– राकेश अचल
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जानलेवा कोल्ड्रिफ कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत के मामले में मप्र की सरकार लकीर पीट रही है, लेकिन इस हादसे के लिए जो लोग असली दोषी हैं उन्हें बचाने की कोशिश की जा रही है। मौत के कफ सिरप को आखिर मप्र में खरीदने और बेचने की इजाजत किसने दी?
पुलिस ने श्रीसन फार्मास्युटिकल कंपनी के फरार मालिकों पर इनाम घोषित कर दिया है। आरोपियों की गिरफ्तारी में मदद करने वालों को 20 हजार रुपए का नकद इनाम दिया जाएगा। इसके साथ ही श्रीसन फार्मा कंपनी के फरार मालिकों की गिरफ्तारी के लिए विशेष एसआईटी टीम भी गठित की गई है। छिंदवाड़ा जोन के पुलिस उप महानिरीक्षक राकेश कुमार सिंह ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति दवा निर्माता कंपनी के फरार आरोपियों की जानकारी देगा या उनकी गिरफ्तारी में मदद करेगा, उसे 20 हजार का नकद इनाम दिया जाएगा। पुलिस ने यह भी स्पष्ट किया है कि सूचना देने वाले व्यक्ति की पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाएगी।
मप्र के स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेन्द्र शिवाजी पटेल ने कहा कि उनके राज्य में 20 बच्चों की मौत दूषित कफ सिरप पीने से हुई और इसके लिए तमिलनाडु सरकार की गंभीर लापरवाही जिम्मेदार है। पटेल ने कहा कि यह तमिलनाडु सरकार की जिम्मेदारी थी कि राज्य से बाहर भेजी जाने वाली दवाओं की जांच कर। उन्होंने बताया कि मप्र सरकार भी राज्य में आने वाली दवाओं की रैंडम जांच करती है, लेकिन यह सिरप संयोगवश जांच से छूट गया।
जबकि हकीकत ये है कि प्रदेश में किसी भी दवा को मेडिकल स्टोर तक रखवाने से लेकर डक्टरों तक इसका प्रचार करने के लिए दवा कंपनियों का अपना तंत्र होता है। यही दवाएं सरकारी अस्पतालों के लिए खरीदी जाती हैं। लेकिन मप्र सरकार इस हकीकत को छिपाने की कोशिश कर रही है। इस मामले में दवा लिखने वाले डॉक्टर की गिरफ्तारी भी जनता की आंखों में धूल झोंकने की एक कोशिश भर है। पटेल ने कहा कि हर दवा के बैच के लिए आवश्यक प्रमाण पत्र जारी होना चाहिए। तमिलनाडु सरकार ने कहां गलती की? क्या प्रमाणपत्र जारी हुआ था या नहीं? कौन अधिकारी जिम्मेदार है, यह जांच का विषय है। ऐसी जहरीली दवाएं राज्य से कैसे बाहर गईं, ये गंभीर लापरवाही है। लेकिन उनकी नजर में ये गंभीर मामला नहीं है कि प्रदेश में इस दवा की बिक्री की इजाजत किसने दी?
आपको याद दिला दूं कि कफ सिरप ‘कोल्डरिफ’ कांचीपुरम जिले की एक दवा कंपनी द्वारा बनाया गया था, तमिलनाडु के खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन विभाग ने 4 अक्टूबर को कहा था कि कंपनी की सुंगुवरचत्रम स्थित यूनिट से लिए गए सैंपल मिलावटी पाए गए, जिसके बाद उत्पादन रोकने के आदेश जारी किए गए। सवाल ये है कि क्या मप्र में किसी भी प्रदेश से बनी दवा बिना जांच पड़ताल के लिए खरीदी और बेची जा सकती है। कौन सी दवा जीवन रक्षक है और कौन सी जानलेवा इसका पता कैसे चलेगा? कोई भी डॉक्टर जान बूझकर जानलेवा दवा अपने मरीज को नहीं दे सकता। कोई भी मेडीकल स्टोर भी जानलेवा दवा बेचकर अपना धंधा चौपट नहीं कर सकता। मतलब दवा निर्माता भी ये नहीं जानते होंगे कि वे जो कफ सीरप बना रहे हैं वो जानलेवा साबित होगा।
बहरहाल इस तरह की घनाओं की पुनरावृति न हो इसके लिए इस मामले की जड़ तक जाना जरूरी है। पुलिस तो आरोपियों की गिरफ्तारी कर सकती है, रसायनों का विश्लेषण नहीं। सरकार को ऐसी व्यवस्था बनाना होगी ताकि प्रदेश में बिक्री के लिए आने वाली हर दवा की जांच और प्रमाणीकरण किया जा सके। कफ सीरप के मामले में मारे गए बच्चों के परिजनों के नुकसान की भरपाई असंभव है, लेकिन आरोपियों को सजा दिलाकर पीड़ितों का दुख कम जरूर किया जा सकता है।