भिण्ड, 18 अप्रैल। पूर्वमंत्री लहार विधायक डॉ. गोविन्द सिंह द्वारा फार्मेसी कॉलेज लहार में कराई जा रही श्रीमद् भागवत कथा में आचार्य श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी ने कहा कि जीवन में कितना भी धन ऐश्वर्य की संपन्नता हो, लेकिन यदि मन में शांति नहीं है तो वह व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता। वहीं जिसके पास धन की कमी भले ही हो, सुख-सुविधाओं की कमी हो, परंतु उसका मन यदि शांत है तो वह व्यक्ति वास्तव में परम सुखी है। यह हमेशा मानसिक असंतुलन से दूर रहेगा।
कथा प्रसंग में परम भक्त सुदामा चरित्र पर प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री मृदुल कृष्ण महाराज ने कहा कि सुदामा जी के जीवन में धन की कमी थी, निर्धनता थी लेकिन वह स्वयं शांत ही नहीं, परम शांत थे। इसलिए सुदामा जी हमेशा सुखी जीवन जी रहे थे। क्योंकि उनके पास ब्रह्म (प्रभुनाम) रूपी धन था। धन की तो उनके जीवन में न्यूनता थी परंतु नाम धन की पूर्णता थी। हमेशा भाव से ओत-प्रोत होकर प्रभु नाम में लीन रहते थे। उनके घर में वस्त्र आभूषण तो दूर अन्न का एक कण भी नहीं था। जिसे लेकर वो प्रभु श्री द्वारिकाधीश के पास जा सकें। परंतु सुदामा जी की धर्मपत्नी सुशीला के मन में इच्छा थी, मन में बहुत बड़ी भावना थी कि हमारे पति भगवान श्री द्वारिकाधीश जी के पास खाली हाथ न जाएं। सुशीला जी चार घर गईं और चार मुट्ठी चावल मांगकर लाईं और वही चार मुट्ठी चावल को लेकर सुदामाजी प्रभु द्वारिकाधीश जी के पास गए और प्रभु ने उन चावलों का भोग बड़े ही भाव केसाथ लगाया। उन भाव भक्ति चावलों का भोग लगाकर प्रभु ने यही कहा कि हमारा भक्त हमें भाव से पत्र पुष्प, फल अथवा जल ही अर्पण करता है, तो में उसे बड़े ही आदर के साथ स्वाकार करता हूं। प्रभु ने चावल ग्रहण कर सुदामा जी को अपार संपत्ति प्रदान कर दी। आर्चायश्री ने इस पावन सुदामा प्रसंग पर सार तत्व बताते हुए समझाया कि व्यक्ति अपना मूल्य समझे और विश्वास करे कि हम संसार के सबसे महत्व पूर्ण व्यक्ति है। तो वह हमेशा कार्यशील बना रहेगा। क्योंकि समाज में सम्मान अमीरी से नहीं इमानदारी और सज्जनता से प्राप्त होता है।
आज विशेष महोत्सव के रूप में फूल होली महोत्सव धूमधाम से मनाय गया। जिसमें आचार्यश्री द्वारा ‘होली खेल रहे बांके बिहारी’ बांके बिहारी को देख छटा मेरो मन है गयो लटा-पटा आदि भजनों को बड़े ही भाव के साथ गुन-गुनाया गया। जिससे हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने फूल होली महोत्सव का आनंद प्राप्त किया। संपूर्ण कथा प्रांगण श्री राधा-कृष्ण मय हो गया।