवृत हो जाते हैं, संसार उनका अनुशरण करता है। कथा में श्रीधाम वृंदावन से आईं साध्वी आराध्य देवी ने कृष्ण-रुक्मणी के विवाह की सुंदर झांकी की साज-सज्जा की।