बाबा की नेतागिरी पर बाबाजी की सीख

– राकेश अचल


मैं धीरेन्द्र शास्त्री को कभी गंभीरता से नहीं लेता। धीरेन्द्र अभी हमारी नजर में बाबा (बच्चा) ही है, लेकिन कुछ बच्चे समय से पहले परिपक्व हो जाते हैं, इसलिए पढाई-लिखाई के बजाय बाबागिरी पर उतर आते हैं। धीरेन्द्र शास्त्री भी उन्हीं बच्चों में से एक हैं। उनके सितारे अभी बुलंद हैं और इसी के आधार पर वे हिन्दू हृदय सम्राट बन जाने की जल्दबाजी में है। उन्हें धूर्त राजनीतिज्ञों ने अपने स्वार्थ के लिए हिन्दू हृदय सम्राट बनाने में कोई कसर छोडी भी नहीं है, लेकिन शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सही समय पर बाबा धीरेन्द्र शास्त्री को सही तरीके से डपट दिया।
धीरेन्द्र शास्त्री पर लिखने का मेरा कोई मन नहीं था, लेकिन स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बोले तो मुझे भी लिखना पडा। बाबा धीरेन्द्र ने हाल ही में सनातन हिन्दू एकता यात्रा निकाली। इस यात्रा में खूब भीड उमडी। तमाम बाबा इसमें शामिल हुए। इनमें फिल्मी दुनिया के बाबा और कथावाचक बाबा भी शामिल हुए। बेरोजगारों की भीड को तो इसमें शामिल होना ही था। बाबा ने सडक पर चुकट्टों में चाय सुडक कर आम आदमी होने का खूब तमाशा किया। मीडिया के लिए बाबाओं की ये बाबागीरी बडे काम की साबित हुई। टीवी चैनलों को अपनी टीआरपी बढाने के लिए ऐसे ही तमाशों की जरूरत होती है। बाबाओं को पैसे देकर फिल्मी बाबा भी बुलाने पडते हैं। वरना फिल्मी बाबा ‘चिरी उंगली पर न मूतें’।
बहरहाल बात हम शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी की कर रहे हैं। अविमुक्तेश्वरानद भी कांग्रेसी शंकराचार्य के रूप में बदनाम स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के उत्तराधिकारी हैं। वे अयोध्या के राम मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भी नहीं गए थे, मुकेश अम्बानी के बेटे की शादी में गए थे। लेकिन उन्होंने फिर भी एक मार्के की बात कही है कि बाबा धीरेन्द्र शास्त्री राजनीतिक शक्ति के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। हम भी यही सब कहते तो हमें शहरी नक्सल या वामपंथी कहकर अनसुना करने की कोशिश की जाती, लेकिन जब यही बात एक शंकराचार्य जी कह रहे हैं तो उसका कुछ महत्व बनता है। शास्त्री के मुकाबले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की हैसियत बडी है।
बाबा धीरेन्द्र शास्त्री जिन्हें बुंदेलखण्ड के धर्मभीरु लोग बागवश्वर बाबा कहते हैं, अपनी यात्रा के आरंभ से अंत तक उत्तर प्रदेश के बाबा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चुनाव मंत्र ‘बटोगे तो कटोगे’ का जाप करते आए। उन्होंने अपने आपको प्रगतिशील बताने के लिए जाति-पांत का भी विरोध किया, लेकिन बाबा धीरेन्द्र शास्त्री उन बाबाजी के शिष्य हैं जो जाति-पांत में अखण्ड भरोसा रखने वाले स्वामी रामभद्राचार्य जी के शिष्य हैं। इसलिए सभी को पता है कि धीरेन्द्र के मन में जाति-पांत की जडें कितनी गहरी हैं? उनके गुरू तो ब्राह्मणों में भी ऊंच-नीच की बात करते हैं। बाबा धीरेन्द्र को सबसे पहले अपने गुरूजी को जाति-पांत की बीमारी से मुक्त करना चाहिए था। लेकिन बाबा तो बाबा होते हैं। बर्र और बालक का एक जैसा स्वभाव होता है। बाबा धीरेन्द्र भी शास्त्री कम, बर्र ज्यादा हैं। ‘बर्र’ समझते हैं न आप? बुंदेलखण्ड और अवध में ‘बर्र’ एक ऐसा कीट है जो बहुत आक्रामक होता है। आदमी पर टूट पडे तो जान तक ले ले। अभी हाल हमें शिवपुरी में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके भक्तों पर हमला कर दिया।
