अंत:करण की शुद्धि का उपाय : व्यास जी

शहर में चल रही है श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ

भिण्ड, 03 फरवरी। जिस अंत:करण में संसार मिला हुआ है, अर्थात मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार (अंत:करण चतुष्य) में संसार के प्रति मोह शरीर के प्रति आसक्ति है, वह अंत:करण अशुद्ध होता है, इसलिए जिस अंत:करण में शरीर संसार के प्रति आसक्ति या मोह नहीं है, उस अंत:करण को शुद्ध कहा जाता है। यह सद्विचार शहर में चल रही श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन शुक्रवार को कथा व्यास संत श्री अनिल पाठक जी ने व्यक्त किए।
उन्होंने परीक्षत जी का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस व्यक्ति की मृत्यु निकट है उसे निरंतर भगवान का नाम संकीर्तन करना चाहिए और प्राण शरीर से निकलते समय ‘प्रणवÓ का जाप करना चाहिए, उससे व्यक्ति की निश्चित रूप से सद्गती होती है। कथा में चिलोंगा आश्रम के महंत अबधूत श्रीश्री 1008 हरिनिवास जी महाराज विशेष रूप से पधारे। सैकड़ों लोगों ने कथा व्यास के साथ-साथ श्री अवधूत महाराज का जोरदार स्वागत किया। कथा समापन के बाद संत भण्डारा संतों को दक्षिण के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ।