जीवन में दुख में से सुख निकालने की कला सीखनी चाहिए : विनय सागर

48 दिवसीय भक्तामर विधान में चल रही है भगवान की आरधान

भिण्ड, 18 अगस्त। परमात्मा न किसी को सुखी करता है न किसी को दुखी। सुख-दुख स्वयं के अच्छे-बुरे कर्मों को परिणाम हैं। जब आत्मा सत्कर्म में प्रवृत्त होती है तो सुख मिलता है और जब अनैतिक और पाप के कार्यों में प्रवृत्त हो जाती है तो वह दुख रूप होती है। सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं। जीवन में दुख में से सुख निकालने की कला सीखनी चाहिए, जैसे कमल कीचड में पैदा होता है वैसे ही सुख भी दुख के कीचड में पैदा होता है। उक्त उदगार श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने संस्कारमय पावन वर्षायोग समिति एवं सहयोगी संस्था जैन मिलन परिवार के तत्वावधान में शुक्रवार को महावीर कीर्तिस्तंभ मन्दिर में आयोजित 48 दिवसीय भक्ताम्बर महामण्डल विधान में व्यक्त किए।
मुनि विनय सागर महाराज ने कहा कि व्यक्ति कर्म सिद्धांत को मानता है, फिर भी बुरे कर्म करता है। हम प्रत्येक घटना को कर्म से जोडते हैं, जबकि कर्म के परिणाम में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का निमित्त कार्य करता है। एक हाथ से दें और हजार हाथों से लें। यह सिद्धांत जिसने अपना लिया वह कभी कष्ट नहीं पाता। यह दान भी हो सकता है, परम पुरुषार्थ भी हो सकता है। उत्सर्ग का भाव श्रेष्ठतम होता है। जो देव होता है वह सर्वप्रथम दूसरों को खिलाता है फिर स्वयं खाता है। सामयिक व्रत, समता की साधना का अमोघ अस्त्र है। सामयिक कालमान पापकारी प्रवृत्तियों का निषेध है। यह बाहरी दुनिया से विमुख होकर आंतरिक शक्ति जागरण का मार्ग है। यह साधना राग, द्वेष, मान, माया, लोभ पर नियंत्रण का मार्ग प्रशस्त करती है।
प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य में शाम को जैन समाज के लोगा संगीतमय भगवान जिनेन्द्र की दीपकों से महाआरती भक्ति करते है। आरती के उपरांत धार्मिक प्रश्न मंच पूछने के साथ विजेता को पुरुस्कार प्रदान करते हैं।
इन्द्रों ने भगवान जिनेन्द्र का किया अभिषेक, कलश से की शांतिधारा
श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य एवं विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ग्वालियर के मार्गदर्शन में केशरिया वस्त्रों में इन्द्रों ने मंत्रों के साथ कलशों से भगवान आदिनाथ को जयकारों के साथ अभिषेक किया। मुनि ने अपने मुखारबिंद मंत्रों से भगवान आदिनाथ के मस्तक पर इन्द्रा नरेश, अशोक, अनिल, मोहित व अंकित जैन परिवार ने शांतिधारा की। मुनि को शास्त्र भेंट समाज जनों ने सामूहिक रूप से किया। आचार्य विराग सागर, विनम्र सागर के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन मैनाबाई नरेश संगीत जैन, अशोक जैन, ममता जैन, अनिल जैन, किरन मोहित जैन, रेखा जैन, अंकित सोनल जैन परिवार भिण्ड द्वारा किया गया।
भक्ताम्बर विधान में प्रभु की आरधान कर चढ़ाए महाअघ्र्य
श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य में विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ने भक्ताम्बर महामण्डल विधान में मैनाबाई, नरेश, संगीत, अशोक जैन, ममता जैन, अनिल जैन, किरन मोहित जैन, रेखा जैन, अंकित, सोनल जैन परिवार एवं इन्द्रा-इन्द्राणियों ने भक्ताम्बर मण्डप पर बैठकर अष्टद्रव्य से पूजा अर्चना कर भक्ति नृत्य करते हुए महाअघ्र्य भगवान आदिनाथ के समक्ष मण्डप पर समर्पित किए।