– विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर सुप्रयास ने आयोजित की संगोष्ठी
भिण्ड, 07 अप्रैल। इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम मातृ एवं नवजात शिशु स्वास्थ्य रखी गई है, जो कि पूरे वर्ष भर एक अभियान के रूप में चलाई जाएगी। मां एवं शिशु का स्वास्थ्य मानवता के सुरक्षित भविष्य के लिए बहुत आवश्यक है। यह बात पूर्व मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. विनोद सक्सेना ने विवेकानंद नर्सिंग कॉलेज में सामाजिक संस्था सुप्रयास द्वारा आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए।
डॉ. सक्सेना ने कहा कि स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य शीर्षक वाले इस अभियान में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समस्त सरकारों और स्वास्थ्य समुदाय से आग्रह किया है कि वे मातृ एवं नवजात शिशुओं की मृत्यु को रोकने के लिए प्रयास तेज करें और महिलाओं के दीर्घकालिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को प्राथमिकता दें। विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा उसकी सहयोगी संस्थाएं अपने सामाजिक सरोकारों से स्वस्थ गर्भधारण और प्रसव तथा बेहतर प्रसवोत्तर स्वास्थ्य के समर्थन के लिए उपयोगी जानकारी भी साझा करेंगे। मातृ एवं नवजात शिशु के जीवित रहने में अंतराल के बारे में जागरुकता बढाने तथा महिलाओं को दीर्घकालिक स्वास्थ्य कल्याण के प्रति जागरुकता बढाने की आवश्यकता है। उन्होंने महिलाओं और शिशुओं के स्वास्थ्य में सुधार लाने वाले प्रभावी निवेश की मांग करते हुए कहा कि माता-पिता के साथ-साथ महत्वपूर्ण देखभाल प्रदान करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को समर्थन देने के लिए सामूहिक कार्रवाई को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इसके लिए गर्भावस्था, प्रसव और प्रसवोत्तर अवधि से संबंधित उपयोगी स्वास्थ्य जानकारी प्रदान करना चाहिए।
सुप्रयास के सचिव डॉ. मनोज जैन ने कहा कि हर महिला और बच्चे को जीवित रहने और फलने-फूलने में मदद करना, महत्वपूर्ण कार्य है। पर दुखद है कि वर्तमान में हर साल करीब 3 लाख महिलाएं गर्भावस्था या प्रसव के कारण अपनी जान गंवाती हैं, जबकि 20 लाख से अधिक बच्चे अपने जीवन के पहले महीने में ही मर जाते हैं और लगभग 20 लाख बच्चे मृत पैदा होते हैं। यह लगभग हर 7 सेकेंड में एक रोकी जा सकने वाली मौत है। यह वह आंकडे हैं जो प्रयास करके रोके जा सकते हैं। संगोष्ठी में आकांक्षा श्रीवास्तव ने कहा कि समुदाय को महिलाओं की बात सुनना और परिवारों को सहयोग देना चाहिए। हर जगह महिलाओं और परिवारों को उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल की आवश्यकता होती है जो उन्हें जन्म से पहले, जन्म के दौरान और जन्म के बाद शारीरिक और भावनात्मक रूप से सहायता प्रदान करें।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. मयंक श्रीवास्तव ने कहा कि स्वास्थ्य प्रणालियों को मातृ एवं नवजात शिशु के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रबंधन के लिए विकसित होना चाहिए। इनमें न केवल प्रत्यक्ष प्रसूति संबंधी जटिलताएं शामिल हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां, गैर-संचारी रोग और परिवार नियोजन भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, महिलाओं और परिवारों को ऐसे कानूनों और नीतियों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए जो उनके स्वास्थ्य और अधिकारों की रक्षा करें। इस अवसर पर शिवानी, क्रांति, जोहिनी, उमा, रवीना, प्रगति, विशाल, आदित्य कुशवाह तथा किशन ने भी अपने विचार व्यक्त किए।