मजे की बात ये है कि एक तरफ बाबा (बालक) धीरेन्द्र शास्त्री जाति-पांत की मुखालफत कर रहे हैं तो दूसरी तरफ शंकराचार्य अवमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि यदि जाति ही समाप्त हो गई तो फिर हमारी पहचान ही समाप्त हो जाएगी। सनातन ही समाप्त हो जाएगा, जाति है तो ही हम सनातन हैं। अब पहले बाबा धीरेन्द्र शास्त्री को शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से ही शास्त्रार्थ कर लेना चाहिए। जो जीतेगा, लोग उसकी बात मान लेंगे। इस शास्त्रार्थ में एक और ठठरी बांधने वाले बाबा धीरेन्द्र शास्त्री होंगे और दूसरी और गठरी बांधकर चलने वाले शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानद। कितना मोहक दृश्य होगा। आपको याद होगा कि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानद पहले भी बाबा धीरणेद्र शास्त्री से जोशी मठ को धंसने से रोकने की चुनौती दे चुके हैं।
वैसे हमारे यहां कहते हैं कि कांटे से ही कांटा निकलता है। ठीक उसी तरह बाबा की काट बाबा ही हो सकता है। बाबा धीरेन्द्र शास्त्री को पहली बार शंकराचार्य बाबा मिले हैं ज्ञान देने के लिए। आप कह सकते हैं कि बाबा ऊंट पहली बार पहाड के सामने आया है। बाबा धीरेन्द्र शास्त्री की मेहनत को देखते हुए मै तो भाजपा हाईकमान को मश्विरा दूंगा कि बाबा धीरेन्द्र शास्त्री को अविलम्ब यूपी या एमपी की कमान सौंप दिया जाना चाहिए। भाजपा को राजकाज के लिए बाबाओं की ही तो जरूरत है। वैसे भी भाजपा हाईकमान ने अपने आधे से ज्यादा नेताओं को बाबा बना ही दिया है, जनता को बाबा बना दिया है। बेचारों के पास भोजन और भजन करने के अलावा कोई दूसरा काम है ही नहीं। सारा काम-तमाम तो मोदी-शाह की जोडी पहले से कर ही रही है।
बाबा धीरेन्द्र शास्त्री की प्रतिभा का देश कायल है। भाजपा कायल है। कमलनाथ कायल हैं, दिग्विजय सिंह कायल है। संजय दत्त कायल हैं, लेकिन हम कायल नहीं तो इसी उनकी सेहत पर क्या फर्क पडता है। शास्त्री की प्रतिभा से हमारे देश के ए-वन यानी मुकेश अम्बानी भी कायल है। अम्बानी ने अपने बेटे की शादी में धीरेन्द्र को बुलाने के लिए अपनी चील गाडी (हवाई जहाज) तक भेजी थी। बाबा धीरेन्द्र को प्रदेश की सरकार ने सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराकर वीआईपी बना ही दिया है। लेकिन बाबा असल में हैं हमारी ही तरह एक बुंदेलखण्डी। हम बुन्देलखण्डियों के बारे में एक कहावत है कि सौ डंडी और एक बुंदेलखण्डी बराबर होता है। इसलिए दूसरे बाबाओं को धीरेन्द्र से सावधान होना चाहिए। मैं बाबा धीरेन्द्र की सनातन हिन्दू यात्रा का तो समर्थक नहीं हूं लेकिन यदि वे हमारे साथ पृथक बुंदेलखण्ड राज्य आंदोलन का समर्थन करने के लिए कोई पदयात्रा निकालें तो हम उनको अपने साथ ले सकते हैं।
बाबा धीरेन्द्र शास्त्री ने कोई एक सौ किलो मीटर की पदयात्रा की है और इसी में फसूकर डाल दिया। उनके पांवों में फलका (छाले) पड गए, बुखार आ गया, जबकि हम जैसे लोग दो-दो बार 200 किमी की यात्रा कर चुके हैं वो भी बिना हो -हल्ला किए। हमारी ग्वालियर से करौली तक की यात्रा में हम थे, हमारे मित्र थे और रिश्तेदार थे। हम हिन्दू जागरण के लिए नहीं बल्कि देवी दर्शन के लिए यात्रा पर थे। बहरहाल बाबा धीरेन्द्र शास्त्री दीर्घायु हो, स्वस्थ्य-प्रसन्न रहे। घरबार बसायें और डॉ. मोहन भागवत की बात मानकर दस-पांच बच्चों का पिता बनें तो शायद हिन्दुओं का कल्याण हो जाए।