मनीष विद्यापीठ में मनाई गई वीर शिवाजी महाराज की जयंती

भिण्ड, 19 फरवरी। मनीष विद्यापीठ स्कूल में शिवाजी महाराज की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर विद्यालय प्रबंधन समिति सचिव एडवोकेट सुमित महते ने वीर शिवाजी महाराज के चित्र पर माल्यार्पण किया।
उन्होंने वीर शिवा जी महाराज के जीवन के बारे में बच्चो को बताया कि मराठा साम्रज्य के शासक वीर शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता शाहजी राजे भोंसले एक शक्तिशाली सामंत राजा एवं कूर्मि कुल में जन्मे थे। उनकी माता जिजाबाई जाधवराव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली महिला थी। शिवाजी के बडे भाई का नाम संभाजी राजे था जो अधिकतर समय अपने पिता शहाजी राजे भोसले के साथ ही रहते थे। शहाजी राजे कि दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थीं। उनसे एक पुत्र हुआ जिसका नाम व्यंकोजी राजे था। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पडा। उनका बचपन उनकी माता के मार्गदर्शन में बीता। उन्होंने राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली प्रकार समझने लगे थे। उनके हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गई थी। उन्होंने कुछ स्वामि भक्त साथियों का संगठन किया। शिवाजी की मां जीजाबाई बडी ही धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। उनका इनके जीवन पर अत्यधिक अच्छा प्रभाव पडा। बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। युवावस्था में आते ही उनका खेल, वास्तविक कर्म बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगा। जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई। यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची। अत्याचारी किस्म के तुर्क, यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के चिंतित होने लगे थे।
विद्यालय की संचालिका अनीता महते ने बताया कि छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अद्वितीय पराक्रम, रणनीतिक कुशलता, युद्धशास्त्र की मर्मज्ञता, संवेदनशील, न्यायपूर्ण व पक्षपातरहित प्रशासन, नारी का सम्मान, प्रखर हिन्दुत्व जैसी विशेषताओं से परिपूर्ण रहा। विपरीत परिस्थिति का सामना करते समय भी अपने ध्येय तथा ईश्वर पर श्रद्धा व विश्वास, माता-पिता एवं गुरु जनों का सम्मान, अपने साथियों के सुख-दु:ख में साथ निभाने, समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने के उदाहरण उनके जीवन में पाए जाते हैं। बाल्यकाल से ही अपने व्यक्तित्व से उन्होंने अपने साथियों में स्वराज्य स्थापना हेतु प्राण न्यौछावर करने की प्रेरणा जगाई, जो आगे चलकर भारत के अन्यान्य प्रदेशों के देशभक्तों के लिए भी प्रेरणादायक रही। इस अवसर पर विद्यालय में अध्ययन कर रहे बच्चों ने भी वीर शिवा जी महाराज को याद किया।